World Humanitarian Day 2022: हेल्थ सेक्टर में इन 5 लोगों की ह्यूमिनिटी को हर कोई करता है सलाम और देते हैं मिसाल

World Humanitarian Day: इस साल वर्ल्ड ह्यूमिनिटी डे का थीम 'ह्यूमन रेस' है. आइए जानते हैं उन डॉक्टरों की मिसालें, जिन्होंने बताया कि आखिर डॉक्टर को क्यों दिया जाता है भगवान का दर्जा..

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World Humanitarian Day 2022: इस साल वर्ल्ड ह्यूमिनिटी डे का थीम 'ह्यूमन रेस' है.

World Humanitarian Day 2022: हर साल 19 अगस्त को दुनिया मानवतावादी दिवस मनाती है. पहली बार 19 अगस्त, 2009 को यह दिन मनाया गया था. इस दिन मानवता की मिसाल पेश करने वाले रियल लाइफ हीरोज का सम्मान किया जाता है. दूसरों को भी प्रेरित किया जाता है कि वह किसी भी परिस्थिति में लोगों की मदद करना न छोड़ें. हेल्थ सेक्टक में ऐसे कई लोग हैं जो मिसाल बने हुए हैं. इस साल वर्ल्ड ह्यूमिनिटी डे का थीम (World Humanity Day Theme) 'ह्यूमन रेस' है. आइए जानते हैं उन डॉक्टरों की मिसालें, जिन्होंने बताया कि आखिर डॉक्टर को क्यों दिया जाता है भगवान का दर्जा.

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वर्ल्ड ह्यूमिनिटी डे का इतिहास (World Humanity Day History)

इस दिन का इतिहास 19 अगस्त, 2003 में बगदाद स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय की एक आतंकवादी घटना से जुड़ा है. उस हमले में सयुंक्त राष्ट्र के शीर्ष प्रतिनिधि सर्जिओ विएरा डी मेलो और उनके 21 साथी मारे गए थे. उनकी मौत के 3 साल बाद 2006 में उनकी फैमिली और दोस्तों ने मानवीय संकटों से पीड़ितों की मदद के लिए 'सर्जिओ विएरा डी मेलो फाउंडेशन' की स्थापना की. इसी फाउंडेशन के काम की वजह से यूएन ने 19 अगस्त को 'वर्ल्ड हुमनिटरियन डे' मनाने का फैसला किया. ह्यूमिनिटी के अवसर पर आइए आपको भारत के उन पांच रियल हीरोज से मिलवाते हैं, जो नि:स्वास्थ भाव से समाज की सेवा में जुटे हैं और मानवता की ऐसी मिसाल पेश कर रहे हैं जो हर पीढ़ी को प्रेरित करेगी. 

मानवता की मिसाल बनी ये हस्तियां | These People Became An Example Of Humanity

प्रो. टीके लाहिड़ी 

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में सेवा देने वाले प्रो. डॉ. टीके लाहिड़ी (डॉ. तपन कुमार लाहिड़ी) को कौन नहीं जानता. उनका नाम देश के बड़े कार्डियोलॉजिस्ट में आता है. रिटायरमेंट के बाद आज 81 साल की उम्र में भी वे मरीजों का मुफ्त इलाज करते हैं और हर दिन कई मरीजों तक अपनी सेवा पहुंचाते हैं. डॉ. लाहिड़ी रिटायरमेंट के पहले और बाद में मिलने वाली सैलरी और पेंशन की पाई-पाई गरीबों की सेवा में दान कर रहे हैं. उनकी तुलना डॉ. विधानचंद्र राय से भी जाती है.  साल 2016 में डॉ. लाहिड़ी को पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था. 

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डॉ. रामचंद्र दांडेकर 

ऐसा वक्त जब इलाज कराना महंगा हो गया है. डॉक्टर मोटी-मोटी फीस लेकर ही ट्रीटमेंट करते हैं. ऐसे में 87 साल के डॉ. रामचंद्र दांडेकर दिन रात निःशुल्क सेवा में जुटे हुए हैं. महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के रहने वाले डॉ. रामचंद्र 60 सालों से गरीबों की फ्री में इलाज कर रहे हैं. होम्योपैथ में डिप्लोमा के बाद उन्होंने एक साल तक लेक्चरर पद पर काम किया। फिर उनके एक करीबी ने उन्हें गांव-गांव सेवा के लिए प्रेरित किया. उसके बाद से ही वह सेवाभाव में जुटे हैं. कभी साइकिल तो कभी पैदल चलकर मरीजों तक जाते थे और उनका इलाज करते थे. आज भी डॉ. रामचंद्र सुबह 6 बजे अपनी पर दवाओं का बैग और टेस्ट किट लेकर गांव-गांव निकल पड़ते हैं और देर रात 12 बजे के आसपास सेवा कर घर लौटते हैं. जो समाज और युवा पीढ़ी के लिए मिसाल हैं.

