आयुर्वेद पर भरोसा क्यों नहीं? जानिए श्री श्री रवि शंकर की नजर से इसकी चुनौतियां और संभावनाएं

Why not trust Ayurveda: भारत सदियों से ज्ञान, उपचार और जीवनशैली के विज्ञान का केंद्र रहा है. योग और आयुर्वेद दो ऐसे उपहार हैं जिन्हें भारत ने दुनिया को दिया. जहां योग ने अंतरराष्ट्रीय पहचान हासिल कर ली है, वहीं आयुर्वेद अभी भी पूरी दुनिया में खुद को स्थापित करने की राह पर है.

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आयुर्वेद है कितना काम का, श्री श्री रविशंकर से जानें

Why not trust Ayurveda: भारत हमेशा से ज्ञान और जीवनशैली के मामलों में आगे रहा है. योग और आयुर्वेद इसकी बड़ी मिसाल हैं. आज योग दुनिया के हर कोने में अपनाया जा रहा है. अमेरिका से लेकर यूरोप तक लोग योग को अपने रोज़ के जीवन का हिस्सा बना चुके हैं. लेकिन जब बात आयुर्वेद की आती है, तो भरोसे की कमी दिखती है. यही सवाल उठता है – जब योग को इतना सम्मान मिला है, तो आयुर्वेद को क्यों नहीं? इसको लेकर क्या कहते हैं श्री श्री रवि शंकर आइए जानते हैं.

आयुर्वेद पर भरोसा क्यों नहीं? (Why not trust Ayurveda?)

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दुनिया ने योग को अपनाया, लेकिन आयुर्वेद से दूरी क्यों?

योग अब केवल व्यायाम नहीं, बल्कि एक जीवनशैली बन चुका है. यह शरीर, मन और सोच तीनों पर असर करता है. लेकिन आयुर्वेद को लोग अब भी पूरी तरह से नहीं समझ पाए हैं. एक बड़ा कारण यह है कि कई बार इसकी जानकारी अधूरी या भ्रामक तरीके से दी जाती है. लोग इसे घरेलू नुस्खों या बिना प्रमाण वाली बातों से जोड़ देते हैं.

बाजार में मौजूद रुकावटें

दुनिया की मेडिकल इंडस्ट्री में बड़ी-बड़ी दवा कंपनियों का दबदबा है. ये कंपनियां उन चीज़ों को बढ़ावा देती हैं जिनसे मुनाफा हो. आयुर्वेद एक ऐसा तरीका है जिसमें लंबे समय में फायदा होता है, लेकिन इसमें धैर्य और समझ दोनों चाहिए. शायद यही वजह है कि दवा कंपनियां इसे चुनौती के तौर पर देखती हैं और इसे आगे बढ़ने नहीं देतीं.

कुछ गलतियां हमारी भी हैं

आयुर्वेद को लेकर भरोसा कम होने के पीछे हमारी भी कुछ गलतियां हैं. कई बार बिना किसी पुख्ता रिसर्च या वैज्ञानिक जानकारी के दावे कर दिए जाते हैं. सोशल मीडिया पर तरह-तरह के वीडियो और पोस्ट देखकर लोग गुमराह हो जाते हैं. इससे आयुर्वेद की छवि को नुकसान पहुंचता है. इसके अलावा कुछ आयुर्वेदिक दवाओं में सही मात्रा या क्वालिटी की गारंटी नहीं होती. अगर दवा में भारी धातु या अशुद्ध तत्व मिले तो यह भरोसा तोड़ेगा, बनाएगा नहीं. साफ-सफाई, क्वालिटी और रिसर्च की कमी भी एक वजह है कि लोग इसे संदेह की नजर से देखते हैं.

मिलकर काम करना ही रास्ता है

कोई भी एक इलाज हर बीमारी का हल नहीं हो सकता. आयुर्वेद और एलोपैथी को साथ काम करना होगा. जहां ऑपरेशन या इमरजेंसी में एलोपैथी ज़रूरी है, वहीं जीवनशैली सुधार और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में आयुर्वेद का रोल अहम है. अगर दोनों पद्धतियां साथ चलें, तो मरीज को असली फायदा मिलेगा.

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अब वक्त है नए सोच का

आज की दुनिया तेजी से बदल रही है. लोग अब केवल दवा नहीं, इलाज के साथ संतुलन भी चाहते हैं. ध्यान, योग, संगीत और आयुर्वेद जैसी विधियां अब एक नया रास्ता खोल रही हैं. इसका मतलब यह नहीं कि हम पुराने तरीके को छोड़ दें, बल्कि हमें सभी तरीकों को साथ लेकर चलना होगा.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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