खगोलीय मुठभेड़ : ऐतिहासिक घटना, जब भारत ने अपने ही सैटेलाइट को मार गिराया था

सन 2019 में किए गए भारत के एंटी-सैटेलाइट वैपन परीक्षण ने देश को अमेरिका, रूस और चीन के साथ एक विशेष क्लब में पहुंचा दिया.

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एंटी-सैटेलाइट परीक्षण का नेतृत्व रक्षा मंत्री के पूर्व वैज्ञानिक सलाहकार डॉ जी सतीश रेड्डी ने किया था.
नई दिल्ली:

यह भारत के इतिहास में किसी भी अन्य घटना से अलग एक खगोलीय मुठभेड़ थी, जिसमें करीब 300 किलोमीटर की दूरी पर हमला किया गया था. पांच साल पहले इसी दिन यानी 27 मार्च को भारत के रक्षा वैज्ञानिकों ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा बनाए गए एक लाइव सैटेलाइट को मार गिराया था. तब देश ने 'हिट-टू-किल' की अनूठी उपलब्धि का जश्न मनाया था.

रक्षा मंत्री के पूर्व वैज्ञानिक सलाहकार और परीक्षण का नेतृत्व करने वाले डॉ जी सतीश रेड्डी ने उस क्षण को याद किया. उन्होंने कहा, "एंटी-सैटेलाइट क्षमता भारत के स्पेस एसेट्स की सुरक्षा के लिए एक निवारक के रूप में काम करती है. इसका परीक्षण पांच साल पहले सुचारू रूप से और गुप्त रूप से आयोजित किया गया था."

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के वैज्ञानिक 27 मार्च 2019 को धैर्य के साथ इंतजार कर रहे थे. भारत द्वारा निर्मित सैटेलाइट माइक्रोसैट-आर नजर आने वाले क्षेत्र में आ गया था. बंगाल की खाड़ी में एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से एक मिसाइल दागी गई और तीन मिनट से भी कम समय के बाद सैटेलाइट टुकड़े-टुकड़े हो हो गया था.

इस अभियान का कोडनेम 'मिशन शक्ति' था. इसे एक बड़ी सफलता के रूप में देखा गया क्योंकि तब तक केवल अमेरिका, रूस और चीन ने ही एंटी-सैटेलाइट वैपन का परीक्षण किया था. इस परीक्षण को अंतरिक्ष में सर्जिकल स्ट्राइक करने जैसा भी बताया गया.

भारत ने काइनेटिक वैपन का उपयोग करके लो-अर्थ आर्बिटिंग सैटेलाइट को मार गिराया था और अपनी अंतरिक्ष संपत्तियों (space assets) की रक्षा करने की क्षमता का प्रदर्शन किया था. इस तरह भारत ने 50 से अधिक उपग्रहों के विशाल समूह के लिए खतरा पैदा करने वाले किसी भी सैटेलाइट को नष्ट करने की क्षमता हासिल की. इन सैटेलाइटों में देश ने 50 हजार करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है.

फिलहाल इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में उपग्रहों का सबसे बड़ा समूह है जिसकों संरक्षित करने की आवश्यकता है, क्योंकि इन पर हमला करना आसान है.

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उस दिन अपने संबोधन में पीएम नरेंद्र मोदी ने इस बात की पुष्टि नहीं की कि डीआरडीओ ने किस सैटेलाइट को मार गिराया है. इसके बाद, यह साफ हो गया कि यह माइक्रोसैट-आर नाम का सेटेलाइट था जिसे 24 जनवरी, 2019 को पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल के जरिए 283 किलोमीटर की ऊंचाई पर लॉन्च किया गया था.

डीआरडीओ के एक वैज्ञानिक ने कहा, 'मिशन शक्ति' ने प्रदर्शित किया कि भारत 300 किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा कर रहे किसी भी उपग्रह को सक्रिय रूप से मार सकता है. देश के पास कम से कम पंद्रह साल तक एंटी-सैटेलाइट वैपन का परीक्षण करने की क्षमता है.

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उस ऊंचाई से किसी सैटेलाइट को नीचे लाना आसान नहीं होता क्योंकि वह लगभग 28,080 किलोमीटर प्रति घंटे या 7.8 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से चल रहा होता है. इतने छोटे कण (जैसा कि उपग्रह इतनी दूरी से दिखाई देता है) को टारगेट करना एक बड़ी चुनौती थी.

बाद में इस बात की पुष्टि हुई कि भारत ने पृथ्वी डिफेंस व्हीकल मार्क-II नाम की एक नई मिसाइल प्रणाली का इस्तेमाल किया है, जो तेज गति से चलने वाले सैटेलाइट को निशाना बना सकती है और उन्हें गिरा सकती है. मिसाइल 13 मीटर लंबी थी और इसका वजन लगभग 20 टन था. इसने एकदम सटीक निशाना लगाया. 

