12 साल बाद भी भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ी याचिका पर केंद्र सरकार की तैयारी अधूरी, पीड़ितों में भारी रोष

2 और 3 दिसंबर, 1984 की दरमियानी रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली 'मिथाइल आइसोसाइनेट' गैस रिसने के बाद सरकारी आंकड़ों में 5,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी, लाखों लोग प्रभावित हुए थे. केंद्र ने मुआवजा राशि बढ़ाने के लिए दिसंबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट में सुधार याचिका दायर कर 7400 करोड़ की अतिरिक्त राशि की मांग की थी.

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पीड़ितों को मुआवजा बढ़ाने के लिए दिसंबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट में सुधार याचिका दायर की गई थी. (फाइल फोटो)
भोपाल:

12 साल बाद भी केन्द्र सरकार भोपाल गैस पीड़ितों का मुआवजा बढ़ाने से जुड़ी सुधार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिये तैयारी नहीं कर पाई. करीब 5 लाख पीड़ित परिवारों को उम्मीद थी लेकिन मंगलवार को उन्हें उस वक्त मायूसी हुई, जब केन्द्र सरकार ने कहा कि अभी इसके लिए पर्याप्त तैयारी नहीं है. मामले की अगली सुनवाई 11 अक्टूबर को होगी.

इस मामले में भोपाल गैस हादसे के पीड़ितों के बीच काम कर रहे संगठनों ने लापरवाही के लिए केन्द्र सरकार की आलोचना की है और मांग की है कि तीन हफ्ते के अंदर सरकार यह सुनिश्चित करे कि गैस हादसे की वजह से हुए वास्तविक नुकसान की तथ्यात्मक जानकारी पांच न्यायाधीशों की पीठ के सामने रखे.

भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा, "कल की सुनवाई में भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों को बताया कि वह सुनवाई के लिए अभी तैयार नहीं है और सरकार के निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं. याचिका दायर होने के 11 साल बीत जाने पर भी अभी तक भारत सरकार ने भोपाल के 5 लाख गैस पीड़ितों के कानूनी अधिकारों की रक्षा के लिए कोई मजबूत दलील पेश नहीं की है. अगले तीन हफ्ते में सरकार की कार्यवाही से ही यह ज़ाहिर होगा कि सरकार वास्तव में 5 लाख नागरिकों की कितनी परवाह करती है.”

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भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढिंगरा ने कहा, "हम आशा करते हैं कि सरकार इस समय का उपयोग करेगी और गैस काण्ड की वजह से हुई मौतों और इन्सानी सेहत को पहुँचे नुकसान के आंकड़े को सही करेगी ताकि सर्वोच्च न्यायालय के जज गैस काण्ड से पहुंचे वास्तविक नुकसान के बारे में गुमराह न हों."

भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के बालकृष्ण नामदेव ने कहा, "इस मामले में भारत सरकार के साथ-साथ हमने भी याचिका पेश की थी और हमारे सीमित संसाधनों के बावजूद हमारे वकील यूनियन कार्बाइड और डाव  केमिकल से 646 अरब रुपये के मुआवजे के लिए तथ्यों और तर्कों के साथ अदालत में तैयार थे. सरकार अपने वकील को समय पर निर्देश देने से क्यों रोक रही है?” 

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बता दें कि 2 और 3 दिसंबर, 1984 की दरमियानी रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली 'मिथाइल आइसोसाइनेट' गैस रिसने के बाद सरकारी आंकड़ों में 5,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी, लाखों लोग प्रभावित हुए थे. केंद्र ने मुआवजा राशि बढ़ाने के लिए दिसंबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट में सुधार याचिका दायर कर 7400 करोड़ की अतिरिक्त राशि की मांग की थी.

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