देशभर में ईसाई संस्थानों और पादरियों पर बढ़ते हमले को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया है कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रदान किए गए ईसाइयों पर हमलों के आंकड़े गलत हैं. देश के बाहर गलत संदेश दिया जा रहा है कि ईसाई खतरे में हैं. सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ के समक्ष इस मामले पर बहस हुई. भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से पेश होकर दलील दी. शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के आधार पर इस मामले पर ध्यान दिया था. हालांकि, उक्त आंकड़े गलत हैं.
याचिका से गलत संदेश जा रहा है: केंद्र सरकार
याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि कुल 500 घटनाएं हैं जिनमें ईसाइयों पर हमला किया गया था. हमने सब कुछ राज्य सरकारों को भेज दिया है. हमें जो भी जानकारी मिली, हमने उसे समेट लिया. बिहार में याचिकाकर्ता ने जो कुल संख्या दी है, वह पड़ोसियों के बीच आंतरिक झगड़े हैं. याचिका से जनता में गलत संदेश गया है. देश के बाहर ये संदेश भेजा जा रहा है कि ईसाई खतरे में हैं.
"आरोपों में कोई दम नहीं"
इससे पहले केंद्र सरकार ने ईसाइयों पर हमले की घटनाओं का खंडन किया था. कहा था कि इन आरोपों में कोई दम नहीं है. मीडिया में आई ऐसी कुछ रिपोर्ट झूठ पर आधारित राजनीति और एजेंडे से प्रेरित हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से कोर्ट में दाखिल हलफनामे के मुताबिक याचिका में जिन घटनाओं का जिक्र है वो गलत नजरिए से रिपोर्ट की गई हैं.वो ईसाइयों को निशाना बनाकर हुए हमले नहीं हैं. उनके पीछे की वजह अलग अलग रही हैं.कुछ मामले निजी रंजिश वाले हैं.
कुछ आपराधिक होड़ तो कुछ में लेनदेन से संबंधित भी थे. यानी ईसाई होने के नाते हमले का शिकार होने जैसी बात जांच में नहीं मिली. जांच से पता चला कि अधिकतर मामलों में पुलिस ने फौरन एक्शन भी लिया और नियमानुसार जांच पड़ताल की. - सुप्रीम कोर्ट ईसाई संगठनों द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है. - याचिका में आरोप लगाया गया ह कि देश में ईसाई पादरियों और चर्चों पर हमले बढ़ गए हैं. यह याचिका नेशनल सॉलिडेरिटी फोरम, इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया और बैंगलोर डायसिस के आर्कबिशप पीटर मचाडो द्वारा दायर की गई है .
याचिकाकर्ता ने अदालत से मांगा समय
याचिकाकर्ता की ओर से पेश कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि हलफनामा कल देर रात पेश किया गया है. इस पर जवाब देने के लिए समय दिया जाए. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को जवाब देने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है. इससे पहले सितंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा दखल दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को 8 राज्यों से घटनाओं पर उठाए गए कदमों पर वैरीफिकेशन रिपोर्ट मांगने के निर्देश दिए थे. MHA को दो महीने का वक्त दिया गया था. बिहार, हरियाणा, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से रिपोर्ट मांगने के आदेश दिए गए थे. MHA से कहा गया था कि वो राज्यों से FIR का पंजीकरण, जांच की स्थिति, गिरफ्तारी और चार्जशीट पर रिपोर्ट मांगे.
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