सुप्रीम कोर्ट में राजनीति के अपराधीकरण का मामला सुरक्षित, कई दलों ने माफी मांगी

माकपा की ओर से वकील ने बिना शर्त माफी मांगते हुए कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था. हमारा भी विचार है कि राजनीति का अपराधीकरण नहीं होना चाहिए. कोर्ट ने सीपीएम के वकील से कहा कि माफी से काम नहीं चलेगा.

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने में विफल रहने वाले राजनीतिक दलों का चुनाव चिन्ह निलंबित हो सकता है? क्या चुनाव आयोग ऐसी राजनीतिक पार्टी का चिन्ह निलंबित कर सकता है? दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने में विफल रहने वाले राजनीतिक दलों के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा नहीं करने वाली राष्ट्रीय पार्टी के खिलाफ उल्लंघन के मद्देनज़र पार्टी के चुनाव चिन्ह को फ्रीज या निलंबित रखा जाए. आयोग ने यह सुझाव सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन के मामले में दिया है. इस मामले की सुनवाई जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने की.

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माकपा की ओर से वकील ने बिना शर्त माफी मांगते हुए कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था. हमारा भी विचार है कि राजनीति का अपराधीकरण नहीं होना चाहिए. कोर्ट ने सीपीएम के वकील से कहा कि माफी से काम नहीं चलेगा. हमारे आदेशों का पालन करना होगा. वहीं, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के वकील ने निर्देशों का पालन नहीं करने के लिए बिना शर्त माफी मांगी. चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि एनसीपी ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 26 उम्मीदवारों को और माकपा ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 4 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. बहुजन समाज पार्टी की ओर से वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि बसपा ने एक उम्मीदवार को निष्कासित कर दिया, जब पार्टी को पता चला कि वह अपने आपराधिक इतिहास का खुलासा करने में विफल रहा है और एक झूठा हलफनामा दायर किया है.

वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 की धारा 16 ए के तहत शक्तियों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कपिल सिब्बल के लिखित दलीलों को नकार दिया. कांग्रेस के वकील ने कहा कि पार्टी ने अदालत के आदेश का पर्याप्त रूप से पालन किया है. विकास सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय जनता दल सबसे बड़ा डिफॉल्टर है, जिसमें 103 उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि वाले हैं, और जदयू ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 56 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि कोर्ट को इस बात पर विचार करना चाहिए कि गाइडलाइन कैसे तय की जाए. चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय पार्टियों द्वारा उल्लंघन के मामले में पार्टी के चुनाव चिन्ह को फ्रीज करने और निलंबित करने का प्रस्ताव रखा और कहा कि आपराधिक पृष्ठभूमि को सार्वजनिक करने के बावजूद राजनीति का अपराधीकरण बढ़ा है.

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एमिकस क्यूरी के वी विश्वनाथन ने कहा कि  सभी पक्षों को कानून के अनुसार अनिवार्य और बाध्य किया जाना चाहिए. उल्लंघन की स्थिति में चुनाव चिन्ह का निलंबन समयबद्ध हो सकता है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को अनिवार्य रूप से नेशनल पेपर, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर अपना ब्यौरा जारी करना होगा. फैसले में कहा गया था कि राजनीतिक पार्टियों को भी 48 घंटे के भीतर अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया पर विवरण अपलोड करना अनिवार्य होगा. पार्टियों को चुनाव आयोग को 72 घंटे के भीतर ब्यौरा देना होगा. सुप्रीम कोर्ट के 13 फरवरी, 2020 के आदेश में बिहार के चुनाव में उतरे उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा करने के लिए व्यापक प्रकाशन का निर्देश दिया था. इन निर्देशों का पालन ना करने के खिलाफ दायर अवमानना ​​याचिकाओं पर अदालत ने सुनवाई की.

