क्या राज्य खनिज संपदा वाली जमीन पर टैक्स लगा सकते हैं? केंद्र का SC में हलफनामा- रॉयल्टी से अधिक ना हो टैक्स

केंद्र ने कहा है कि रॉयल्टी खनिजों की अंतरराष्ट्रीय कीमत को ध्यान में रखते हुए तय की जाती है ताकि निर्यात को बढ़ावा देने और व्यापार घाटे को कम करने के लिए इनकी लागत और ऐसे खनिजों का उपयोग करके तैयार उत्पाद को अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी रखा जा सके .

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नई दिल्ली:

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर राज्य सरकारों के द्वारा खनिज पर रॉयल्टी से अधिक टैक्स लगाने का विरोध किया है. केंद्र ने अदालत से - राज्यों द्वारा रॉयल्टी से अधिक टैक्स लगाने की अनुमति ना देने को कहा है. केंद्र सरकार ने  सुप्रीम कोर्ट से कहा कि खनिज समृद्ध राज्यों द्वारा लगाए गए टैक्स से मुद्रास्फीति बढ़ेगी. खनन क्षेत्र में FDI में बाधा आएगी. भारतीय खनिज महंगा हो जाएगा. व्यापार घाटे में वृद्धि और राज्यों के बीच विषम आर्थिक विकास के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार कम प्रतिस्पर्धी हो जाएगा.

खनन मंत्रालय ने कहा है कि चूंकि खनिज अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे बिजली, स्टील, सीमेंट, एल्यूमीनियम आदि के लिए महत्वपूर्ण कच्चा माल हैं, इसलिए कीमतों में कोई भी वृद्धि राज्यों द्वारा लगाए गए अतिरिक्त उपकर के कारण ये खनिज देश में मुद्रास्फीति को बढ़ावा देंगे.

उदाहरण के लिए, यदि प्रमुख उत्पादक राज्यों में से एक द्वारा कोयले पर अतिरिक्त उपकर लगाया जाता है तो ऐसे राज्य से कोयला खरीदने वाले सभी राज्य बिजली शुल्क बढ़ाने के लिए मजबूर होंगे.जो सीधे मुद्रास्फीति को प्रभावित करेगा. 78% कोयला संसाधन ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में केंद्रित हैं. भारत का 55% वाणिज्यिक ऊर्जा उत्पादन कोयले पर निर्भर है और उत्पादित कोयले का 68% बिजली उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है. हलफनामे में कहा गया है कि देश भर में सुव्यवस्थित और न्यायसंगत तरीके से विकास को आगे बढ़ाने के लिए, प्रतिस्पर्धी कीमतों पर देश भर में खनिज आधारित कच्चे माल (लौह अयस्क और स्टील सहित) की उपलब्धता आवश्यक है, जिसमें कुछ राज्यों में संसाधन व खनिज की एकाग्रता के प्रभावों को विधायी रूप से संबोधित करना शामिल है.

केंद्र सबके लिए समान रूप से काम करता है
केंद्र के पास खनिज संसाधन संचालित विकास के स्थानीयकृत हिस्से बनाने के बजाय, देश भर में सामंजस्यपूर्ण खनिज विकास सुनिश्चित करके राष्ट्रीय सार्वजनिक हित को आगे बढ़ाने के कर्तव्य के साथ-साथ शक्ति भी है. एक गैर-सामंजस्यपूर्ण राजकोषीय व्यवस्था, कम खनिज संपन्न राज्यों को खनिज समृद्ध राज्यों से उच्च कीमतों पर कच्चे माल की खरीद करने के लिए मजबूर करेगी. केंद्र द्वारा निर्धारित रॉयल्टी की एक समान लेवी खेल के मैदान को समतल करती है, जिससे देश भर में घरेलू उद्योग को न्यायसंगत तरीके से बढ़ावा मिलता है.साथ ही राज्यों के लिए राजस्व सृजन भी सुनिश्चित होता है.

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रॉयल्टी खनिजों की अंतरराष्ट्रीय कीमत के आधार पर तय होती है
रॉयल्टी खनिजों की अंतरराष्ट्रीय कीमत को ध्यान में रखते हुए तय की जाती है ताकि निर्यात को बढ़ावा देने और व्यापार घाटे को कम करने के लिए इनकी लागत और ऐसे खनिजों का उपयोग करके तैयार उत्पाद को अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी रखा जा सके .यह सुनिश्चित करना कि खनिजों पर राजकोषीय शुल्क लगाने की शक्ति केंद्र सरकार के लिए आरक्षित है.- इसलिए खनिज बाजारों में अंतरराष्ट्रीय विकास के लिए राष्ट्रीय स्तर पर त्वरित और लचीली प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए मौलिक है.

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सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि राज्य टैक्स लगाएंगे या नहीं?
दरअसल राज्यों पर असर डालने वाले मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों के संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की है.राज्यों के टैक्स लगाने के अधिकार से जुड़ी 85 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हुई है. कोर्ट को यह तय करना है कि क्या राज्य खनिज संपदा वाली जमीन पर टैक्स लगा सकते हैं? यह मामला 25 साल से लंबित है. कोर्ट के फैसले से झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और उत्तर-पूर्व के खनिज समृद्ध राज्यों के कर राजस्व पर गंभीर असर पड़ सकता है.अदालत को टैक्स को लेकर केंद्र और राज्य सरकार की शक्तियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों की महत्वपूर्ण व्याख्या करनी है.

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ये मामला 2011 में 9 जजों की बेंच को भेजा गया था.तीन जजों की बेंच ने 9  जजों की बेंच को भेजे जाने के लिए 11 सवाल तैयार किए थे.इनमें महत्वपूर्ण टैक्स कानून के सवाल शामिल हैं जैसे कि क्या 'रॉयल्टी' को टैक्स के समान माना जा सकता है. क्या राज्य विधानमंडल भूमि पर टैक्स लगाते समय भूमि की उपज के मूल्य के आधार पर टैक्स का उपाय अपना सकता है.तीन जजों की पीठ ने इस मामले को सीधे  9  जजों के पास  भेजा  था. क्योंकि इस मामले में पांच जजों और सात जजों के संविधान पीठ के फैसलों के बीच विरोधाभास था .

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