संसद के अब तक के मॉनसून सत्र (Monsoon Session) में दो ही मुद्दों पर बहस और हंगामा देखने को मिल रहा है. पहला मणिपुर हिंसा (Manipur Issue) और दूसरा दिल्ली सर्विस बिल (Delhi Service Bill). केंद्र सरकार ने इस बिल को 3 अगस्त को लोकसभा से पास कराया था. सोमवार (8 अगस्त) को गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने राज्यसभा में दिल्ली सर्विस बिल को पेश किया. इस दौरान विपक्ष खासकर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने इस बिल का विरोध किया. कांग्रेस नेता अभिषेक सिंघवी ने इस दौरान मोदी सरकार पर निशाना साधा. सिंघवी ने इस बिल पर केंद्र का समर्थन करने वाले राजनीतिक दलों को चेतावनी दी.
कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने दिल्ली सर्विस बिल पर चर्चा की शुरुआत की. उन्होंने कहा- "ये बिल संघीय ढांचे के खिलाफ है. इसके बाद मुख्यमंत्री दो सचिवों के नीचे आएगा यानी सचिव फैसला करेगा और मुख्यमंत्री देखेगा. सभी बोर्डों, कमेटियों के प्रमुख सुपर CM यानी गृह मंत्रालय से ही बनाए जाएंगे."
बिल का मकसद डर पैदा करना
सिंघवी ने कहा, "इस बिल का मकसद डर पैदा करना है. जो लोग इसका समर्थन कर रहे हैं या समर्थन करने की घोषणा कर चुके हैं, उन्हें यह सोचना चाहिए कि सबका नंबर आ सकता है." कांग्रेस नेता सिंघवी ने कहा- "लालकृष्ण आडवाणी जब गृहमंत्री थे, तो दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए बिल लेकर आए थे. बीजेपी ने पूर्ण राज्य के मुद्दे पर दिल्ली के दो चुनाव जीते थे. आज हम यह मांग कर रहे हैं कि संविधान ने जो अधिकार दिल्ली को दिए हैं, उन्हें मत छीनिए."
जाने-माने वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, " दोस्तों, ये बिल एक सिविल सर्विसेज अथॉरिटी बनाता है और उसे व्यापक शक्तियां देता है सुझाव देने की हर नियुक्ति, हर स्थानांतरण के बारे में- ग्रेड ए से लेकर दानिक्स अफसर तक. कौन किसी और की सरकार में वित्त सचिव बनेगा, कौन पीडब्ल्यूडी का सचिव बनेगा. उनके बीच अदला-बदली कब और कैसे होगी, ये माननीय LG करेंगे न कि चुनी हुई सरकार."
उन्होंने कहा, "यह सरकार इस बिल के जरिए सबकुछ कर रही है, जो पहले कभी नहीं किया गया. पहले किसी ने ऐसा क्यों नहीं किया? क्योंकि ऐसा करना इस सरकार की फितरत (स्वभाव) है." सिंघवी ने दिल्ली सर्विस बिल पर केंद्र को समर्थन देने की घोषणा करने वाले राजनीतिक दलों को चेतावनी देने के लिए जर्मन धर्मशास्त्री मार्टिन नीमोलर की कालजयी पंक्तियों, "पहले वे आए..." को दोहराया. उन्होंने कहा, "हमें सामूहिक रूप से इसका विरोध करना चाहिए, क्योंकि एक दिन यह संघवाद आपके दरवाजे पर दस्तक दे सकता है. सबका नंबर आएगा."
इन पंक्तियों का इस्तेमाल नीमोलर ने नाज़ीवाद के उदय के दौरान जर्मन बुद्धिजीवियों और धार्मिक नेताओं की चुप्पी की आलोचना करने के लिए किया था. ये लाइने नियमित रूप से उन लोगों पर हमला करने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं, जो सत्तावादी शासन के खिलाफ नहीं बोलते हैं.
ये बिल एक राजनीतिक धोखा-राघव चड्ढा
वहीं, राज्यसभा में AAP सांसद राघव चड्ढा ने कहा- "ये बिल एक राजनीतिक धोखा है. बीजेपी ने 1989, 1999 और 2013 के लोकसभा चुनाव के घोषणा-पत्र में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वादा किया था. आज भाजपा के पास मौका है, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दीजिए."
क्या है मामला?
दरअसल, 11 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधान पीठ ने अफसरों पर कंट्रोल का अधिकार दिल्ली सरकार को दिया था. साथ ही अदालत ने कहा था कि उपराज्यपाल सरकार की सलाह पर ही काम करेंगे. इस फैसले के एक हफ्ते बाद 19 मई को केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर इस फैसले को बदल दिया. सरकार ने ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार राज्यपाल को दे दिया. दिल्ली सर्विस बिल इसी अध्यादेश की जगह लेगा.
दिल्ली सर्विस बिल में किए गए कई बदलाव
गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली (अमेंडमेंट) बिल 2023 (GNCT) में सरकार ने कुछ बदलाव किए हैं. जैसे सेक्शन- 3ए जो अध्यादेश का हिस्सा था, उसे विधेयक से हटा दिया गया है. अध्यादेश के सेक्शन-3-ए में कहा गया था कि किसी भी अदालत के किसी भी फैसले, आदेश या डिक्री में कुछ भी शामिल होने के बावजूद विधानसभा को सूची-2 की प्रविष्टि 41 में शामिल किसी भी मामले को छोड़कर आर्टिकल 239 के अनुसार कानून बनाने की शक्ति होगी.
पिछले अध्यादेश के तहत NCCSA को संसद और दिल्ली विधानसभा में सालाना रिपोर्ट प्रस्तुत करना जरूरी था. हालांकि विधेयक इस अनिवार्यता को हटा देता है, जिससे रिपोर्ट को संसद और दिल्ली विधानसभा के समक्ष रखे जाने की जरूरत ही नहीं रहेगी.
प्रस्तावित बिल में सेक्शन 45-डी दिल्ली में अलग-अलग अथॉरिटी, बोर्डों, आयोगों और वैधानिक निकायों के अध्यक्षों और सदस्यों की नियुक्ति से संबंधित है. इस बिल में इस प्रावधान को हटा दिया गया है. बिल में नए जोड़े गए प्रावधान के तहत अब NCCSA समिति की सिफारिशों के अनुसार दिल्ली सरकार के बोर्डों और आयोगों में नियुक्तियां और तबादले करेंगे. इस समिति में मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव सदस्य होंगे और उसकी अध्यक्षता दिल्ली के मुख्यमंत्री करेंगे.
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