"बच्‍चों के मिडडे मील में न अंडा, न मीट": कर्नाटक की शिक्षा समिति ने सुझाव पेश करते हुए दिया यह तर्क

गौरतलब है कि कर्नाटक में 80 फीसदी से अधिक लोग अंडे या मीटर का सेवन करते हैं. इस समिति के अनुसार, अंडे या मीट खाने से बीमारी होती है.

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प्रतीकात्‍मक फोटो
बेंगलुरु:

कर्नाटक (Karnataka) में राष्‍ट्रीय शिक्षा समिति को लेकर बनाई गई एक समिति ने देशभर के मिडडे मील से नॉनवेज आइटम्‍स (non-vegetarian items)को हटाने की पैरवी की है. गौरतलब है कि कर्नाटक में 80 फीसदी से अधिक लोग अंडे या मीटर का सेवन करते हैं. इस समिति के अनुसार, अंडे या मीट खाने से बीमारी होती है.विशेषज्ञ समितियों की ओर से पेश किए गए सुझावों की श्रृंखला में यह नवीनतम है जिन्‍होंने अब तक राज्‍य सरकार के समक्ष 25 position papers पेश किए है. ऐसे ही एक पैनल ने पाइथागोरस थ्‍योरम (Pythagoras theorem) को फर्जी करार दिया है.

इस बीच, 'नो एग, नो मीट' के सुझाव पर राज्‍य की बीजेपी सरकार ने कहा है कि इस मुद्दे पर अभी कोई विवाद नहीं होना चाहिए. राज्‍य के कैबिनेट मंत्री सीएम अश्‍वथ नारायण ने कहा, "यदि पैनल सिफारिश नहीं दें तो फिर उनके होने का क्‍या मतलब रह जाएगा. आइए अब इस पर चर्चा-विार करते हैं. हम यह तय करें कि लोगों के लिए क्‍या अच्‍छा है. सरकार हमेशा लोगों का ध्‍यान रखती है, यह सही बात करेगी. " 

जॉन विजय सागर की अगुवाई वाली आठ सदस्‍यों की समिति ने  'Health and Well Being'पेपर पेश किया है जिसमें कहा गया है कि भारतीयों के शरीर के छोटे ढांचे को देखते हुए अंडे या मांस के नियमित सेवन से कोलेस्‍ट्रॉल के जरिये मिलने वाली अतिरिक्‍त ऊर्जा, जीवनशैली संबंधी विकारों की ओर ले जाती है. विभिन्‍न देशों में किए गए अध्‍ययन में पता चला है कि एनीमल बेस्‍ड फूड (animal-based food) इंसान के हार्मोनल कार्यों में 'बाधा' पहुंचाते हैं. हालांकि एक तथ्‍य यह भी है कि मीट खाने वालों की संख्‍या देश में बढ़ रही है. 2019-21 के नेशनल फैमिली हेल्‍थ सर्वे-5 के अनुसार, 15 वर्ष से 49 वर्ष तक के आयु वर्ग के देश में 83 प्रतिशत से अधिक पुरुष और करीब 71 फीसदी महिलाएं नॉनवेज फूड खाती हैं. यह पिछले सर्वे के लिहाज से पुरुषों में 5 और महिलाओं में एक फीसदी ज्‍यादा है.

वरिष्‍ठ कांग्रेस नेता रिजवान अरशद पैनल के सुझावों को एक विचारधारा को 'थोपने' के तौर पर माना है जो गरीब बच्‍चें को जरूरी प्रोटीन से वंचित कर सकता है.  उन्‍होंने कहा, "करीब 80 फीसदी देशों में मीट का सेवन किया जाता है, सवाल यह है कि यदि गरीब बच्‍चों को यह फूड आइटम्‍स नहीं दिए गए तो वे शरीर डेवलप कैसे होगा. यदि बच्‍चे कमजोर रहेंगे तो स्‍वस्‍थ देश कैसे बनेगा?" 

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