भारतीयों में रेयर जेनेटिक डिजीज का खतरा ज्यादा क्यों? क्या कहते हैं आंकड़े, पढ़ें

Rare Genetic Diseases: एक स्टडी के मुताबिक देश की करीब एक-तिहाई यानी 4,600 से ज्यादा कम्युनिटीज ऐसी हैं जो रेयर जेनेटिक डिसऑर्डर की चपेट में आ सकती हैं.

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भारत में रेयर जेनेटिक बीमारियां दरअसल उतनी रेयर नहीं हैं.

भारत में रेयर जेनेटिक बीमारियां दरअसल उतनी रेयर नहीं हैं जितना नाम से लगता है. एक स्टडी के मुताबिक देश की करीब एक-तिहाई यानी 4,600 से ज्यादा कम्युनिटीज ऐसी हैं जो रेयर जेनेटिक डिसऑर्डर की चपेट में आ सकती हैं. वजह है सालों से चली आ रही इन-ग्रुप मैरिज यानी अपने ही समुदाय या जाति के भीतर शादियां. 2017 में थंगराज (Thangaraj) और अमेरिकी जेनेटिसिस्ट डेविड राइश (David Reich) की लीडरशिप में हुई एक रिसर्च ने पहली बार ये बात साफ की थी. इसी के बाद इंडियन कम्युनिटीज में छिपे हेल्थ रिस्क की सर्च शुरू हुई, जो अब नतीजे दे रही है. इसमें जीनोम सीक्वेंसिंग (Genome Sequencing) और सोशल कस्टम को समझने से जुड़े नए फैक्टर्स भी मदद कर रहे हैं.

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3,000 साल पहले कैसे बदल गई तस्वीर

हजारों साल पहले प्राचीन भारत में लोग अलग-अलग ग्रुप्स से मिलते-जुलते और शादी करते थे. इनमें बाहर से आए किसान, मवेशी चराने वाले खानाबदोश और शिकारी कम्यूनिटीज भी शामिल थीं.  लेकिन करीब 3,000 साल पहले तस्वीर बदलने लगी. लोग अपनी-अपनी कम्युनिटी और जातियों के भीतर शादी करने लगे. इससे जेनेटिक डाइवर्सिटी घट गई और रेयर डिसऑर्डर का रिस्क बढ़ गया.

बीमारी कैसे स्ट्राइक करती है?

हर इंसान के शरीर में जीन की दो कॉपी होती हैं – एक मां से और एक पिता से. अगर किसी एक पैरेंट से म्यूटेशन मिलता है तो आमतौर पर उसका असर नहीं दिखता, क्योंकि ये रिसेसिव यानी छुपा हुआ रहता है. लेकिन जब दोनों पैरेंट्स कैरियर होते हैं, तो बच्चे के लिए रिस्क बढ़ जाता है. ऐसे में 25% चांस होता है कि बच्चे को दोनों पैरेंट्स से म्यूटेशन मिले और वो बीमारी से ग्रसित हो जाए. वहीं 50% चांस होता है कि बच्चा कैरियर बने, यानी उसे एक पैरेंट से म्यूटेशन मिले लेकिन बीमारी बाहर से न दिखे. और बाकी 25% बच्चों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता क्योंकि उन्हें म्यूटेशन बिल्कुल नहीं मिलता. यही वजह है कि जब क्लोज रिलेटिव्स के बीच शादियां होती हैं तो रिसेसिव बीमारियों का खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है.

सिर्फ कजिन मैरिज ही नहीं, एंडोगैमी (Endogamy) यानी अपने ही समुदाय या गोत्र में शादी करना भी यही असर डाल सकता है. यूपी की बनिया कम्युनिटी और कश्मीर के गुज्जर जैसे ग्रुप अब छोटे नहीं रहे, फिर भी डीएनए धीरे-धीरे बदलता है. इसलिए एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इंडिया को जेनेटिक मैपिंग (Genetic Mapping) की जरूरत है.

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जेनेटिक डेटा से इलाज में मदद

जेनेटिक डेटा सिर्फ बीमारी पहचानने में ही काम नहीं आता. आंध्रप्रदेश की वैश्य कम्युनिटी में एक म्यूटेशन मिला था जिससे वे कुछ मसल रिलैक्सेंट (Muscle Relaxants) ड्रग्स को मेटाबोलाइज नहीं कर पाते थे. अब डॉक्टर सर्जरी में वो दवाएं इस्तेमाल करने से बचते हैं ताकि पेशेंट को रिएक्शन न हो. ऐसे म्यूटेशन की मैपिंग से न केवल इन बीमारियों के इलाज में मदद मिलेगी, बल्कि नई जानकारियां भी मिल सकती है.

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भारत में कितने पेशेंट

फिलहाल इंडिया में 7.2 करोड़ लोग रेयर डिजीज से पहचाने जा चुके हैं. लगभग 2,000 पेशेंट रजिस्टर हुए हैं और 1,000 से ज्यादा जीनोम का सीक्वेंस किया गया है. जब डॉक्टर अलग-अलग सैंपल में एक जैसे वेरिएंट पाते हैं तो उन्हें कम्युनिटी लिंक का शक होता है.

साउथ इंडिया में मिला खतरनाक म्यूटेशन

साउथ इंडिया की एक छोटी कम्युनिटी में थंगराज (Thangaraj) की टीम ने एक ऐसा म्यूटेशन पहचाना जो बताता है कि क्यों कुछ नवजात बच्चे जन्म के कुछ महीनों में ही मर जाते हैं.  प्रीमैरेटल स्क्रीनिंग (Premarital Screening) और प्रीनेटल टेस्टिंग (Prenatal Testing) से इस रिस्क को कम किया जा सकता है.

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खासकर उन जगहों पर जहां क्लोज रिलेटिव्स में शादियां ज्यादा होती हैं. इस मामले में एक चिंता ये भी है कि अगर किसी कम्युनिटी में ऐसा जेनेटिक म्यूटेशन पाया जाता है तो लोगों को यह डर हो सकता है कि बाहर वाले उन्हें "बीमारियों से जुड़ा" समझकर अलग न कर दें या शादी-ब्याह जैसी चीज़ों में उन्हें रिजेक्ट न कर दें. ऐसे में प्राइवेसी (Privacy) और कंसेंट (Consent) को लेकर सावधानी बेहद जरूरी है, ताकि किसी कम्युनिटी को बदनामी या सामाजिक भेदभाव का सामना न करना पड़े.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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