क्या होता है हीट स्ट्रेस, जो हीट वेव के साथ बन रहा है 'साइलेंट किलर', जानिए खुद का कैसे करें बचाव

हीट स्ट्रेस तब होता है जब शरीर का नेचुरल कूलिंग सिस्टम पर ज्यादा असर पड़ता है और ये सबसे ज्यादा प्रभावित होता है. जिससे चक्कर आना और सिरदर्द से लेकर ऑर्गन फेल्योर और मृत्यु तक के लक्षण पैदा होते हैं.

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हीट स्ट्रेस क्यों बना है साइलेंट किलर. कैसे करता है प्रभावित.

Heat Stress: रिकॉर्ड पर सबसे ज्यादा गर्म रहने वाला साल, इस साल भारत से लेकर मैक्सिको और ग्रीस तक पड़ने वाली भीषण गर्मी ने लोगों की जान ले ली है. इस भीषण गर्मी की वजह से लोग हीट स्ट्रेस का शिकार हो रहे हैं और विशेषज्ञ भी हीट स्ट्रेस को लेकर चिंता जता रहे हैं. यह स्थिति तूफान, बाढ़ या किसी दूसरे क्लाइमेट से ज्यादा लोगों को अपना शिकार बनाती है. आइए जानते हैं कि हीट स्ट्रेस वास्तव में क्या है और इसे कैसे मापा जाता है?

'साइलेंट किलर'

हीट स्ट्रेस तब होता है जब शरीर का नेचुरल कूलिंग सिस्टम पर ज्यादा असर पड़ता है और ये सबसे ज्यादा प्रभावित होता है. जिससे चक्कर आना और सिरदर्द से लेकर ऑर्गन फेल्योर और मृत्यु तक के लक्षण पैदा होते हैं. यह गर्मी और अन्य पर्यावरणीय कारकों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से होता है जो शरीर के आंतरिक थर्मोस्टेट और तापमान को कंट्रोल करने की क्षमता को कमज़ोर करने के लिए जाना जाता है.

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के एलेजांद्रो सैज़ रीले ने कहा, "गर्मी एक खामोश हत्यारा है, क्योंकि इसके लक्षणों को पता आसानी से नहीं लगता है. और जब तक इसके बारे में पता लगता है तब तक स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो जाती है और विनाशकारी भी हो सकते हैं." बच्चे, बूढ़े, हेल्थ प्रॉबलम्स वाले लोग और बाहर काम करने वाले लोग इसकी चपेट में आसानी से आते हैं. वहीं कंक्रीट, ईंट और गर्मी को आकर्षित करने वाली सर्फेस से घिरे शहर में रहने वाले लोगों को भी हाई रिस्क का सामना करना पड़ता है.

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WMO का अनुमान है कि गर्मी से हर साल लगभग पाँच लाख लोग मरते हैं, लेकिन उसका कहना है कि वास्तविक संख्या ज्ञात नहीं है, और यह प्रेसेंट टाइण में दर्ज की गई संख्या से 30 गुना ज्यादा हो सकती है.

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मैक्सिमम से ज़्यादा

टेंपरेचर शायद सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला और आसानी से समझा जाने वाला मौसम रीडिंग इकाई हो सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से यह नहीं बताते कि गर्मी मानव शरीर को कैसे प्रभावित कर सकती है.

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उदाहरण के लिए, एक ही टेंपरेचर एक जगह पर दूसरे की तुलना में बहुत अलग महसूस हो सकता है: रेगिस्तान की शुष्क गर्मी में 35 डिग्री सेल्सियस (95 फ़ारेनहाइट) का तापमान जंगल की नम जलवायु की तुलना में बहुत अलग महसूस होता है. डीटेल में समझने के लिए, वैज्ञानिक टेंपरेचर के साथ दूसरी चीजों पर भी विचार करते हैं. नमी, हवा की स्पीड, कपड़े, सीधी धूप और यहाँ तक कि एरिया में कितना कंक्रीट और कितनी हरियाली है ये भी निर्भर करता है.

