कर्नाटक उपचुनाव : कांग्रेस ने तीनों सीटें जीती, BJP प्रदेश अध्यक्ष और येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र पर उठे सवाल

कर्नाटक उपचुनावों में कांग्रेस न सिर्फ अपना गढ़ कहलाने वाली सन्डुर सीट बरकरार रखने में कामयाब रही, बल्कि शिग्गाओं और चन्नापटना सीट भी क्रमश: भाजपा और जद(एस) से छीन लीं.

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बेंगलुरु:

कर्नाटक में तीन विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने शनिवार को भाजपा-जद(एस) गठबंधन को करारा झटका देते हुए जीत दर्ज की. उपचुनावों में कांग्रेस न सिर्फ अपना गढ़ कहलाने वाली सन्डुर सीट बरकरार रखने में कामयाब रही, बल्कि शिग्गाओं और चन्नापटना सीट भी बीजेपी और जेडीएस से छीन लीं.

सन्डुर, शिग्गाओं और चन्नापटना विधानसभा सीटों पर 13 नवंबर को हुए उपचुनावों में सत्तारूढ़ कांग्रेस और भाजपा-जद(एस) गठबंधन के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली थी. सन्डुर, शिग्गाओं और चन्नापटना का प्रतिनिधित्व करने वाले ई तुकाराम (कांग्रेस), बसवराज बोम्मई (भाजपा) और एचडी कुमारस्वामी (जदएस) के मई में हुए लोकसभा चुनाव में सांसद चुने जाने के बाद इन तीन सीटों पर उपचुनाव कराना जरूरी हो गया था. 

क्या गुटबाजी बनी बीजेपी की हार का कारण?
बीजेपी की गुटबाजी का फायदा उठाते हुए सत्तारूढ़ कांग्रेस ने तीनों सीटों पर जीत हासिल की. चेनपटना की सीट केंद्रीय मंत्री कुमारस्वामी के इस्तीफे से खाली हुई थी, जबकि संदूर की सीट कांग्रेस के ई तुकाराम के लोक सभा चुनाव जीतने के बाद खाली हुई. शिग्गांव की सीट बीजेपी के वरिष्ठ नेता बसवराज बोम्मई के लोक सभा चुनाव जीतने के बाद खाली हुई थी.

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तीनों ही पार्टियां परिवारवाद की शिकार हैं. जेडीएस सुप्रीमो देवेगौड़ा ने अपने बेटे कुमारस्वामी की जगह अपने पोते निखिल कुमारस्वामी को टिकट दिया. निखिल लगातार तीन चुनाव हार चुके हैं, जिससे उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल उठ रहे हैं।. निखिल को जिताने के लिए पूरा परिवार जुटा था, लेकिन वोटर्स ने उन्हें नकार दिया. हालांकि, निखिल कुमारस्वामी को जीताने के लिए तन मन धन से पूरा परिवार लगा था. 90 साल के देवेगौड़ा ने वहां कैंप किया. वोटर्स ने निखिल कुमारस्वामी को गंभीरता से नहीं लिया.

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इसके साथ साथ नुक्कड़ सभाओं में कांग्रेस के स्थानीय नेता कहीं ना कहीं किसी न किसी तौर पर गांव वालों को ये समझते रहे कि अगर निखिल जीते तो हासन जैसे माहौल यहां होंगे. निखिल के चचेरे भाई और पूर्व सांसद प्रज्वल रेवन्ना सेक्स टेप का असर भी यहां वोटर्स के बीच चर्चा का विषय रहा और निखिल के खिलाफ जो जीते वो एक वेटरन नेता है. सीपी योगेश्वर पांच बार पहले विधायक रह चुके है. वो चैनपटनासे कांग्रेस, बीजेपी निर्दलीय और समाजवादी पार्टी की टिकट पर भी पहले विधान सभा चुनाव जीत चुके है. उनकी छवि के जुझारू नेता की है और विधान सभा उपचुनाव से ठीक पहले उन्होंने बीजेपी के MLC के तौर पर इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हुए थे.

