आर्टिकल 19 Vs आर्टिकल 21: सोशल मीडिया पर नकेल कसने की तैयारी, 2 दिन में SC की तीन बेंचों ने दिखाई सख्ती

सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्टों को लेकर पिछले दो दिनों में सुप्रीम कोर्ट की तीन अलग-अलग बेंचों ने नकेल कसने की बात की है. जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट अब सोशल मीडिया को नियंत्रित करने को लेकर सख्त कदम उठाने की तैयारी कर चुका है.

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  • सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर अभद्र भाषा और ट्रोलिंग पर सख्त रुख अपनाते हुए अभिव्यक्ति की आजादी Vs जीने के अधिकार में संतुलन की जरूरत बताई.
  • जस्टिस सूर्य कांत की बेंच ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी आर्टिकल 19 के तहत है, लेकिन यह जीने के अधिकार आर्टिकल 21 को प्रभावित नहीं कर सकती.
  • जस्टिस नागरत्ना ने सोशल मीडिया पर गाइडलाइंस बनाने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सही मोल समझना चाहिए.
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नई दिल्ली:

सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग, अभद्र भाषा का इस्तेमाल और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर संस्थाओं व लोगों को निशाना बनाने को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत अब सख्त हो चली है. सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्टों को लेकर पिछले दो दिनों में सुप्रीम कोर्ट की तीन अलग-अलग बेंचों ने नकेल कसने की बात की है. जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट अब सोशल मीडिया को नियंत्रित करने को लेकर सख्त कदम उठाने की तैयारी कर चुका है. 

जस्टिस सूर्य कांत की बेंच ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट से मंगलवार को सबसे बड़ी टिप्पणियां आईं वरिष्ठतम जज जस्टिस सूर्य कांत की बेंच से. दिव्यांगों का मजाक उड़ाने के मसले से नाराज सुप्रीम कोर्ट ने समय रैना समेत पांच कॉमेडियंस को अदालत में तलब किया और जमकर लताड़ लगाई. यहां तक कह दिया कि आर्टिकल 19 यानी बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी आर्टिकल 21 यानी जीने के अधिकार को दबा नहीं सकती. अगर दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा होगी तो जीने का अधिकार प्रभावी होगा.  उन्होंने कहा-

  • यह बहुत ही परेशान करने वाली बात है. हम जो कर रहे हैं, वह भावी पीढ़ी से जुड़ा है.
  • हम जो करते हैं, उसका कोई दुरुपयोग न करे, यह भी सुनिश्चित करना होगा.  
  • एक संतुलन होना चाहिए. हमें नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करनी है. लेकिन ऐसा ढांचा भी होना चाहिए, जिससे किसी की गरिमा का हनन न हो.
  • व्यक्तिगत कदाचार के जिन मामलों की जांच चल रही है, उनकी जांच जारी रहेगी. 

कोर्ट ने कहा, खुली बहस होनी चाहिए

जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने कहा कि गरिमा का अधिकार उस अधिकार से भी उपजता है जिस पर कोई और दावा कर रहा है. उन्होंने अटॉर्नी जनरल आर वेंकेटरमनी से कहा कि इस मुद्दे पर गाइडलाइंस के लिए हम और समय दे सकते हैं. हम दिशानिर्देशों का परीक्षण करना चाहेंगे. आपके पास ऐसे दिशानिर्देश होने चाहिए जो संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप हों, जिनमें दोनों पहलू शामिल हों. कोर्ट का कहना था कि जहां स्वतंत्रता की सीमा समाप्त होती है और जहां कर्तव्य शुरू होते हैं.  हम इस पर खुली बहस का आह्वान करना चाहेंगे.  बार के सदस्य समेत सभी हितधारक इसके लिए आमंत्रित हैं. 

भाषा के स्तर पर जस्टिस सुधांशु धूलिया गंभीर

वहीं लगातार दूसरे दिन सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने मध्य प्रदेश के कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय के सोशल मीडिया पर डाले गए कार्टून में प्रधानमंत्री और आरएसएस की गरिमा को धूमिल करने वाली पोस्ट को लेकर आड़े हाथों लिया. जस्टिस धूलिया ने गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि आजकल कुछ लोग ऐसी चीजें भी लिखते हैं, जिसमें भाषा का स्तर उचित नहीं होता है. जिसको जो कुछ भी मन में आता है, वह लिख देता है. इस पर गंभीर कदम उठाने होंगे. 

