दिल्ली सरकार बनाम LG मामला: ट्रांसफर-पोस्टिंग पर किसका होगा अधिकार? CJI ने उठाए ये सवाल

दिल्ली सरकार की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कोई भी सरकार जो लोगों की इच्छा को पूरा करने वाली है और अस्तित्व में है, उसे पद सृजित करने, उन पदों पर कर्मचारियों को नियुक्त करने और विश्वास के अनुसार उन्हें बदलने की क्षमता होनी चाहिए. जब तक इस सरकार के पास शक्ति नहीं है, सरकार कार्य नहीं कर सकती है.

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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के बीच आपसी खींचतान जारी है.
नई दिल्ली:

दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के मामले में अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग करने के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में मंगलवार को सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने कहा कि दिल्ली के मामले में संसद राज्य सूची और समवर्ती सूची पर कानून बना सकती है. इस दृष्टि से राज्य सूची और समवर्ती सूची दोनों अहम हैं. अगर संसद समवर्ती सूची में चल रही है, तो दिल्ली सरकार में क्या शक्ति है? इस पर हमें विचार करना है.

सीजेआई  डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 73 बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह कहता है कि समवर्ती सूची में भी केंद्र सरकार कार्यकारी शक्ति नहीं छीन सकती है. दिल्ली के संबंध में अनुच्छेद 254 राज्य सूची पर भी लागू होता है. आम तौर पर अनुच्छेद 254 केवल समवर्ती सूची में संसद द्वारा अधिनियमित कानून को प्राथमिकता देता है. अगर इससे फर्क पड़ता है, तो संसद के पास कार्यकारी मामलों में भी शक्ति है.

दिल्ली सरकार ने दिए ये तर्क
दिल्ली सरकार बनाम LG केस में दिल्ली सरकार की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने बहस शुरू की. उन्होंने कहा कि ये सिर्फ अधिकार और शक्तियों के बंटवारे का ही विवाद या मामला नहीं है बल्कि एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र में दखल का भी है. दिल्ली सरकार के पास अधिकार होने से अधिकारी दिल्ली की जनता और सरकार के प्रति जवाबदेह होंगे. नौकरशाह सरकार और मंत्रिमंडल के प्रति जवाबदेह और जिम्मेदार होना चाहिए, क्योंकि निर्णायक तौर पर तो विधायिका जनता के प्रति ही जिम्मेदार है. जिम्मेदारियों और जवाबदेही की ये कड़ियां न जुड़े तो प्रशासन और सिस्टम काम ही नहीं कर पाएगा. एक कड़ी भी कमजोर हुई तो सिस्टम बैठ जाएगा. भारत में तो हमारा प्रशासनिक और संवैधानिक ढांचा संघीय व्यवस्था से भी ज्यादा सटीक है. दो स्तरीय हिस्सा स्वायत्ता और संप्रभुता है.  केंद्र, राज्य और फिर दोनों के साझा स्तर पर भी.

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सिविल सेवाओं पर नियंत्रण के बिना कोई सरकार कैसे काम कर सकती है : दिल्ली सरकार
दिल्ली सरकार ने कहा कि सिविल सेवाओं को नियंत्रण में रखे बिना कोई सरकार कैसे काम कर सकती है. इससे पूरी तरह अवज्ञा और अराजकता होगी. इस शक्ति के बिना काम नहीं कर सकते. इसके बिना लोगों की इच्छा पूरी नहीं कर सकते. ऐसे हालात हैं कि केंद्र दिल्ली के लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं. बिना सिविल सर्विस के बिना कैसी सरकार. विडंबना है कि MCD के पास सिविल सेवाओं के पास शक्ति, लेकिन दिल्ली सरकार के पास नहीं. 

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दिल्ली सरकार की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कोई भी सरकार जो लोगों की इच्छा को पूरा करने वाली है और अस्तित्व में है, उसे पद सृजित करने, उन पदों पर कर्मचारियों को नियुक्त करने और विश्वास के अनुसार उन्हें बदलने की क्षमता होनी चाहिए. जब तक इस सरकार के पास शक्ति नहीं है, सरकार कार्य नहीं कर सकती है. जनता स्तर पर प्रतिनिधित्व करने वाली सरकार नीति बनाती है, लेकिन कोई भी सरकार-कार्यान्वयन केवल सिविल सेवाओं पर निर्भर करेगा.

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2018 में सुप्रीम कोर्ट ने दिया था ये फैसला
2018 के फैसले में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा था कि दिल्ली के उपराज्यपाल निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह से बंधे हैं, और दोनों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है.

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क्या कहना है दिल्ली सरकार का?
इस पूरे मामले में दिल्ली सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में केंद्र सरकार के पास सिर्फ जमीन, पुलिस और लोक आदेश यानी कानून व्यवस्था के मामले में अधिकार मिला है, इसलिए वह इन्हीं से संबंधित अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग कर सकती है, लेकिन केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार को चलाने से संबंधित गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली एक्ट में 2021 में संशोधन किया था, जिसके तहत उपराज्यपाल को कई और अधिकार दे दिए गए थे. दिल्ली सरकार ने इस संशोधन को भी चुनौती दी है.

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