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डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया की रणनीति
राज्य के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने इस उपचुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया था. उनके भाई डीके सुरेश के लोक सभा चुनाव हारने के बाद, डीके शिवकुमार ने कुमारस्वामी को जिम्मेदार ठहराया. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी कुमारस्वामी को सबक सिखाना चाहते थे. कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने नुक्कड़ सभाओं में वोटर्स को समझाया कि निखिल की जीत से हासन जैसे माहौल यहां होंगे.

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शिग्गांव में लिंगायतों की नाराजगी
शिग्गांव एक लिंगायत बाहुल्य विधान सभा क्षेत्र है. यहां से बीजेपी नेता बसवराज बोम्मई के बेटे भरत बोम्मई को टिकट दिया गया, जिससे स्थानीय कार्यकर्ताओं में नाराजगी थी. लिंगायतों में इस बात को लेकर नाराजगी थी कि भरत बोम्मई को टिकट क्यों दिया गया. भरत 30 साल के हैं. यानी बीजेपी के दूसरे कार्यकर्ताओं को कभी मौका नहीं मिलेगा जो लंबे अरसे से पार्टी के लिए काम कर रहे थे वो हाशिए पर आ जाएंगे. इस सोच को हवा दी बासन गौड पाटिल जैसे वरिष्ठ लिंगायत नेता ने. येदयुरप्पा के बेटे बी वाई विजेंद्र प्रदेश पार्टी अध्यक्ष है. यानी बीजेपी का वो गुट जो येदयुरप्पा के बेटे को पार्टी अध्यक्ष के तौर पर पसंद नहीं करता. सभी एकजुट हो गए. नतीजा ये हुआ कि तमाम कोशिशों के बावजूद बसवराज बोम्मई के बेटे भरत बोम्मई हार गए. कांग्रेस के यासिर पठान यहां से जीते गए 

बीजेपी में अंदरूनी कलह
बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव सिटी रवि ने कहा कि पार्टी में अंदरूनी कलह के कारण ही उपचुनाव में हार हुई. उन्होंने कहा, "अगर सब एक होते तो सेफ होते, एक नहीं थे इसीलिए जनता ने नकार दिया."

बेल्लारी के संदूर विधान सभा सीट पर कांग्रेस ने सांसद ई तुकाराम की पत्नी अन्नपूर्णा को टिकट दिया और वह जीत गईं. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि उनकी पार्टी की जीत कार्यकर्ताओं को समर्पित है और बीजेपी के दुष्प्रचार का परिणाम उन्हें भुगतना पड़ा.

येदयुरप्पाविरोधी गुट
कर्नाटक प्रदेश बीजेपी का येदयुरप्पा विरोधी गुट उनके बेटे बी वाई विजेंद्र को प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर नहीं देखना चाहते. वरिष्ठ लिंगायत नेता बासन गौड पाटिल यतनाल और दलित नेता रमेश झारकीहोल्ली ने खुलकर बगावत की. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि भी चुपचाप हवा का रुख देखकर अपना पक्ष रखते हैं. कुल मिलाकर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बी वाई विजेंद्र की परेशानी बढ़ गई है और माना जा रहा है कि गुटबाजी से होने वाले भीतरघात को लेकर विजेंद्र ने वरिष्ठ नेताओं को पहले ही आगाह किया था.

तीनों ही सीटों पर जीत के बाद  मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि "उनकी पार्टी की जीत कार्यकर्ताओं को समर्पित है. बीजेपी ने MUDA से लेकर 5 गारंटियों और वक्फ के मामले।में उनके खिलाफ जो दुष्प्रचार किया. उसका परिणाम बीजेपी को भुगतना पड़ा."

सिद्धरमैया को लेकर बीजेपी कर्नाटक में काफी आक्रामक थी. विजेंद्र से लेकर कांग्रेस पार्टी के अंदर भी कयास लगाए जा रहे थे कि सिद्धरमैया के दिन मुख्य्मंत्री के तौर पर सीमित है. लेकिन  उपचुनावों के नतीजों से उनकी स्थिति बेहतर हुई है.

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