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अंतरिक्ष में मलबा

अमेरिका सहित कई देशों को चिंता है कि इस तरह के परीक्षण से अंतरिक्ष में मलबा फैल जाएगा जो अन्य सैटेलाइट के लिए समस्या पैदा करेगा. पहले चीन द्वारा किए गए एंटी सैटेलाइट वैपन के टेस्ट की बहुत आलोचना हुई थी क्योंकि इससे अंतरिक्ष में मलबे के सैकड़ों टुकड़े फैल गए थे.

भारत ने तर्क दिया था कि परीक्षण से उत्पन्न मलबे के 270 से 300 टुकड़े अंतरिक्ष में तैर रहे लाखों टुकड़ों का एक छोटा सा हिस्सा हैं.

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जैसा कि नासा के तत्कालीन प्रमुख जिम ब्रिडेनस्टाइन ने दावा किया था, क्या भारत के सैटेलाइट किलर टेस्ट के कारण ऐसा मलबा फैला जिससे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन खतरे में पड़ गया? इसरो के पूर्व प्रमुख डॉ जी माधवन नायर ने कहा था, '300 किलोमीटर की ऊंचाई पर किया गया भारत का परीक्षण अंतरिक्ष में ज्यादा देर तक मलबा नहीं छोड़ सकता है.' और यह बात सही साबित हुई क्योंकि तब से सारा मलबा विघटित हो चुका है और जल चुका है.

'शैतान की नजरें'

अंतरिक्ष में जाने वाले भारत के एकमात्र अंतरिक्ष यात्री विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) राकेश शर्मा ने कहा कि मिशन शक्ति ने भारत को "अंतरिक्ष में 'बुरी' नजर से निपटने की क्षमता दी है."

नई दिल्ली में आज 'भविष्य के संघर्षों में एयरोस्पेस पावर पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार' में भारतीय वायु सेना के वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी ने कहा कि, "एयरोस्पेस शक्ति का विकास केवल तकनीकी कौशल का मामला नहीं है बल्कि उभरते खतरों और चुनौतियों का सामना करने में मानव नवाचार की सरलता और अनुकूलन क्षमता का भी एक प्रमाण है."

उन्होंने कहा कि, "अंतरिक्ष सैन्य अभियानों के संचालन के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उभरा है, जिसमें निर्बाध संचार, नेविगेशन और निगरानी क्षमताएं आधुनिक सैन्य बलों की उत्तरजीविता को बढ़ाएंगी. जैसे-जैसे राष्ट्र रणनीतिक लाभ, सैन्यीकरण और शस्त्रीकरण के लिए अंतरिक्ष-आधारित संपत्तियों पर तेजी से भरोसा कर रहे हैं अंतरिक्ष एक अपरिहार्य वास्तविकता बन गया है." 

'हथियारों की दौड़ नहीं'

विदेश मंत्रालय ने 2019 में कहा था- "भारत का बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ में शामिल होने का कोई इरादा नहीं है. हमने हमेशा कहा है कि अंतरिक्ष का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए. हम बाहरी अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण के खिलाफ हैं और अंतरिक्ष-आधारित परिसंपत्तियों की सुरक्षा को सुदृढ़ करने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का समर्थन करते हैं." भारत का मानना है कि बाहरी अंतरिक्ष मानव जाति की साझी विरासत है और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और इसके क्षेत्र में हुई प्रगति से होने वाले लाभों का संरक्षण और बढ़ावा देना सभी अंतरिक्ष-प्रगतिशील देशों की जिम्मेदारी है."

डीआरडीओ के पूर्व वैज्ञानिक डॉ रवि गुप्ता कहते हैं कि, "जब स्पेस एसेट्स की सुरक्षा और रणनीतिक हथियारों के खिलाफ रक्षा की बात आती है, तो प्रतिरोध सबसे अच्छा बचाव है. मिशन शक्ति ने भारत की निवारक क्षमताओं को एक बड़ी छलांग दी. और दिव्यास्त्र (अग्नि 5, जिसके 11 मार्च, 2024 को एक से अधिक इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल रीएंट्री व्हीकल टेस्ट किए गए) एक और बड़ी छलांग थी."

पूर्व वैज्ञानिक सलाहकार रेड्डी ने कहा, "मिशन शक्ति भारत द्वारा हासिल किया गया एक बड़ा तकनीकी मील का पत्थर था. परीक्षण के बाद न्यूनतम मलबा छोड़ना था और आज मिशन से उत्पन्न कोई भी मलबा अंतरिक्ष में मौजूद नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर यह परीक्षण दुनिया को तकनीकी क्षमता दिखाने के लिए किया गया था.'

तब से पांच साल हो गए हैं, और भारत ने दोबारा एंटी-सैटेलाइट वैपन टेस्ट नहीं किया है.

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