"गहन शोध करें" : नये आपराधिक कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court Decision : नये आपराधिक कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने रुख साफ कर दिया है कि अगर ठोस प्रमाण लेकर कोई याचिका दायर करता है तो सुप्रीम कोर्ट उसका परीक्षण कर सकता है. जानिए और क्या कहा...

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तीन आपराधिक कानूनों (New Criminal Laws) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार करने से सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को इन्कार कर दिया. इस मामले में दो जनहित याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गईं थीं. इन याचिकाओं में हाल ही में भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले तीन नए आपराधिक कानूनों की वैधता को चुनौती दी गई थी.

सुप्रीम कोर्ट ने पूछे सवाल

मंगलवार को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने दोनों याचिकाओं के प्रारूप के तरीके की आलोचना की और ⁠सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता अगर फिर से इसे दायर करना चाहते हैं तो उन्हें बेहतर शोध करना चाहिए. पीठ ने कहा, "यह एक गंभीर मुद्दा है. ये दोनों याचिकाएं किस तरह की हैं? कृपया इसे अच्छी तरह से ड्राफ्ट करें. ⁠हम संसद के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते. कृपया, आप जो मुद्दे उठा रहे हैं, उन पर गहन शोध करें. ⁠आप नये कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दे रहे हैं?"

बीआरएस ने भी दायर की थी

कोर्ट ने पक्षों को अपनी याचिका वापस लेने की अनुमति दी और इसे फिर से दायर करने की स्वतंत्रता दी. न्यायालय नये आपराधिक कानूनों भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. ⁠एक याचिका दिल्ली निवासी अंजली पटेल और छाया ने दायर की थी. दूसरी याचिका भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के नेता विनोद कुमार बोइनपल्ली ने दायर की थी.

गत फरवरी में भी इसी तरह की एक याचिका को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI ) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने खारिज कर दिया था.

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