राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने सोमवार को जाति आधारित जनगणना की वकालत की है. RSS ने इसे लोगों के कल्याण के लिए सही बताते हुए कि जातिगत जनगणना का इस्तेमाल चुनावों में राजनीतिक हथियार के तौर पर नहीं होना चाहिए. संघ ने यह भी कहा कि सरकार को सिर्फ डेटा के लिए जातिगत जनगणना करवानी चाहिए, ताकि इसका इस्तेमाल कल्याणकारी योजनाएं बनाने में हो सके.
केरल के पलक्कड़ में 31 अगस्त से चल रही तीन दिन की समन्वय बैठक के आखिरी दिन RSS ने ये बातें कही और BJP की अगुवाई वाले NDA सरकार को बड़ा मैसेज दे दिया. RSS के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा- "हमारे हिंदू समाज में जाति बहुत संवेदनशील मुद्दा है. जनगणना हमारी राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के लिए अहम है. इसे बहुत गंभीरता के साथ किया जाना चाहिए. किसी जाति या समुदाय की भलाई के लिए भी सरकार को आंकड़ों की जरूरत होती है. ऐसा पहले भी हो चुका है, लेकिन इसे सिर्फ समाज की भलाई के लिए किया जाना चाहिए. जातिगत जनगणना को चुनावों का पॉलिटिकल टूल नहीं बनाया जाना चाहिए."
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जातीय जनगणना का BJP न तो खुलकर समर्थन करती है और नहीं खुलकर विरोध करती है. हालांकि, BJP ने बिहार में जातिगत सर्वे का समर्थन किया है. RSS के स्थिति साफ कर देने से क्या अब माना जाए कि जातीय जनगणना जल्द ही होगी. आइए जानते हैं इसपर क्या है एक्सपर्ट्स की राय:-
RSS को जातिगत जनगणना से नहीं है परहेज
पूर्व राज्यसभा सांसद और RSS विचारक राकेश सिन्हा कहते हैं, "RSS ने आज के समन्वय बैठक में 3 चीजें साफ कर दी हैं. पहली- जातिगत जनगणना से परहेज नहीं है. परहेज होना तब होता है, जब आप किसी चीज के आयामों को नहीं समझते हैं. RSS को जातीय जनगणना से इसलिए परहेज नहीं हैं, क्योंकि इसके डेटा का इस्तेमाल समाज के अंतिम व्यक्ति तक होना चाहिए. बहुत कोशिशों के बाद भी कभी-कभी आंकड़े नहीं होने के कारण प्राथमिकताएं तय नहीं हो पाती हैं. अधिकतम लाभ पिछड़े वर्गों को नहीं मिल पाता है. इसलिए एक कल्याणकारी राज्य को जातिगत जनगणना का इस्तेमाल लोगों के हित के लिए करना चाहिए. दूसरी- जातिगत जनगणना का इस्तेमाल राजनीतिक उद्देश्य से नहीं होना चाहिए. अगर इसका इस्तेमाल राजनीतिक तौर पर होता है, तो इससे समाज की मानसिकता विकृत होती है. आखिर में हम अपने पड़ोसी से ही नफरत करने लगते हैं."
जातिगत जनगणना से जुड़ा पक्ष है आरक्षण
सिन्हा कहते हैं, "RSS ने एक तीसरी बात भी कही है. RSS ने कहा कि आरक्षण, जातिगत जनगणना से जुड़ा हुआ एक पक्ष है. RSS के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने भी कहा है कि आरक्षण यथार्थ है और आवश्यकता है. उसमें किसी भी तरह का बदलाव आता है, तो वो समुदाय के हित में होना चाहिए. इसमें बाहर से दखल नहीं होना चाहिए."
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जाति आधारित पार्टियां उठा सकती हैं फायदा
क्या जातिगत जनगणना का जाति आधारित पार्टियां फायदा नहीं उठाएंगी? इसके जवाब में पूर्व पत्रकार विजय त्रिवेदी कहते हैं, "बेशक जातिगत जनगणना का कल्याणकारी कामों में इस्तेमाल होना चाहिए. इस पर भी लंबी बहस हो रही थी. लेकिन कांग्रेस और रिजनल पार्टियों के लिए ये बड़ी ताकत होगी. संभव है कि इसका चुनावी राजनीति में भी इस्तेमाल हो. देखा जाए तो कल्याणकारी राजनीति या कल्याणकारी योजनाएं बस बहाना है. असली मकसद तो राजनीति है. अब विधानसभा चुनाव को लेकर हरियाणा में BJP की बैठक हो रही है. वहां आप टिकटों के लिए क्या तय कर रहे हैं... जाति ही तो देख रहे हैं ना."
NDTV के कंसल्टिंग एडिटर संजय सिंह कहते हैं, "जातिगत जनगणना पर RSS के स्टैंड के बाद BJP के लिए संशय की स्थिति जरूर हो गई है. क्योंकि दोनों के को-ऑर्डिनेशन में ये बात नहीं कही गई है. कई लोगों का यह भी मानना है कि RSS ने अगर ये बात कही है, तो BJP के साथ समन्वय के बाद ही ऐसा किया गया होगा. दूसरा पक्ष ये भी कहता है कि सरकार को सही में अगर जातिगत जनगणना करना है, हो सकता है कि इससे उनके कैडर के अंदर रोष कम हो जाए."
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