वोटबंदी? बिहार में करोड़ों लोगों को वोट डालने से रोकने की साजिश... आयोग से 11 दलों के नेताओं की शिकायत

कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, सीपीआई, सीपीआई समेत 11 विपक्षी दलों के प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार शाम को चुनाव आयोग के अधिकारियों से मुलाकात की. नेताओं ने कहा कि मतदाता सत्यापन के लिए मांगे गए 11 दस्तावेज ज्यादातर लोगों के पास नहीं हैं. इससे करोड़ों लोग मतदाता सूची से बाहर हो जाएंगे.

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बिहार में वोटर लिस्ट की जांच को लेकर 11 दलों के नेताओं ने बुधवार को चुनाव आयोग से मुलाकात की.
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  • बिहार में चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के रिवीजन पर विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई.
  • 11 दलों के नेताओं ने चुनाव आयोग से मुलाकात कर अपनी चिंताएं जाहिर कीं.
  • कांग्रेस ने कहा, सत्यापन के लिए मांगे गए दस्तावेज अधिकांश लोगों के पास नहीं हैं.
  • सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के नेता दीपांकर भट्टाचार्य ने इसे वोटबंदी करार दिया.
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नई दिल्ली:

बिहार में चुनाव से ऐन पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण के फैसले पर कांग्रेस समेत इंडिया ब्लॉक के दलों ने कड़ी आपत्ति जताई है. 11 दलों के नेताओं ने चुनाव आयोग से मुलाकात के बाद आरोप लगाया कि बिहार के करोड़ों लोगों को वोट डालने से बेदखल करने की व्यापक पैमाने पर तैयारी की जा रही है. नेताओं ने इसे वोटबंदी करार दिया.

कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, सीपीआई, सीपीआई समेत 11 विपक्षी दलों के प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार शाम को चुनाव आयोग के अधिकारियों से मुलाकात की. नेताओं ने कहा कि मतदाता सत्यापन के लिए मांगे गए 11 दस्तावेज ज्यादातर लोगों के पास नहीं हैं. इससे करोड़ों लोग मतदाता सूची से बाहर हो जाएंगे. इस तरह बिहार के गरीब और दूसरे राज्यों में काम करने वाले लोगों का वोट डालने का अधिकार खतरे में पड़ गया है.

बाद में सीपीआई (माले) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि चुनाव आयोग से मुलाकात के बाद हमारी चिंताएं और बढ़ गई हैं क्योंकि आयोग ने हमारे किसी भी सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं दिया.

कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग के साथ बैठक के दौरान बताया कि बिहार में 2003 में विशेष गहन पुनरीक्षण किया गया था, तब अगले लोकसभा चुनाव एक साल बाद और विधानसभा चुनाव दो साल बाद होने थे. लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में केवल कुछ महीनों का ही समय है. ऐसे में 2003 के बाद 22 साल में बिहार में हुए सभी चुनाव क्या गलत या अवैध थे?

कांग्रेस नेता ने कहा कि भारत के दूसरे सबसे ज्यादा मतदाताओं की आबादी वाले राज्य बिहार में अगर वोटर लिस्ट का विशेष गहन पुनरीक्षण करना ही था तो इसकी घोषणा चुनाव से ठीक पहले जून में क्यों की गई? इसे बिहार चुनाव के बाद कराया जा सकता था.

सिंघवी ने कहा कि बिहार में करीब आठ करोड़ मतदाता हैं. चुनाव में काफी कम समय बचा है. इतने कम समय में उन सभी का सत्यापन करना बहुत मुश्किल होगा. पहली बार कई तरह के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं जिन्हें इतने कम समय में जुटा पाना गरीब और वंचित वर्ग के लोगों के लिए व्यावहारिक रूप से असंभव होगा. 

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उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक से हर काम के लिए आधार कार्ड मांगा जाता रहा है लेकिन अब यह कहा जा रहा है कि अगर जन्म प्रमाण पत्र नहीं होगा तो आपको मतदाता नहीं माना जाएगा. एक कैटेगरी में उन लोगों के माता-पिता के जन्म का भी दस्तावेज मांगा गया है, जिनका जन्म समय 1987-2012 के बीच हुआ होगा. 

सिंघवी ने कहा कि प्रदेश में लाखों-करोड़ गरीब लोग होंगे जिन्हें इन कागजात को जुटाने के लिए महीनों की भागदौड़ करनी होगी. ऐसे में कई लोगों का नाम ही लिस्ट में शामिल नहीं हो पाएगा.
 

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