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डॉ. नूरी परवीन

महंगी दवाई, टेस्ट और इलाज आजकल सबके बस की बात कहां. लेकिन अगर आप जरुरतमंद हैं तो आपके लिए मसीहा बन खड़ी हैं आंध्र प्रदेश की युवा डॉक्टर नूरी परवीन. आज जब डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद युवा लाखों कमाने की चाह रखते हैं. तब नूरी परवीन सिर्फ 10 रुपए लेकर इलाज करती हैं. उन्होंने कडप्पा जिले में एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज से MBBS की पढ़ाई की है. इसके बाद किसी बड़े अस्पताल में अच्छे पैकेज पर काम करने की बजाय उन्होंने खुद का क्लीनिक शुरू किया. जिसकी फीस रखी मात्र 10 रुपए. यहां वे गरीब और जरूरतमंद की सेवा करती हैं.

वह आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा की रहने वाली हैं और सेवा की यह भावना उन्हें अपने दादाजी से विरासत में मिली है. नूरी ने जब अपने क्लिनिक की शुरुआत की थी, तब उनके माता-पिता को इसकी जानकारी नहीं थी लेकिन बाद में बेटी के इस कदम से वे काफी खुश हुए. महंगे इलाज न करा पाने वालों के लिए नूरी का यह क्लीनिक 24 घंटे खुला रहता है. रात-दिन, बारिश या खराब मौसम कुछ भी हो नूरी परवीन एक फोन पर मदद करने पहुंच जाती हैं. यहां लोग डॉक्टर नूरी परवीन को 'मदर टेरेसा' के नाम से जानते हैं.

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डॉ. रामनंदन सिंह 

बिहार के शेखपुरा जिले के रहने वाले डॉ. रामनंदन पिछले 35 सालों से मामूली सी फीस लेकर गरीबों की सेवा में जुटे हैं. वह जरुरतमंदों का इलाज तो करते ही हैं, आवश्यकता पड़ने पर उनकी आर्थिक मदद भी करते हैं. रिम्स रांची से एमबीबीएस की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने किसी बड़े अस्पताल में जॉब करने की बजाय सीधे गांव की सेवा से शुरुआत की. एक बार उन्होंने बताया था कि जब उनकी पढ़ाई पूरी हुई थी तब उनका क्षेत्र स्वास्थ्य संसाधनों में काफी पिछड़ा हुआ था. यहीं से उन्हें सेवा करने की प्रेरणा मिली. आज उनकी उम्र 68 साल है और वह हर दिन 12 घंटे मरीजों का इलाज करते हैं. उनकी ये सेवा भावना न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश के युवाओं के लिए प्रेरणा है.

दिल्ली का फुटपाथ क्लीनिक

आज के वक्त जब गरीबों और जरुरतमंद की मदद के लिए किसी के पास वक्त नहीं है तो ऐसे समय कमलजीत सिंह और उनकी टीम मानवता की ऐसी मिसाल पेश कर रही है जो विश्व की मानवता के लिए सबसे बड़ी मिसाल है. अब तक न जाने कितने लोगों की जिंदगी बचा चुकी इस टीम में कई डॉक्टर हैं. जो दिल्ली में गरीब और बेसहारों की न सिर्फ फ्री में इलाज करते हैं, बल्कि उन्हें जरुरत की चीजें भी उपलब्ध कराते हैं. शीशगंज गुरुद्वारा के सामने यह फुटपाथ क्लीनिक लगता है और हर दिन न जाने कितने लोगों की सेवा की जाती है. पिछले 27 साल से दिल्ली में 7 अलग-अलग जगहों पर फुटपाथ क्लिनिक की सेवाएं मुफ्त में दी जा रही है.

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