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याचिकाओं में कहा गया है कि 2020 में बिहार चुनाव के दौरान दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया गया था. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में एक अवमानना याचिका दाखिल की गई है, जिसमें राजनैतिक दलों पर बिहार विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों का आपराधिक व अन्य ब्योरा सार्वजनिक करने के सुप्रीम कोर्ट के 13 फरवरी 2020 के आदेश का ठीक से पालन न करने का आरोप लगाया गया है. याचिका में चुनाव आयोग के अलावा भाजपा, कांग्रेस, राजद, जेडीयू और एलजेपी के पदाधिकारियों को पक्षकार बनाते हुए कार्यवाही की मांग की गई है. यह याचिका बृजेश सिंह ने दाखिल की है. इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा, मुख्य निर्वाचन अधिकारी बिहार एचआर श्रीनिवास, जेडीयू के महासचिव केसी त्यागी, राजद के बिहार प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह, एलजेपी के सिकरेट्री जनरल अब्दुल खालिक, कांग्रेस की बिहार चुनाव प्रबंधन समिति के अध्यक्ष रणदीप सिंह सुरजेवाला और भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महासचिव बीएस संतोष को प्रतिवादी बनाया गया है.

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कोर्ट से मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट के गत साल 13 फरवरी के आदेश का जानबूझकर उल्लंघन करने के कारण राजनैतिक दलों पर अवमानना की कार्यवाही की जाए. कहा गया है कि चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि वह राजनैतिक दलों द्वारा उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि का ब्योरा सार्वजनिक करने में चाल चलने और चुनाव आयोग के निर्देश न मानने पर राजनैतिक दलों के खिलाफ चुनाव चिन्ह (आरक्षण एवं आवंटन)आदेश 1968 के तहत कार्यवाही करे. अवमानना याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी के आदेश मे कहा था कि सभी दल अपने उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि के साथ पूरा ब्योरा वेबसाइट पर अपलोड करेंगे. साथ ही यह बताएंगे कि उन्होंने आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति को टिकट क्यों दिया और जिसकी आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है उसे टिकट क्यों नहीं दिया?

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कोर्ट ने आदेश में स्पष्ट किया था कि उम्मीदवार को चुनने का कारण उसकी योग्यता, उपलब्धियां, और मेरिट हो सकती है. सिर्फ जिताऊ होना आधार नहीं हो सकता है. याचिका में कहा गया है कि मोकामा विधानसभा से आरजेडी उम्मीदवार अनंत सिंह के खिलाफ बहुत से गंभीर मामले लंबित हैं, और आरजेडी ने उन्हें उम्मीदवार बनाने के पीछे कारण बताया है कि वह अन्य उम्मीदवारों से ज्यादा लोकप्रिय हैं और हमेशा गरीबों व निचले तबके के लोगों की मदद को तैयार रहते हैं. इसी वजह से उनके खिलाफ बहुत से आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं, जिसकी आपराधिक छवि न हो उसे उम्मीदवार क्यों नहीं बनाया, पर पार्टी ने कहा है कि ये किसी भी अन्य उम्मीदवार से ज्यादा लोकप्रिय हैं और इनके जीतने की ज्यादा संभावना है.

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इसी तरह याचिका में अन्य दलों के उम्मीदवारों के बारे में सार्वजनिक किये गए ब्योरे और टिकट देने के बताये गए कारणों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि राजनैतिक दलों ने बिना गंभीर हुए ब्योरा दिया है. याचिका में दागियों के चुनाव में खड़े होने के बारे में एडीआर की जारी रिपोर्ट का जिक्र भी किया गया है. यह भी कहा गया है कि कोर्ट का आदेश था कि उम्मीदवारों का यह ब्योरा प्रमुख अखबारों में प्रकाशित किया जाएगा लेकिन पार्टियों ने यह ब्योरा कम सर्कुलेशन वाले अखबारों में छपवाकर कर बस खानापूर्ति की है. किसी ने राष्ट्रीय अखबारों में ब्योरा नहीं छपवाया है.

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