फाइब्रॉएड गर्भाशय का एक सौम्य ट्यूमर हैं, जो 20% से अधिक युवा महिलाओं में पाए जाते हैं. फाइब्रॉएड का आकार अलग हो सकता है, यह सेब के बीज से लेकर तरबूज जितना हो सकता है. फाइब्रॉएड का निदान कराया जाता है. इसका निदान सोनोग्राफी, अनुवंशिक इतिहास और स्त्रीरोग संबंधी परिक्षाद्वारा किया जा सकता है. फायब्रॉएड का इलाज उम्र, शारीरिक स्थिति, फाइब्रॉइड का आकार, लक्षण और भविष्य के गर्भावस्था अनुसार तय किया जाता है.
फाइब्रॉएड कई प्रकार के होते हैं | Types of fibroids:
सबसेरोसल फाइब्रॉएड (Subserosal fibroids)
यह गर्भाशय के बाहरी दीवार पर विकसित होता है. आमतौर पर जब तक वे छोटे आकार के होते है, तब तक इससे कोई समस्या नहीं होती. बडे आकार के फाइब्रॉएड आंत, रीढ़ की हड्डी और ब्लैडर पर दबाव डालता है. इसके कारण श्रोणी में तेज दर्द होता है. शौच और पेशाब करने में तकलीफ होती है.
ये फाइब्रॉएड पेट के निचले हिस्से यानी पेल्विक एरिया में भारीपन महसूस कराता है. जिसके कारण पेट का निचला हिस्सा 3 या 5 महीने के गर्भावस्था जैसे फूल जाता है. इसलिए, कुछ केसेस में इन बडे आकार के सबसेरोसल फाइब्रॉएड सर्जरी रे निकाला जाता है. यह सर्जरी आमतौर पर पेट में कट लगाकर करते हैं, जिससे बिकनी स्कार्स के निशाण बन सकते है. इस सर्जरी मे पेट खोलकर गर्भाशय के भीतर फाइब्रॉएड को हटाया जाता है. इसके बाद गर्भाशय और पेट पर स्टीचेस लगाकर बंद कर दिया जाता है. इस प्रक्रिया में लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहने और आराम करने की आवश्यकता होती है. मात्र, इस सर्जरी के बाद पेट में आसंजन (आंतों का एक-दूसरे और गर्भ से चिपकना) विकसित होने की प्रवृत्ति भी अधिक होती है और इससे लंबे समय तक पेट में दर्द और कभी-कभी बांझपन की समस्या हो सकती है.
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ज्यादातर आजकल एंडोस्कोपिक (लैप्रोस्कोपिक) सर्जरी से फाइब्रॉएड हटाया जाता है. इसमें फाइब्रॉएड को हटाने के लिए पेट पर छोटे चीरा के माध्यम से पतली दूरबीन (टेलिस्कोप) अंदर डाला जाता है. जिसे टीव्ही स्क्रीनपर देखते हुए अंदर पनपन रहे फाइब्रॉएड को निकाला जाता है, और छोटे सर्जिकल उपकरणद्वारा गर्भ स्टीचेस लगा के बंद करते है. आजकल मोरसेलेटर नामक आधुनिक मशीन से बड़े फाइब्रॉएड को भी छोटे छोटे तुकडों में लेप्रोस्कोपिक मार्ग से हटाया जा सकता है. इस तकनीक से एक अच्छी बात यह होती है की, बडे
फाइब्रॉएड टिशू को छोटे छोटे तुकडों मे परावर्तित कर दिया जाता है . जिससें यदि ट्युमर कॅन्सर जैसे स्थिती हो, तो उसके अधिक फैलाव से बचना संभव होता है. यह एक कॉस्मेटिक सर्जरी होने के कारण पेट पर सर्जरी का हल्का निशाण रहता है. इस सर्जरी के बाग पेशंट दो तीन दीन में ही घर जा सकता है. फाइब्रॉएड सर्जरी के बाद होने वाली आसंजन और पेटदर्द की समस्या भी इस प्रक्रिया में काफी कम होने के कारण पेशंट जल्दी ठीक हो सकता है.
इंट्राम्यूरल फाइब्रॉएड (Intramural Fibroids)
यह गर्भाशय की दीवार पर पनपने वाला आम फाइब्रॉएड होता है. इसके कारण गर्भाशय फूल जाता है और बड़ा नजर आने लगता है. साथ ही दर्द व रक्तस्राव होता है और गर्भधारण करना मुश्किल हो जाता है. खासकर अगर वे बड़े साइज के है, तो वे समस्याए पैदा करते है. बडे फाइब्रॉएड सामान्य प्रसव को भी रोक सकते हैं. और प्रसव के बाद भारी रक्तस्राव या संक्रमण का कारण बन सकते हैं. इसलिए उन्हें हटाना जरूरी हो जाता है, आमतौर सेरोसल फाइब्रॉएड की तरह इन्हे भी सर्जरी से हटाया जा सकता है.
