क्या महिला पर IPC की धारा 375 के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट करेगा जांच

इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि हमारे अनुसार, केवल पुरुषों पर ही आरोप लगाया जा सकता है. अदालत ने इस मामले में विधवा द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई टालने करने से पहले नोटिस जारी किया.

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नई दिल्ली:

महिला के खिलाफ आईपीसी की धारा 375 के तहत रेप मामला दर्ज किया जा सकता है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट इसकी जांच करेगा. सुप्रीम कोर्ट के सामने यह सवाल शुक्रवार को उस वक्त आया जब एक 62 वर्षीय विधवा ने दावा किया कि उसे अनावश्यक रूप से फंसाया गया है. उसके मुताबिक उसके बेटे के खिलाफ झूठा बलात्कार का मामला दर्ज किया गया. यह मामला जस्टिस हृषिकेश रॉय और संजय करोल की पीठ के सामने आया जब कोर्ट ने इस बात पर संदेह व्यक्त किया कि क्या किसी महिला पर बलात्कार का मामला दर्ज किया जा सकता है. 

इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि हमारे अनुसार, केवल पुरुषों पर ही आरोप लगाया जा सकता है. बता दें कि कोर्ट ने मामले में विधवा द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई टालने करने से पहले नोटिस जारी किया. दरअसल भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 भारतीय कानून के तहत "बलात्कार" के अपराध को परिभाषित करती है. 

ये लगाए गए हैं आरोप

गौरतलब है कि संबंधित प्रावधान अपराधी के रूप में एक "पुरुष" के संदर्भ से शुरू होता है, जिसका अर्थ है कि आमतौर पर केवल पुरुषों पर ही बलात्कार के अपराध के लिए मामला दर्ज किया जा सकता है. आरोप है कि कि आरोपी-विधवा और उसका बेटा इस साल की शुरुआत में एक महिला के साथ बलात्कार करने में शामिल थे. कहा जाता है कि शिकायतकर्ता विधवा के बड़े बेटे के साथ फेसबुक के जरिए मुलाकात के बाद लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में थी.

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विधवा ने आरोप लगाया कि शिकायतकर्ता ने अंततः विधवा के घर में रहना शुरू कर दिया जब उसके बड़े बेटे ने एक वीडियो कॉल के माध्यम से बिना किसी अनुष्ठान या समारोह के शिकायतकर्ता से "शादी" कर ली. विधवा ने आगे कहा कि बड़ा बेटा, जो अमेरिका में रहता था, शिकायतकर्ता से कभी शारीरिक रूप से नहीं मिला था.

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महिला ने कही ये बात...

वहीं, इसी साल जनवरी में विधवा का छोटा बेटा विदेश से घर आया. इस मौके पर, विधवा ने कहा कि उसके परिवार के सदस्यों ने शिकायतकर्ता और उसके बड़े बेटे के बीच अनौपचारिक "विवाह" व्यवस्था को समाप्त करने के लिए उस पर दबाव डालना शुरू कर दिया.नतीजतन उस रिश्ते को खत्म करने के लिए पंचायत सदस्यों की उपस्थिति में शिकायतकर्ता के साथ एक समझौता  किया गया था. विधवा ने यह भी कहा कि समझौते के तहत शिकायतकर्ता को ₹11 लाख की राशि सौंपी गई थी, जिसे इस साल फरवरी में निष्पादित किया गया था.

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विधवा के अनुसार समझौते के कुछ सप्ताह बाद, शिकायतकर्ता ने विधवा और उसके छोटे बेटे के खिलाफ एक आपराधिक मामला दायर किया. जिसमें उन पर भारतीय दंड संहिता/आईपीसी की धारा 376 (2) (एन), गलत तरीके से बंदी बनाने (धारा 342), चोट पहुंचाने (धारा 323) और आपराधिक धमकी (धारा 506) देने का आरोप लगाया गया. पंजाब की एक निचली अदालत और पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा विधवा की गिरफ्तारी पूर्व जमानत की याचिका को अनुमति देने से इनकार करने के बाद, उसने राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया .  

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ये है पूरा मामला

बता दें कि उच्च न्यायालय ने पहले मामले में शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों पर ध्यान देने के बाद जमानत याचिका खारिज कर दी थी. शिकायतकर्ता ने दावा किया कि  तीन साल के रिश्ते के बाद सितंबर 2022 में विधवा के बड़े बेटे ने शादी करने का वादा किया था.शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि यह वादा तब किया गया था जब बड़े बेटे ने धमकी दी थी कि अगर वह किसी और से शादी करेगी तो वह आत्महत्या कर लेगा. उसने यह भी दावा किया कि यह बड़ा बेटा था जिसने उसे भारत आने तक अपनी मां के साथ रहने, कोर्ट मैरिज करने और उसे अपने साथ अमेरिका ले जाने के लिए कहा था.

उसने आरोप लगाया कि बाद में उसकी मां और  भाई ने उस पर छोटे भाई से शादी करने का दबाव बनाने की कोशिश की.ऐसा करने से इनकार करने के बाद, विधवा पर आरोप लगाया गया कि उसने शिकायतकर्ता को अपने छोटे बेटे के साथ एक कमरे में बंद कर दिया, जहां उसने शिकायतकर्ता के साथ बलात्कार किया और उसकी अश्लील तस्वीरें ली. 
शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि जब शिकायतकर्ता ने अपने माता-पिता से संपर्क करने की कोशिश की तो विधवा ने उसके पैरों पर गर्म चाय फेंक दी थी.

विधवा ने विरोध में कहा है कि यह एक मनगढ़ंत मामला है जिसमें बहुत देरी के बाद झूठे आरोप लगाए गए हैं. हालांक , उच्च न्यायालय ने राय दी कि ये ऐसे पहलू हैं जिन पर ट्रायल के दौरान निर्णय लिया जाना है और उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी.

गौरतलब है कि ऐसे ही मामले में, इस साल फरवरी में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना कि यद्यपि एक महिला बलात्कार का अपराध नहीं कर सकती है, लेकिन अगर वह लोगों के एक समूह द्वारा किसी महिला के साथ सामूहिक बलात्कार के कृत्य को सुविधाजनक बनाती है. तो उस पर आईपीसी के संशोधित प्रावधानों के अनुसार मुकदमा चलाया जा सकता है.

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