Target Of Life : हर व्यक्ति कभी न कभी अपने जीवन में इस सवाल से जरूर टकराता है - “जीवन का असली मतलब क्या है?” हम सुबह उठते हैं, काम पर जाते हैं, जिम्मेदारियां निभाते हैं और दिन खत्म हो जाता है. लेकिन एक पल ऐसा आता है जब सब कुछ रुक जाता है और भीतर से एक आवाज़ उठती है - "क्या बस यही जीवन है?" या फिर जीवन का मकसद या लक्ष्य क्या है. इसका बहुत ही खूबसूरत सा जवाब दिया है श्री श्री रवि शंकर जी ने आइए समझते हैं.
जीवन का लक्ष्य क्या है? (Target Of Life)
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर ने कहा यह सवाल कोई साधारण सवाल नहीं है. यह तभी उठता है जब व्यक्ति रोज़मर्रा की दौड़ में कुछ पल के लिए ठहरता है और अपने अंदर झांकता है. यह सवाल उठना अपने आप में एक संकेत है कि अब समय आ गया है खुद को थोड़ा गहराई से समझने का.
सवाल उठते हैं तो रास्ते बनते हैं
श्री श्री रवि शंकर का कहना है कि कई लोग इन सवालों को दबा देते हैं, क्योंकि उन्हें डर लगता है कि इसका जवाब कहीं मिला ही नहीं तो? लेकिन डरने की जरूरत नहीं है. जब मन में यह सवाल आता है कि “जीवन का उद्देश्य क्या है”, तो समझिए कि आप अब सिर्फ जीने के लिए नहीं, समझने के लिए जी रहे हैं. कोई एक तय जवाब नहीं है इस सवाल का. किसी के लिए जीवन का लक्ष्य परिवार की भलाई हो सकता है, किसी के लिए सेवा करना, किसी के लिए ज्ञान पाना या फिर कला के ज़रिए खुद को व्यक्त करना.
अपने अंदर की आवाज़ सुनिए
आगे वो बताते हैं कि हम अक्सर दूसरों से पूछते हैं - “आप बताइए, मुझे क्या करना चाहिए?” लेकिन सच्चाई यह है कि यह जवाब कोई और नहीं दे सकता. यह जवाब आपके अंदर छुपा होता है. जब आप खुद से जुड़ते हैं, अकेले में सोचते हैं, जब कोई किताब या कोई अनुभव आपके दिल को छू जाता है - तब धीरे-धीरे जवाब मिलने लगता है. कभी-कभी कोई छोटी-सी बात, एक सामान्य-सी घटना, आपके अंदर ऐसी हलचल पैदा कर देती है जो आपको आपकी राह दिखा देती है. उस राह पर चलना ही जीवन का उद्देश्य बन जाता है.
जीवन सिर्फ कमाने या खाने का नाम नहीं है
बहुत से लोग सोचते हैं कि नौकरी करना, पैसे कमाना, शादी करना, बच्चे पालना - बस यही जीवन है. लेकिन अगर केवल यही सब होता, तो फिर भी लाखों लोग अंदर से खाली क्यों महसूस करते? असल में, जब हम केवल सामाजिक ढांचे को निभाने लगते हैं और खुद को भूल जाते हैं, तब जीवन का उद्देश्य धुंधला हो जाता है.
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अंत में बात इतनी-सी है...
जीवन का लक्ष्य तय करने के लिए किसी बड़े ग्रंथ की ज़रूरत नहीं. न ही यह किसी गुरु के बताए रास्ते पर चलने से तय होता है. इसका जवाब केवल वही ढूंढ सकता है जो सवाल पूछने की हिम्मत रखता है - और जो अपनी यात्रा खुद तय करना चाहता है.
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