सबम्यूकोस फाइब्रॉएड (Submucous fibroids)
यह गर्भाशय में मांसपेशियों की परत के बीच विकसित होते हैं. इसके कारण मासिक धर्म के दौरान दर्द के साथ अत्यधिक मात्रा में रक्तस्राव होता है. साथ ही गर्भधारण करने में भी परेशानी हो सकती है. यहां तक कि छोटे सबम्यूकोस फाइब्रॉएड भी गंभीर पेट दर्द, भारी और अनियमित मासिक धर्म, इनफर्टिलिटी, और सामान्य प्रसव में कठिनाई का कारण बन सकते हैं. इन लक्षणों से सबम्यूकोस फाइब्रॉएड को हटाने जरूरी होता है. हिस्टेरोस्कोपिक सर्जरी द्वारा सबम्यूकोस फाइब्रॉएड हटाना संभव होता है. इसमें फाइब्रॉएड को हटाने के लिए पतली दूरबीन (हिस्टेरोस्कोपी) को योनी के जरिए गर्भाशय तक ले जाया जाता है, और फाइब्रॉएड को काट दिया जाता है. इसमें, रेसेक्टोस्कोप या वर्सापॉइंट नामक आधुनिक तकनीक उपकरण का उपयोग करके सर्जरी किया जाता है. वर्सापॉइंट एक लेजर उपकरण है, जिससे गर्भाशय में पनपने फाइब्रॉएड को वाष्पीकृत किया जा सकता है. यह एक सुरक्षित और कुशल प्रक्रिया है, इसलिए इसमें किसी भी प्रकार का चीरा और टांके नहीं लगते.
इससे मरीज को तेजी से रिकवर होता है, और काफी राहत मिलती है.
फाइब्रॉएड आमतौर पर गैर-कैंसर वाले ट्यूमर होते हैं. हालांकि आधुनिक तकनीक और सर्जरी विकल्प से सभी फाइब्रॉएड हटा दिए जाएं तो भी वह कुछ साल बाद फिर से बन सकते हैं. इसलिए, खासकर युवा महिलाओ़ंको फाइब्रॉएड सर्जरी के बाद कुछ महीनों के भीतर गर्भवती होने की योजना बनानी चाहिए ताकि पुनरावृत्ति का कोई खतरा न हो. हाल ही में यूलिप्रिस्टल नामक एक नई दवा लॉन्च की गई है, जो फाइब्रॉएड के इलाज के लिए उपलब्ध पहली गोली है. इससे ३ महिने मे फाइब्रॉएड का आकार कम से कम होने में सहायता मिलती है. इसके साईड इफेक्ट भी कम होते है.
कुछ समय तक, फाइब्रॉएड का इलाज केवल सर्जरी द्वारा किया जा सकता था, पर अब इसका इलाज बगैर अस्पताल में भर्ती और एनस्थेशिया बिना संभव है. क्योंकी पहली बार एमआरआई गाइडेड फोकस्ड अल्ट्रासाउंड (MRgFUS) इस आधुनिक तकनीक से हम फाइब्रॉएड समस्या से छुटकारा पा सकते है. एमआरआई स्कैन करके पता लगाया जाता है कि फाइब्रॉएड कहां है. फिर त्वचा के जरिए सुई को शरीर के अंदर डाला जाता है और इसी सुई के माध्यम से फाइबर-ऑप्टिकल-केबल डाली जाती है. इस केबल के जरिए लेजर किरण फाइब्रॉएड तक पहुंचती है और उसे सिकोड़ देती है. इस प्रक्रिया के दौरान या सर्जरी रे बाद पेशंट को कोई दर्द नहीं होता है. वह उसी दिन घर लौट है और अगले दिन काम भी करना सुरू कर सकती है.
जो महिलाए को सर्जरी का जोखिम नही लेना चाहती, वे भी अब अपने फाइब्रॉएड का इलाज कर सकती हैं. अपने गर्भाशय मे पनपने फाइब्रॉएड को बिना सर्जरी के बाहर निकल सकती हैं. जो महिलाएं भविष्य में गर्भवती होना चाहती हैं, उनके लिए यह उपचार विकल्प सबसे उपयुक्त है.
अगर महिला की उम्र ज्यादा है, और उन में मल्टीपल फाइब्रॉएड हैं, तो फाइब्रॉएड के साथ पूरा गर्भाशय (हिस्ट्रेक्टोमी) निकाला जाता है. यह पेट (लैपरोटॉमी) लेप्रोस्कोपिक द्वारा खोला जा सकता है.
फाइब्रॉएड सभी उम्र की महिलाओं में हो सकते है, वे प्रजनन काल के दौरान विकसित होते हैं. खासतौर पर 20 की आयु से लेकर 50 की आयु के बीच महिलाओं में पाया जा सकता है. इसलिए, फाइब्रॉएड के भले ही कोई लक्षण न हो, फिर भी सभी महिलाओं को नियमित रूप से स्त्री रोग संबंधी जांच करवाना जरूरी है.
(यह लेख डॉ रिश्मा ढिल्लोन पै, गायनेकोलॉजिस्ट और इनफर्टिलिटी विशेषज्ञ, सल्लागार लिलावती हॉस्पिटल, जसलोक हॉस्पिटल ऑर हिंदुजा हेल्थकेअर सर्जिकल हॉस्पिटल से बातचीत पर आधारित है.)
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