सोना सहित दहेज में मिला सभी सामान देना होगा वापस... तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को लेकर SC का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला तलाकशुदा महिला रौशनारा बेगम के मामले में सुनाया, जिन्होंने अपने पहले पति से दहेज के रूप में प्राप्त सात लाख रुपए और तीस ग्राम सोने की वापसी के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • SC ने तलाकशुदा मुस्लिम महिला को शादी के समय पति को दिए गए नकद और सोने के गहने वापस लेने का अधिकार दिया है.
  • यह अधिकार मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 3 के तहत सुरक्षित माना गया है.
  • कोर्ट ने कहा कि विवाह के समय दी गई संपत्ति महिला की भविष्य की सुरक्षा और आर्थिक सम्मान के लिए होती है.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को स्पष्ट किया है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को उसकी शादी के समय पिता द्वारा पति को दिए गए नकद और सोने के गहने वापस लेने का अधिकार है. यह अधिकार मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत सुरक्षित है.  इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट का फैसला पलट दिया.

हाईकोर्ट ने तलाकशुदा महिला के उस दावे को खारिज कर दिया था जिसमें उसने शादी के समय पति को पिता द्वारा दिए गए 7 लाख रुपये और सोने के गहनों (30 भौरी) की मांग की थी. महिला की शादी 2005 में हुई थी. 2009 में अलगाव और 2011 में तलाक के बाद उसने 1986 अधिनियम की धारा 3 के तहत 17.67 लाख रुपये की वसूली की मांग की थी, जिसमें नकद और सोने के गहने शामिल थे. 

हाईकोर्ट ने दावा खारिज कर दिया था, क्योंकि विवाह रजिस्टर (काजी) और महिला के पिता के बयान में मामूली असंगति पाई गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवाह रजिस्टर और काजी का बयान केवल संदेह के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विवाह के समय दिए गए संपत्ति और गहने महिला के भविष्य की सुरक्षा के लिए हैं. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1986 अधिनियम की धारा 3(1)(d) के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिला को वह सब संपत्ति वापस लेने का अधिकार है जो शादी से पहले, शादी के समय या शादी के बाद उसके रिश्तेदारों, दोस्तों, पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा दी गई हो. कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि यह कानून महिला की सम्मान और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है और इसे अनुच्छेद 21 के तहत महिला के मानव अधिकार और आत्मनिर्णय के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए. 

सुप्रीम कोर्ट ने अपील को मंजूरी देते हुए आदेश दिया कि पति सीधे महिला के बैंक खाते में राशि जमा करें, और यदि ऐसा न किया गया तो 9% वार्षिक ब्याज लगेगा.

रौशनारा बेगम का निकाह 2005 में हुआ था और 2011 में उनका तलाक हो गया था. निकाह के समय महिला के पिता ने दामाद को सात लाख रुपए और तीस ग्राम सोने के गहने दिए थे, जिसकी जानकारी निकाह रजिस्टर में दर्ज थी. हालांकि, कलकत्ता हाईकोर्ट ने काजी और महिला के पिता के बयानों में असंगति का हवाला देते हुए महिला का दावा खारिज कर दिया था.

Advertisement

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि निकाह के समय मिले धन और गहनों का संबंध महिला की सुरक्षा और गरिमा से है. अदालत ने इस कानून की व्याख्या महिला के समानता और गरिमा के संवैधानिक अधिकारों के आधार पर की.

सुप्रीम कोर्ट ने रौशनारा के पति को सात लाख रुपए और तीस ग्राम सोने का मूल्य सीधे महिला के बैंक खाते में जमा करने का आदेश सुनाया. आदेश का पालन न करने पर पति पर नौ प्रतिशत वार्षिक ब्याज लागू होगा और उसे अदालत में इसके अनुपालन का हलफनामा देना होगा.

Advertisement

कोर्ट ने कहा है कि भारत का संविधान सभी के लिए एक उम्मीद यानी बराबरी तय करता है, जो जाहिर है, अभी तक हासिल नहीं हुई. इस मकसद को पूरा करने के लिए कोर्ट को अपनी सोच को सोशल जस्टिस के आधार पर रखना चाहिए. इसे सही संदर्भ में कहें तो 1986 के एक्ट का दायरा और मकसद एक मुस्लिम महिला के तलाक के बाद उसकी इज्जत और वित्तीय सुरक्षा को सुरक्षित करना है, जो भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत महिलाओं के अधिकारों के मुताबिक है.

कोर्ट ने कहा कि इसलिए इस एक्ट को बनाते समय बराबरी, इज्जत और आजादी को सबसे ऊपर रखना चाहिए और इसे महिलाओं के अपने अनुभवों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए.

Advertisement
Featured Video Of The Day
Saudi Arabia Bus Accident में इकलौते बचे Abdul Shoaib ने बताई दर्दनाक हादसे की कहानी
Topics mentioned in this article