भीमा कोरेगांव मामला : आरोपी पी वरवर राव की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का विचार करने से इनकार

वरवर राव को मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए हैदराबाद जाने की इजाजत देने की याचिका पर विचार करने से इनकार, सुप्रीम कोर्ट ने उनसे निचली अदालत में याचिका दायर करने के लिए कहा

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भीमा कोरेगांव केस के आरोपी पी वरवर राव (फाइल फोटो).
नई दिल्ली:

भीमा कोरेगांव मामले (Bhima Koregaon case) में आरोपी पी वरवर राव (P Varavara Rao) को राहत नहीं मिली. सुप्रीम कोर्ट ने राव को मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए हैदराबाद जाने की इजाजत देने की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने उनसे इस राहत के लिए निचली अदालत में याचिका दायर करने के लिए कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने NIA अदालत से कहा है कि वह राव की याचिका दायर होने पर तीन सप्ताह के भीतर इसका निपटारा करे. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश कि, राव ग्रेटर मुंबई नहीं छोड़ेंगे, में संशोधन करने से इनकार किया. 

वरवर राव को इससे पहले दस अगस्त को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली थी. सुप्रीम कोर्ट ने उनको नियमित जमानत दे दी थी. NIA के कड़े विरोध के बावजूद उन्हें जमानत दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, वे 82 साल के हैं और ढाई साल तक हिरासत में रहे हैं. वरवर को बीमारियां भी हैं. वे काफी वक्त से ठीक नहीं हैं. ऐसे में वे मेडिकल जमानत के हकदार हैं. इस मामले में चार्जशीट दाखिल हुई है लेकिन कई आरोपी पकड़े नहीं गए हैं. कई आरोपियों की आरोपमुक्त करने की अर्जियां लंबित हैं.  

सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देते हुए शर्तें लगाई थीं कि वे ग्रेटर मुंबई के इलाके को नहीं छोड़ेंगे. वे अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करेंगे और किसी भी आरोपी के संपर्क में नहीं रहेंगे. जांच या गवाहों  को प्रभावित नहीं करेंगे. वे अपनी पसंद की चिकित्सा कराने के हकदार होंगे. 

सुप्रीम कोर्ट तेलुगु कवि और भीमा कोरेगांव - एल्गार परिषद के आरोपी पी वरवर राव द्वारा दायर नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई की थी. इसमें बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई था, जिसमें कोर्ट ने स्थायी मेडिकल जमानत देने से इनकार कर दिया था. 

13 अप्रैल को बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें तेलंगाना में अपने घर पर रहने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, लेकिन मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए अस्थायी जमानत की अवधि तीन महीने बढ़ा दी थी और ट्रायल में तेजी लाने के निर्देश जारी किए थे. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि अपराध की गंभीरता तब तक बनी रहेगी जब तक कि आरोपी को उसके द्वारा किए गए कथित अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाता.

वरवर राव वर्तमान में मेडिकल आधार पर जमानत पर हैं. उन्होंने वर्तमान विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से प्रस्तुत किया है कि अब आगे की कैद उनके लिए "मृत्यु की घंटी बजाएगी" क्योंकि बढ़ती उम्र और बिगड़ता स्वास्थ्य घातक है. याचिका में उल्लेख किया गया है कि एक अन्य आरोपी, 83 वर्षीय आदिवासी अधिकार एक्टिविस्ट फादर स्टेन स्वामी का जुलाई 2021 में हिरासत में रहते हुए निधन हो गया था. 

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याचिकाकर्ता ने कहा कि फरवरी 2021 में जमानत मिलने के बाद, उनकी तबीयत बिगड़ गई थी और उन्हें गर्भनाल हर्निया हो गया, जिसके लिए उन्हें सर्जरी करानी पड़ी. इसके अलावा, उन्हें अपनी दोनों आंखों में मोतियाबिंद के लिए भी ऑपरेशन कराने की आवश्यकता है, जो उन्होंने नहीं किया है. 

याचिका में तर्क दिया गया कि यह एक स्थापित कानून है और सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर जमानत पर वैधानिक रोक के बावजूद यूएपीए मामलों में जमानत दी जा सकती है.  

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एक फरवरी, 2021 को हाईकोर्ट ने 82 वर्षीय आरोपी को छह महीने के लिए जमानत दे दी थी और कड़ी शर्तें लगाई थीं. उनमें से एक यह थी कि राव को मुंबई में विशेष NIA कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को नहीं छोड़ना चाहिए. पीठ ने पाया था कि वृद्ध को निरंतर कारावास में रखना उनके स्वास्थ्य के प्रति असंगत है.

सुनवाई के दौरान जस्टिस यूयू ललित ने कहा कि यह साबित करने के लिए कुछ भी नहीं है कि उन्होंने छह महीने की चिकित्सा जमानत के दौरान स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया. हम शर्त लगाएंगे कि अगर वह जमानत की शर्तों का दुरुपयोग करते हैं तो उनकी जमानत रद्द कर दी जाएगी. वे 82 साल के हैं और बीमार भी हैं. वे पहले ही मेडिकल आधार पर डेढ़ साल से बाहर हैं, जबकि शुरुआत में उन्हें 6 महीने की जमानत दी गई थी. इस आदेश का NIA ने कभी विरोध नहीं किया. हो सकता है कि एजेंसी उस पर लगातार निगरानी रख रही हो.

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कोर्ट ने कहा कि, आपके पास इस बात का भी कोई सबूत नहीं है कि उसने अपनी जमानत अवधि के दौरान अब तक किसी भी प्रकार का मेल भेजा है. आपने उसे यह भी नहीं बताया कि ऐसी आशंका है कि वह अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर रहा है.  

वरवर के वकील आनंद ग्रोवर ने कहा - वे 82 साल के हैं और बीमारी भी हैं. अभी केस में आरोप भी तय नहीं हुए हैं. ट्रायल पूरा होने में दस साल लगेंगे. वे चाहते हैं कि स्टेन स्वामी की तरह वे जेल में ही मर जाएं.  

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NIA के लिए पेश ASG एसवी राजू ने नियमित जमानत देने पर आपत्ति जताते हुए कहा, वह उन लोगों में से एक हैं जिन्होंने नक्सलियों की विध्वंसक गतिविधियों को लाभ दिया है जिससे भारी तबाही हुई है और पुलिस और सुरक्षा कर्मियों के बीच कई मौतें हुई हैं. वह एक साधारण अपराधी नहीं है और भारत सरकार के खिलाफ आपराधिक गतिविधियों में शामिल है. उनकी रिहाई उचित नहीं है. उन पर खतरनाक गतिविधियों, विध्वंसक गतिविधियों के लिए मामला दर्ज किया गया है. यह देश के लिए खतरनाक है.

हलफनामे में NIA  ने कहा था, आरोपी संवैधानिक आधार पर राहत पाने का हकदार नहीं है क्योंकि उसके कृत्य "राज्य और समाज के हित के खिलाफ" हैं और उसका अपराध गंभीर है. सबूत बताते हैं कि राव और उनके सह-आरोपी "लगातार माओवादियों के एजेंडे को पूरा करने की प्रक्रिया में थे. वह एक बड़ी साजिश का हिस्सा था. राव पहले ही चिकित्सा आधार पर महीनों की जमानत का आनंद ले चुके हैं. 

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