गुजरात के प्राइवेट स्कूलों में EWS के तहत आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों को दाखिला ना देने का मामले में जल्द सुनवाई की मांग की गई. वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि गुजरात में हर साल 50 हजार बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में दाखिला नहीं दिया जाता. अब फिर दाखिले शुरू होने वाले हैं और ऐसे में मामले की सुनवाई होनी चाहिए. एक साल पहले कमेटी की रिपोर्ट आ चुकी है. हम चाहते हैं कि कमेटी की सिफारिशें लागू हों.
CJI एन वी रमन्ना ने कहा कि वो मामले को लिस्ट करेंगे. इससे पहले जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपों की जांच को लिए फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन किया था. कमेटी को ये जांच करनी थी कि गुजरात के स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को दाखिला मिल रहा है या नहीं. कोर्ट ने कहा था कि पैनल का गठन गुजरात हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा किया जाएगा. SC ने गुजरात हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से सेवानिवृत्त जज की अगुवाई में सरकारी अधिकारियों और शिक्षा के क्षेत्र में विशेषज्ञों की 3 या 5 सदस्यीय पैनल गठित करने को कहा था.
पैनल को पहली बैठक से 3 महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट दाखिल करने को कहा गया था. अदालत ने कहा था कि पैनल उन शिकायतों की जांच करेगा कि कमजोर छात्रों को दाखिला दिया जा रहा है या नहीं, क्योंकि गुजरात सरकार की वेबसाइट दाखिलों की संख्या जीरो दिखा रही है. दरअसल संदीप ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा है कि गुजरात में शिक्षा का अधिकार कानून ठीक से लागू नहीं हुआ है और गुजरात के स्कूलों में ईडब्ल्यूएस छात्रों को 25 फीसदी दाखिला नहीं दिया गया है.
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आपको बता दे कि आरटीई अधिनियम के तहत स्कूलों को समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 25 फीसदी प्रवेश देने का प्रावधान है. वहीं गुजरात सरकार ने इन आरोपों से इनकार किया है और कहा कि EWS के 93,000 छात्रों को प्रवेश दिया गया है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 25 फीसदी का मतलब है कि एक कक्षा में कुल छात्रों की क्षमता का 25 फीसदी.
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