सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर अभद्र भाषा और ट्रोलिंग पर सख्त रुख अपनाते हुए अभिव्यक्ति की आजादी Vs जीने के अधिकार में संतुलन की जरूरत बताई. जस्टिस सूर्य कांत की बेंच ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी आर्टिकल 19 के तहत है, लेकिन यह जीने के अधिकार आर्टिकल 21 को प्रभावित नहीं कर सकती. जस्टिस नागरत्ना ने सोशल मीडिया पर गाइडलाइंस बनाने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सही मोल समझना चाहिए.