जस्टिस नागरत्ना ने गाइडलाइंस की जरूरत बताई

इससे पहले, सोमवार को जस्टिस नागरत्ना की अगुआई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनोली के खिलाफ हेट स्पीच के केस में FIR दर्ज कराने वाले वजाहत खान की याचिका की सुनवाई के दौरान गंभीर टिप्पणी की. कोर्ट ने विवादास्पद पोस्ट पर चिंता जताते हुए आम लोगों के लिए भी सोशल मीडिया पोस्ट पर गाइडलाइंस बनाने की जरूरत बताई. 

जस्टिस नागरत्ना का कहना था कि नागरिक स्वयं संयम क्यों नहीं रख सकते? नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मोल समझना चाहिए. अगर वो ऐसा नहीं करेंगे, तो सरकार हस्तक्षेप करेगी. कोई नहीं चाहता कि सरकार हस्तक्षेप करे. उनका कहना था कि अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर समुचित प्रतिबंध सही है. यह 100% पूर्ण अधिकार नहीं हो सकता. कई नागरिक इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर रहे हैं. वे बस एक बटन दबाते हैं और सब कुछ ऑनलाइन पोस्ट हो जाता है. 

जस्टिस नागरत्ना ने सवाल उठाया कि ऐसे मामलों से अदालतें आखिर क्यों पटी पड़ी हैं? नागरिकों के लिए दिशानिर्देश क्यों ना हों? हालांकि इन टिप्पणियों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने तीन अन्य राज्यों में वजाहत खान को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण की अवधि बढ़ा दी. 

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CJI गवई ने भी दर्ज कराया था केस

गौरतलब है कि मई में जस्टिस सूर्यकांत पर आपत्तिजनक पोस्ट करने के मामले में CJI बी आर गवई ने स्वत: संज्ञान लिया था और चंडीगढ़ के एक यूट्यूबर के खिलाफ आपराधिक अवमानना का मामला दर्ज करने का निर्देश दिया था. उन्होंने यूट्यूब चैनल को वीडियो का प्रकाशन बंद करने और वीडियो को तुरंत हटाने का निर्देश दिया था. 

CJI गवई ने कहा था कि संविधान बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन इस तरह का अधिकार उचित प्रतिबंधों द्वारा निर्धारित है. इस न्यायालय के जज के संबंध में मानहानिकारक आरोप लगाने या तिरस्कारपूर्ण प्रकृति के आरोप लगाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. यह न्यायपालिका को बदनाम करता है.  

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सॉलिसिटर जनरल बोले, नया नजरिया जरूरी

इस मुद्दे पर सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता ने NDTV से बातचीत में कहा कि संचार के एक माध्यम के रूप में इंटरनेट उन पारंपरिक माध्यमों से बिल्कुल अलग और विशिष्ट है, जिनके जरिए अब तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग किया जाता रहा है. सोशल मीडिया के दुरुपयोग और इसकी तेज़ी से वैश्विक पहुंच के कारण गंभीर व्यक्तिगत और सामाजिक क्षति की आशंका को देखते हुए इस माध्यम के प्रति एक बिल्कुल अलग न्यायिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है. 

तुषार मेहता ने कहा कि इस स्वतंत्रता पर हालांकि अंकुश नहीं लगाया जा सकता, लेकिन प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए विकसित पारंपरिक न्यायशास्त्र (jurisprudence) की मदद से उचित प्रतिबंधों की जांच नहीं की जा सकती. उस समय अदालतें इंटरनेट, सोशल मीडिया और इसके गैर-ज़िम्मेदाराना उपयोग के अपरिहार्य परिणामों के बारे में सोच भी नहीं पाती थीं. 

'उचित प्रतिबंध भी नहीं मानते सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म' 

उनका कहना था कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंसानों की व्यसनकारी (addictive) प्रकृति का फायदा उठाते हैं और अहंकार के कारण उचित प्रतिबंधों को भी मानने से इनकार करते हैं, वैधानिक नियमों का पालन तो दूर की बात है. इसके खतरनाक परिणाम सामने आते हैं. 

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उन्होंने विश्वास जताया कि हमारी न्यायपालिका अन्य देशों की तरह प्रतिबंधों की तर्कसंगतता की सार्थक व्याख्या करके उचित प्रतिक्रिया देगी.  हर देश इस खतरे से जूझ रहा है. मुझे यकीन है कि भारत इस बारे में ऐतिहासिक फैसले से दुनिया को समाधान प्रदान करके मिसाल बनेगा. 

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