- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि धर्म बदलकर ईसाई धर्म अपनाने वालों को अनुसूचित जाति के लाभ नहीं मिलने चाहिए
- कोर्ट ने यूपी सरकार को ऐसे लोगों का पता लगाकर लाभ से वंचित करने के लिए 4 महीने का समय दिया है
- हाईकोर्ट ने महाराजगंज के जितेंद्र साहनी के धर्म की 3 महीने में जांच करके कार्रवाई करने का निर्देश भी दिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि धर्म बदलकर ईसाई धर्म अपनाने वाले लोगों को अनुसूचित जाति (SC) के तहत दिए जाने वाले लाभ नहीं मिलने चाहिए. अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि इस तरह का कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति के लाभ न ले पाए. कोर्ट का कहना था कि धर्म बदलने के बाद एससी का दर्जा कायम रखना संविधान के साथ धोखाधड़ी है.
कोर्ट ने प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को ऐसे मामलों की पहचान करके कार्रवाई करने के लिए 4 महीने का समय दिया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारत सरकार के कैबिनेट सचिव और यूपी के मुख्य सचिव को अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के मामलों के साथ-साथ कानून के प्रावधानों की भी जांच करने और कानून के अनुसार कार्य करने का निर्देश दिया है.
हाईकोर्ट की जस्टिस प्रवीण कुमार गिरी की बेंच ने महराजगंज के एक मामले में जितेंद्र साहनी की अर्जी खारिज करते हुए ये आदेश दिया. साहनी ने हिंदू देवी देवताओं का मजाक उड़ाने और वैमनस्य को बढ़ावा देने के आरोप के आरोप में महराजगंज कोर्ट में चल रही कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी, जिसे हाईकोर्ट ने ठुकरा दिया.
जितेंद्र साहनी के खिलाफ 2023 में महराजगंज थाने के सिंदुरिया थाने में आईपीसी की धारा 153-ए और 295-ए में मामला दर्ज हुआ था. कोर्ट में आवेदक साहनी के वकीलों ने झूठा फंसाए जाने का आरोप लगाया और कहा कि उसने अपनी जमीन पर ईसा मसीह के वचनों का प्रचार करने के लिए एसडीएम से अनुमति मांगी थी, लेकिन उसे झूठा फंसा दिया गया.
वकील ने कोर्ट में कहा कि एसडीएम ने 10 दिसंबर 2023 को आदेश में कहा था कि साहनी ने बलुआही धुस चौराहा पर एक तम्बू लगाया, जहां बड़ी संख्या में जुटे लोगों के बीच ईसा मसीह की प्रार्थना सभा आयोजित की गई थी. वकील ने दलील दी कि आरोप पत्र में गवाहों ने एफआईआर में दिए गए अभियोजन के बयान को सपोर्ट नहीं किया है.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सवाल उठाया कि आवेदक ने अर्जी के साथ दायर हलफनामे में अपना धर्म 'हिंदू' बताया है, लेकिन पुलिस जांच में कुछ अलग ही सामने आया. सरकार की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि एक गवाह का बयान है कि जितेंद्र साहनी मूल रूप से केवट समुदाय से था, बाद में उसने ईसाई धर्म अपना लिया और पादरी बन गया. वह हिंदू धर्म के गरीब लोगों को प्रलोभन देकर ईसाई बनाना चाहता था.
सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने कार्यवाही रद्द करने की मांग खारिज कर दी और कहा कि संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 में कहा गया है कि हिंदू, सिख या बौद्ध के अलावा किसी अन्य समुदाय से संबंधित कोई भी व्यक्ति अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि ईसाई धर्म अपनाने पर कोई व्यक्ति अपनी मूल जाति का नहीं रह जाता.
कोर्ट ने महाराजगंज के जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वह जितेंद्र साहनी के धर्म की तीन महीने में जांच करें और यदि वह जालसाजी का दोषी मिले तो सख्त कार्रवाई करें ताकि भविष्य में ऐसे झूठे हलफनामे दायर न किए जा सकें.














