दिल्ली में रहने वाले 46 लाख से ज्यादा परिवारों को मिल रही बिजली सब्सिडी का रास्ता अब साफ हो गया है. मिल रही जानकारी के अनुसार उप-राज्यपाल ने बिजली सब्सिडी की फाइल पर दस्तखत कर दिए हैं. उप-राज्यपाल के दस्तखत करने के बाद ये फाइल अब दिल्ली सरकार के पास वापस जाएगी. और सब्सिडी देने को लेकर आगे की प्रक्रिया को फिर से जारी किया जाएगा. बता दें कि उप-राज्यपाल के दस्तखत करने से पहले शुक्रवार को दिल्ली में बिजली सब्सिडी को लेकर राजनीति शुरू हो गई थी. दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार में ऊर्जा मंत्री आतिशी मरलेना ने दावा किया था कि अब दिल्ली के 46 लाख से ज्यादा परिवारों को शनिवार से बिजली सब्सिडी नहीं मिलेगी. उन्होंने कहा था कि उपराज्यपाल ने बिजली सब्सिडी की फाइल रोक दी है.
आतिशी का कहना था कि बिजली सब्सिडी का बजट विधानसभा से पास है,लेकिन सब्सिडी की कैबिनेट निर्णय की फाइल उपराज्यपाल ने रखी हुई है . आतिशी का आरोप है कि इस मामले पर उन्होंने उपराज्यपाल से बातचीत के लिए मिलने का 5 मिनट का समय मांगा था, लेकिन इमरजेंसी स्थिति होने के बावजूद उपराज्यपाल ने समय नहीं दिया. आतिशी का कहना है कि 24 घंटे बाद भी उपराज्यपाल ने समय नहीं दिया है.
जब डेडलाइन 15 अप्रैल थी तो उन्होंने सब्सिडी के बारे में फैसला 4 अप्रैल तक पेंडिंग क्यों रखा : LG दफ्तर
इस पूरे मामले दिल्ली के उपराज्यपाल दफ्तर ने कहा था कि दिल्ली के ऊर्जा मंत्री को बेवजह उपराज्यपाल पर निराधार आरोप लगाने से बचने की सलाह दी जाती है. ऊर्जा मंत्री गलत बयानों से लोगों को गुमराह करना बंद करें. ऊर्जा मंत्री और दिल्ली के मुख्यमंत्री बताएं कि जब डेडलाइन 15 अप्रैल थी तो उन्होंने सब्सिडी के बारे में फैसला 4 अप्रैल तक पेंडिंग क्यों रखा?
एलजी ने की केजरीवाल सरकार की आलोचना
उधर, उपराज्यपाल वी के सक्सेना ने पिछले 6 वर्षों के दौरान निजी बिजली कंपनियों को दिए गए 13,549 करोड़ रुपये का ऑडिट नहीं कराये जाने पर केजरीवाल सरकार की तीखी आलोचना की थी. उपराज्यपाल ने गरीबों को बिजली सब्सिडी दिए जाने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए इस सब्सिडी का पूरी तरह समर्थन किया है और कहा था कि बिजली कंपनियों को जो सब्सिडी दी गई है, उसका हर हाल में ऑडिट होना चाहिए ताकि बिजली सब्सिडी में अगर कहीं भी चोरी हो रही है तो उसे रोका जा सके. उपराज्यपाल ने विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 108 को लागू नहीं करने पर केजरीवाल सरकार से तीखे सवाल पूछे थे. इस अधिनियम के तहत डीईआरसी (दिल्ली इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमिशन) द्वारा बिजली कंपनियों का ऑडिट करना अनिवार्य था. एलजी ने इस बात को स्पष्ट तौर पर कहा था कि CAG द्वारा पैनलबद्ध ऑडिटर्स को कैग ऑडिट के विकल्प के रूप में नहीं माना जा सकता.