"अग्निपथ योजना को मनमाना नहीं कहा जा सकता...", सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका

मामले की सुनवाई के दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि भर्ती के लिए निहित अधिकार नहीं हो सकता है.

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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने अग्निपथ योजना को लेकर दाखिल याचिका पर सोमवार को सुनवाई की. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि इस योजना को मनमाना कहना गलत होगा.साथ ही कोर्ट ने इस याचिका को खारिज भी किया. अदालत ने कहा कि सशस्त्र बलों में अल्पकालिक भर्ती के लिए केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना को मनमाना नहीं कहा जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के 27 फरवरी के फैसले के खिलाफ उस याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें अग्निपथ योजना की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा गया था.

मामले की सुनवाई के दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि भर्ती के लिए निहित अधिकार नहीं हो सकता है. बता दें कि अग्निपथ योजना को पिछले साल चार साल की अवधि के लिए तीनों सशस्त्र बलों के डिवीजनों में युवाओं को शामिल करने के लिए पेश किया गया था.

पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह योजना मनमानी नहीं है और कोई वचनबद्धता यहां लागू नहीं की जा सकती है क्योंकि यह हमेशा अति महत्वपूर्ण सार्वजनिक हित पर निर्भर है. याचियाकर्ता वकील एम एल शर्मा ने व्यक्तिगत रूप से पेश होकर तर्क दिया कि इस योजना को संसद द्वारा मंजूरी दिए बिना पारित नहीं किया जाना चाहिए था. एम एल शर्मा ने कहा कि जब तक संसद इसे मंजूरी नहीं देती, यह नहीं किया जा सकता है. याद हो कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सशस्त्र बलों में अल्पावधि भर्ती के लिए अग्निपथ योजना देश के लिए राष्ट्रीय हित में थी, ताकि फुर्तीले और शारीरिक रूप से सक्षम व्यक्तियों से युक्त बेहतर सुसज्जित बल हों.

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उन्होंने आगे कहा कि कोविड का हवाला देते हुए कई बार परीक्षाएं स्थगित की गईं और अचानक जून में अग्निपथ योजना की घोषणा की गई और वायु सेना के लिए परीक्षाएं हुईं लेकिन परिणाम प्रकाशित नहीं किए गए. पीठ ने इस याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि उम्मीदवारों के पास भर्ती प्रक्रिया को पूरा करने की मांग करने का कोई निहित अधिकार नहीं है. इसपर वकील शर्मा ने जोर देकर कहा कि इन लोगों की भर्ती होने पर भी अग्निपथ योजना प्रभावित नहीं होगी.

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केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले ने इन मुद्दों से विस्तार से निपटा है.एक अन्य संबंधित मामले में एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करते हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि यह वायु सेना की नियमित भर्ती के संबंध में है.

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उन्होंने कहा कि एक प्रक्रिया शुरू होती है और लिखित परीक्षा होती है. उसके बाद एक मेडिकल टेस्ट होता है और सब कुछ किया जाता है. उसके बाद रैंक आदि दिखाते हुए एक अस्थाई सूची प्रकाशित की जाती है.पीठ 17 अप्रैल को भूषण के मामले पर अलग से सुनवाई करने पर सहमत हुई लेकिन अन्य दो याचिकाओं को खारिज कर दिया.  

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