दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणापत्रों में नकद हस्तांतरण (Cash Transfer) की पेशकश को भ्रष्ट चुनावी तौर तरीका घोषित करने के अनुरोध संबंधी एक जनहित याचिका मंगलवार को खारिज कर दी. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि विस्तृत आदेश बाद में दिया जाएगा. पीठ ने कहा, ‘हमें याचिका में कोई तथ्य नहीं मिला. इसलिए हम इसे खारिज करते हैं. 'अदालत दो अधिवक्ताओं- पाराशर नारायण शर्मा और कैप्टन गुरविंदर सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनके वकील ने दलील दी कि चुनावी घोषणापत्र में बिना किसी काम के नकद की पेशकश को अवैध घोषित किया जाना चाहिए.
हाई कोर्ट ने पूर्व में एक जनहित याचिका पर निर्वाचन आयोग से सवाल पूछा था कि वह उन राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई करने से क्यों कतरा रहा है जो भ्रष्ट आचरण पर उसके दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं . पीठ की यह टिप्पणी निर्वाचन आयोग के वकील यह कहने के बाद आई कि वह ‘भ्रष्ट आचरण' के संबंध में पहले ही दिशानिर्देश जारी कर चुका है और इसे राजनीतिक दलों को भी भेजा गया है. अदालत ने पूर्व में नोटिस जारी किया था और याचिका पर केंद्र की प्रतिक्रिया मांगी थी. याचिका में कहा गया था कि इस तरह के ‘‘वोट के लिए नोट'' के वादे जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 का उल्लंघन हैं.
पीठ ने दो राजनीतिक दलों - कांग्रेस और तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) से भी जवाब मांगा था क्योंकि याचिका में कहा गया था कि 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस और तेदेपा ने समाज के कुछ वर्गों को नकद की पेशकश की थी. कांग्रेस ने न्यूनतम आय योजना की घोषणा की थी और 72,000 रुपये (वार्षिक) दिए जाने की पेशकश की थी.
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था, ‘‘कोविड-19 महामारी के दौरान में लोगों के खातों में रकम भेजी गई. (लेकिन) यह एक असाधारण स्थिति थी. अगर राजनीतिक दल बिना किसी काम के धन देने का चलन शुरू करेंगे तो हमारे उद्योग, कृषि खत्म हो जाएंगे. ''याचिका में कहा गया है कि लोकतंत्र की सफलता एक ईमानदार सरकार पर टिकी होती है जो भ्रष्ट आचरण से मुक्त स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के माध्यम से चुनी जाती है.