चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, बिहार में जारी रहेगा वोटर लिस्ट सत्यापन; आधार, वोटर ID, राशन कार्ड भी प्रूफ होगा

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग से कई कड़े सवाल किए. पूछा कि बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण को नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से क्यों जोड़ा जा रहा है, यह प्रक्रिया चुनावों से अलग क्यों नहीं की जा सकती?

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  • सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण को जारी रखने की अनुमति दे दी है और चुनाव आयोग से एक हफ्ते में जवाब मांगा है.
  • कोर्ट ने आयोग से पूछा कि इस स्पेशल रिवीजन को विधानसभा चुनावों से क्यों जोड़ा जा रहा है और इसे चुनावों से अलग क्यों नहीं किया जा सकता?
  • सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को सुझाव दिया कि रिवीजन में आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर पहचान पत्र जैसे दस्तावेज शामिल करने पर विचार करें.
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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर चुनाव आयोग को बड़ी राहत दी है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि बिहार में वोटर लिस्ट के सर्वे का काम जारी रहेगा. कोर्ट ने इस मामले में चुनाव आयोग से एक हफ्ते में जवाब मांगा. 28 जुलाई को इस मामले पर अगली सुनवाई होगी. 

देश में बड़ा सियासी मुद्दा बन चुके बिहार के मतदाता सूची सत्यापन मामले पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान चुनाव आयोग ने अदालत को आश्वस्त किया कि किसी को भी अपनी बात रखने का अवसर दिए बिना मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाए. 

चुनाव आयोग से पूछे कड़े सवाल

इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कुछ कड़े सवाल भी पूछे. कोर्ट ने कहा कि बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण को नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से क्यों जोड़ा जा रहा है, यह प्रक्रिया चुनावों से अलग क्यों नहीं की जा सकती?

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि विशेष गहन पुनरीक्षण की कवायद एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो लोकतंत्र की जड़ से जुड़ा है. यह मतदान के अधिकार से संबंधित है. कोर्ट ने कहा कि वह संवैधानिक संस्था को वो कार्य करने से नहीं रोक सकता, जो उसे करना चाहिए. 

आधार जैसे 11 दस्तावेज शामिल करने का सुझाव

कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में उसकी राय है कि न्याय हित में, चुनाव आयोग को बिहार में मतदाता सूचियों के चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान आधार, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेजों को भी शामिल करने पर विचार करना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 11 दस्तावेजों में आधार, ईसीआईसी और राशन कार्ड को शामिल करने का सुझाव दिया है. कहा कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान प्रथमदृष्टया आधार, मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड को दस्तावेज के तौर पर विचार किया जा सकता है. 

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अदालत ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर रोक नहीं लगाई क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने फिलहाल इसके लिए दबाव नहीं डाला. हालांकि बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए निर्वाचन आयोग से कहा कि आपको पहले ही कदम उठाना चाहिए था, अब थोड़ी देर हो चुकी है. हालांकि इस दलील को खारिज कर दिया कि आयोग के पास इस कवायद को करने का कोई अधिकार नहीं है.

'नागरिकता से आयोग का लेना-देना नहीं'

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ के सामने निर्वाचन आयोग ने सुनवाई के दौरान कहा कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है. कोर्ट ने विशेष गहन पुनरीक्षण में दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड पर विचार न करने को लेकर सवाल किया और कहा कि निर्वाचन आयोग का किसी व्यक्ति की नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है और यह गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है.

निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने संविधान के अनुच्छेद 326 का हवाला देते हुए कहा कि हर मतदाता को भारतीय नागरिक होना चाहिए और आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है.

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कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों की इस दलील को खारिज कर दिया कि निर्वाचन आयोग के पास बिहार में ऐसी किसी कवायद का अधिकार नहीं है. पीठ ने कहा कि निर्वाचन आयोग जो कर रहा है, वह संविधान के तहत आता है और पिछली बार ऐसी कवायद 2003 में की गयी थी.

आयोग से तीन सवालों पर जवाब मांगा

याचिकाकर्ताओं की दलीलों का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग को तीन सवालों का जवाब देना होगा क्योंकि बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया लोकतंत्र की जड़ से जुड़ी है और यह मतदान के अधिकार से संबंधित है.

  • 1. क्या उसके पास मतदाता सूची में संशोधन करने का अधिकार है?

  • 2. जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है, क्या उसका आयोग को अधिकार है?

  • 3. वोटर लिस्ट रिवीजन कब किया जा सकता है, क्या यह तय करने का अधिकार है?

अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि समय के साथ-साथ मतदाता सूची में नामों को शामिल करने या हटाने के लिए उनका रिवीजन करना आवश्यक होता है और एसआईआर ऐसी ही कवायद है.

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उन्होंने पूछा कि अगर चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची में संशोधन का अधिकार नहीं है तो फिर यह कौन करेगा? बहरहाल, आयोग ने आश्वस्त किया कि किसी को भी अपनी बात रखने का अवसर दिए बिना मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा.

'7.9 करोड़ नागरिकों पर होगा असर'

इससे पहले, एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण की अनुमति दी जा सकती है. उन्होंने कहा कि समग्र एसआईआर के तहत लगभग 7.9 करोड़ नागरिक आएंगे और यहां तक कि मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड पर भी विचार नहीं किया जा रहा है.

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10 से ज्यादा याचिकाएं कोर्ट में दाखिल

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले के संबंध में 10 से अधिक याचिकाएं दायर की गयी हैं जिनमें प्रमुख याचिकाकर्ता गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स है.

आरजेडी सांसद मनोज झा और तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा के अलावा कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल, शरद पवार नीत एनसीपी से सुप्रिया सुले, सीपीआई से डी राजा, समाजवादी पार्टी से हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) से अरविंद सावंत, झारखंड मुक्ति मोर्चा से सरफराज अहमद और सीपीआई (माले) के दीपांकर भट्टाचार्य ने संयुक्त रूप से शीर्ष अदालत का रुख किया है. 

सभी नेताओं ने बिहार में मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण के चुनाव आयोग के आदेश को चुनौती दी है और इसे रद्द करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है.
 

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