देश में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराध के मामले कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं.इन अपराधों में उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्य काफी आगे हैं.एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में अनुसूचित जाति के खिलाफ दर्ज 52 हजार 866 मामलों में से 51 हजार 656 मामले केवल 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में दाखिल हुए.यह कुल मामलों का 97.7 फीसदी हैं.केवल ये दर्ज मामले ही चिंता का विषय नहीं हैं,चिंता की एक बड़ी बात यह भी है कि अदालतों में इन मामलों के निपटारे की रफ्तार भी है.
एससी पर अत्याचार के मामले
सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून 1989 के एक रिपोर्ट जारी की है.इस रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में अनुसूचित जातियों (एससी) के खिलाफ देश भर में दर्ज कुल 52 हजार 866 मामले दर्ज हुए.इनमें से 51,656 मामले उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में दर्ज हुए.रिपोर्ट के मुताबिक अनुसूचित जाति के खिलाफ उत्तर प्रदेश में 12,287, राजस्थान में 8,651, मध्य प्रदेश में 7,732, बिहार में 6,799, ओडिशा में 3,576 और महाराष्ट्र में 2,706 मामले दर्ज हुए. इन छह राज्यों में कुल मामलों का करीब 81 फीसदी दर्ज किया गया.
रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में भारतीय दंड संहिता के साथ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम-1989 के तहत अनुसूचित जातियों के सदस्यों के खिलाफ अत्याचार के अपराधों से संबंधित कुल 52,866 मामलों में से 51,656 (97.7 फीसदी) मामले केवल 13 राज्यों में ही दर्ज हुए हैं.
एसटी पर अत्याचार के मामले
अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के खिलाफ ज्यादातर अत्याचार भी 13 राज्यों में केंद्रित थे, जहां 2022 में सभी मामलों के 98.91 फीसदी मामले दर्ज किए गए. अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के खिलाफ अपराध के ज्यादातर मामले इस कानून के तहत अत्याचार के मामलों में सबसे अधिक मामले मध्य प्रदेश में दर्ज किए गए.रिपोर्ट के मुताबिक एससी-एसटी कानून के तहत दर्ज कुल नौ हजार 735 मामलों में से सर्वाधिक 2,979 मामले मध्य प्रदेश में दर्ज किए गए. राजस्थान में 2,498, ओडिशा में 773, महाराष्ट्र में 691और आंध्र प्रदेश में 499 मामले दर्ज किए गए.
इस रिपोर्ट में चिंता की बात यह है कि सजा की दर में गिरावट दर्ज की गई है.रिपोर्ट से पता चलता है कि सरकार के दिशा-निर्देशों के बाद भी देश के 14 राज्यों के अधिकांश जिलों में अभी तक ऐसे मामलों के निपटारे में तेजी लाने के लिए विशेष अदालतों का गठन भी नहीं किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट से संबंधित 60.38 फीसद मामलों में आरोपपत्र दायर किए गए. वहीं 14.78 फीसदी मामलों में झूठे दावों या साक्ष्यों के अभाव में अंतिम रिपोर्ट लगा दी गई. वहीं साल के अंत तक 17,166 मामलों की जांच पूरी नहीं हुई थी. अनुसूचित जनजाति से संबंधित मामलों में 63.32 फीसदी मामलों में आरोपपत्र दाखिल किए गए थे.वहीं 14.71 फीसदी मामलों में अंतिम रिपोर्ट लगाई गई थी.इस दौरान एसटी के खिलाफ अत्याचार के 2,702 मामलों की जांच लंबित थी.
बिना अदालत के कैसे होगा मामलों का निपटारा
सबसे ज्यादा चिंता वाली बात यह है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम-1989 के तहत दर्ज मामलों में सजा की दर में आई गिरावट है.साल 2022 में सजा की दर 2020 के 39.2 फीसदी से गिरकर 32.4 फीसदी रह गई थी. इस रिपोर्ट में इस कानून के तहत दर्ज मामलों को निपटाने के लिए गठित विशेष अदालतों की कम संख्या की ओर भी इशारा किया गया है. देश के 14 राज्यों के 498 जिलों में से केवल 194 में ही विशेष अदालतों का गठन किया गया है.
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