हीटवेव क्या है

गर्मियों में हवा तो गर्म चलती है. लेकिन इस साल गर्मी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. इस साल चलने वाली हीट वेव ने कई लोगों को अपनी चपेट में लिया है. बता दें कि हीट वेव असामान्य रूप से उच्च तापमान की अवधि है, जो भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में गर्मियों के मौसम के दौरान होने वाले सामान्य से ज्यादा टेंपरेचर होता है. हीट वेव आमतौर पर मार्च और जून के बीच होती है, और कुछ मामलों में भी यह जुलाई तक भी जारी रह सकती है. ये हवाएं लोगों पर अलग-अलग प्रभाव डालती हैं जो शारीरिक तनाव का कारण बनती हैं, जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी मृत्यु भी हो जाती है. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने हीट वेव के लिए कुछ क्राइटएरिया सेट किए हैं:

  • जब तक किसी स्टेशन का अधिकतम टेंपरेचर मैदानी इलाकों के लिए कम से कम 40°C और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए कम से कम 30°C तक नहीं पहुँच जाता, तब तक हीट वेव पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है.
  • जब किसी स्टेशन का सामान्य अधिकतम तापमान 40°C से कम या उसके बराबर होता है, तो हीट वेव का नॉर्मल से डिपार्चर 5°C से 6°C होता है, गंभीर हीट वेव का सामान्य से डिपार्चर 7°C या उससे ज्यादा होता है.

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  • जब किसी स्टेशन का सामान्य अधिकतम तापमान 40°C से ज्यादा होता है, तो हीट वेव का नॉर्मल से डिपार्चर 4°C से 5°C होता है, गंभीर हीट वेव का सामान्य से डिपार्चर 6°C या उससे ज्यादा होता है.
  • जब वास्तविक अधिकतम तापमान 45°C या उससे ज्यादा रहता है, तो हीट वेव घोषित की जानी चाहिए. क्लाइमेट चेंज के कारण वैश्विक स्तर पर हीट वेव लगातार बढ़ रही हैं. भारत भी गर्मी की लहरों की बढ़ती घटनाओं के रूप में क्लाइमेट चेंज के प्रभावों को महसूस कर रहा है, जो हर साल तेज ही होती जा रही है, जिससे गर्मी में हीट वेव और हीट स्ट्रोक से होने वाली मौतों की संख्या में वृद्धि हो रही है.

हीट वेव सेहत पर कैसे डालती है असर

हीट वेव लगने से आमतौर पर डिहाइड्रेशन, हीट क्रैंप्स, गर्मी से थकावट और/या हीट स्ट्रोक शामिल हैं. इनके संकेत और लक्षण इस प्रकार हैं:

हीट क्रैंप्स: सूजन और बेहोशी होने के साथ ही आमतौर पर 39 डिग्री सेल्सियस यानी 102 डिग्री फ़ारेनहाइट से बुखार.

गर्मी से थकावट: थकान, कमजोरी, चक्कर आना, सिरदर्द, मतली, उल्टी, मांसपेशियों में ऐंठन और पसीना आना.

हीट स्ट्रोक: बॉडी टेंपरेचर 40 डिग्री सेल्सियस यानी 104 डिग्री फ़ारेनहाइट या उससे ज्यादा होना, साथ दौरे या कोमा. यह एक तरह का बुखार है.

कैसे करें बचाव

अगर आपको लगता है कि कोई व्यक्ति गर्मी से पीड़ित है:

  • उसे छाया में ठंडी जगह पर ले जाएँ.
  • पानी या कोई ऐसी ड्रिंक पिलाएं जो उसे हाइड्रेट रखे.
  • उस व्यक्ति को पंखा झलें.
  • अगर लक्षण बदतर हो जाते हैं या लंबे समय तक बने रहते हैं या व्यक्ति बेहोश है तो डॉक्टर से सलाह लें.
  • शराब, कैफीन जैसी चीजें न दें.
  • उसके चेहरे/शरीर पर ठंडा गीला कपड़ा रखकर उसे ठंडा करें.
  • बेहतर वेंटिलेशन के लिए कपड़े ढीले करें.

हीट वेव से बचने के लिए इमरजेंसी किट 

  • पानी की बोतल.
  • छाता/टोपी या कैप/सिर ढकने वाला कपड़ा.
  • हैंड टॉवेल.
  • हैंड फैन.
  • इलेक्ट्रोलाइट/ग्लूकोज/ओरल रिहाइड्रेशन.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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