प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉड्रिंग एक्ट ( PMLA) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा की गई गिरफ्तारी, जब्ती और जांच की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) बुधवार को फैसला सुनाएगा. पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिंदबरम और महाराष्ट्र सरकार के पूर्व मंत्री अनिल देशमुख की याचिकाओं समेत 242 याचिकाओं पर सर्वोच्च अदालत फैसला सुनाएगी. जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और सीटी रवि कुमार की बेंच यह फैसला सुनाएगी.
याचिकाओं में धन शोधन निवारण अधिनियम ( PMLA) के प्रावधानों को चुनौती दी गई है. याचिकाओं में PMLA के तहत अपराध की आय की तलाशी, गिरफ्तारी, जब्ती, जांच और कुर्की के लिए प्रवर्तन निदेशालय ( ED) को उपलब्ध शक्तियों के व्यापक दायरे को चुनौती दी गई है. इसमें कहा गया है कि ये प्रावधान मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं.
PMLA के तहत ED की 5 बड़ी शक्तियां
1. ईडी को गिरफ्तारी की विशेष शक्ति
याचिकाकर्ता- गिरफ्तारी के आधार या सबूत के बारे में बताए बिना आरोपी को गिरफ्तार करने की अनियंत्रित शक्ति असंवैधानिक है.
केंद्र - निदेशक या उप निदेशक रैंक के अधिकारी के पास विशेष शक्तियां निहित होती हैं. ED अधिकारी की जवाबदेही पुलिस अधिकारी की तुलना में अधिक होती है.
2. जांच के दौरान बयान सबूत के रूप में स्वीकार्य
याचिकाकर्ता- ED पूछताछ के दौरान किसी आरोपी से सूचना छिपाने पर जुर्माना लगाने की धमकी के तहत आपत्तिजनक बयान दर्ज कर सकता है. यह मजबूरी है
केंद्र - जुर्माने की वैधानिक धमकी एक आरोपी को खुद को दोषी ठहराने के लिए मजबूर करने के लिए पर्याप्त नहीं है.
3. ECIR (एनफोर्समेंट केस इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट) कॉपी की जरूरत नहीं
याचिकाकर्ता- यह एक FIR के समान है और आरोपी ECIR की कॉपी का हकदार है.
केंद्र- ECIR एक वैधानिक दस्तावेज नहीं है. ECIR, ED के लिए एक आंतरिक दस्तावेज है. आरोपी को देने की आवश्यकता नहीं है.
4. सबूत का बोझ आरोपी पर है
याचिकाकर्ता- आरोपी पर सबूत का बोझ डालना समानता के अधिकार और जीने के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
केंद्र - मनी लॉन्ड्रिंग अपराधों की गंभीर प्रकृति है. इसे रोकने के लिए सामाजिक आवश्यकता के कारण आरोपी पर सबूत का बोझ डालना उचित है.
5. पूर्वव्यापी रूप से PMLA लागू करना
याचिकाकर्ता- 2002 (जब PMLA अस्तित्व में आया) से पहले हुए मामलों पर PMLA के तहत आरोप दाखिल करना असंवैधानिक है.
केंद्र- मनी लॉन्ड्रिंग एक जारी रहने वाला अपराध है. ये एक कार्य नहीं बल्कि एक श्रृंखला है. अपराध की आय 2002 से पहले उत्पन्न हो सकती हो लेकिन 2002 के बाद भी आरोपी के कब्जे में या उपयोग में हो सकती है.