नई दिल्ली: भारत लंबे समय से टीबी यानी क्षयरोग के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई लड़ रहा है. यह बीमारी न सिर्फ स्वास्थ्य, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी देश को प्रभावित करती रही है. हाल के सालों में सरकार, वैज्ञानिक संस्थानों और स्वास्थ्य कर्मियों के संयुक्त प्रयासों से टीबी नियंत्रण में उल्लेखनीय प्रगति हुई है. आईसीएमआर–राष्ट्रीय क्षयरोग अनुसंधान संस्थान (NIRT) की टीबी उन्मूलन तकनीकी रिपोर्ट 2025 इस बात के साफ संकेत देती है कि भारत सही दिशा में आगे बढ़ रहा है. रिपोर्ट के अनुसार, बीते सालों में टीबी मरीजों की संख्या में लगातार कमी आई है, जो बताती है कि देश अब टीबी उन्मूलन के प्री-एलीमिनेशन फेज में प्रवेश कर चुका है.
हालांकि, इस सफलता की तस्वीर पूरी तरह एक जैसी नहीं है. कुछ ऐसे जिले हैं, जहां टीबी का संक्रमण अब भी गहराई से फैला हुआ है और यही जिले राष्ट्रीय स्तर पर मिली उपलब्धियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं.
कुछ जिलों में संक्रमण बना चिंता का कारण:
आईसीएमआर की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के कुल टीबी मामलों का करीब 27 प्रतिशत बोझ आज भी अकेले भारत पर है. इसका बड़ा कारण यह है कि आदिवासी इलाकों, शहरी झुग्गी-बस्तियों, पूर्वोत्तर के दुर्गम क्षेत्रों और सीमावर्ती जिलों में टीबी का संक्रमण तेजी से फैलता है. इन इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित पहुंच, कुपोषण, बार-बार स्थान बदलने वाले समुदाय और बिना लक्षण वाले मरीज बीमारी को नियंत्रित करने में मुश्किल पैदा करते हैं.
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नई तकनीक से मिली राहत
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सीबी-नेट, ट्रू-नैट और डिजिटल एक्स-रे जैसी आधुनिक जांच तकनीकों से टीबी की पहचान पहले से कहीं तेज और सटीक हुई है. वहीं, निक्षय पोर्टल के जरिए मरीजों की निगरानी, दवाइयों की उपलब्धता और इलाज की प्रगति पर नजर रखना आसान हुआ है. इन उपायों से देशभर में टीबी नियंत्रण को नई गति मिली है.
निजी अस्पतालों की भागीदारी अभी कमजोर
आईसीएमआर के वैज्ञानिकों का कहना है कि टीबी उन्मूलन में निजी अस्पतालों और क्लिनिक का योगदान अपेक्षा से कम है. कई मामलों की रिपोर्टिंग समय पर नहीं हो पाती, जिससे सही इलाज और निगरानी प्रभावित होती है. दवा का नियमित सेवन न होना भी कुछ जिलों में टीबी कंट्रोल की रफ्तार को धीमा कर रहा है.
पोस्ट-टीबी लंग डिजीज:
रिपोर्ट में पोस्ट-टीबी लंग डिजीज को लेकर भी चिंता जताई गई है. कई मरीज टीबी से ठीक होने के बाद भी लंबे समय तक सांस फूलने, फेफड़ों की कमजोरी और काम करने की क्षमता में कमी से जूझते हैं. देश में इस समस्या की पहचान और इलाज की व्यवस्था अभी कमजोर है, जबकि यह लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित कर रही है.
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आगे की राह...
वैश्विक स्तर पर टीबी उन्मूलन का लक्ष्य 2030 है, लेकिन भारत ने इसे 2025 तक हासिल करने का संकल्प लिया है. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने मजबूत कदम बढ़ाए हैं, लेकिन कमजोर जिलों में स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करना, पोषण सुधार पर ध्यान देना और निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है. तभी टीबी के खिलाफ यह जंग निर्णायक मोड़ तक पहुंच पाएगी.
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)














