Neha Dhupia Parenting Advice: हर मां-बाप चाहते हैं कि उनका बच्चा आत्मनिर्भर बने, आत्म-विश्वासी बने और सबसे जरूरी, खुद की बाउंड्रीज बनाए. अभिनेत्री और पेरेंटिंग एडवोकेट में से एक, नेहा धूपिया भी इसी सोच को अपने बच्चों की परवरिश में अपनाती हैं. हाल ही में उन्होंने एक पॉडकास्ट में यह बात शेयर की कि उन्होंने अपनी बेटी को एक बहुत ही जरूरी बात सिखाई है कॉन्सेंट यानी सहमति और असहमति.
नेहा कहती हैं, अगर बच्चा चाहता है कि वह खाना न खाए, या किसी को गाल न खिंचाए तो उसे सिर्फ़ इतना करना है कि बस बोल दो. बस इतना ही शब्द और वो साफ राय दे देता है कि नहीं कहना भी ठीक है. उनका कहना है कि बच्चों को यह एहसास होने चाहिए कि वे किसी के लिए खिलौना नहीं हैं और उनकी सहमति का सम्मान किया जाना चाहिए.
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यह बात सुनकर बच्चों की परवरिश और हमारी सोच दोनों ही बदलने का मौका मिलता है. आइए समझें कि इस सलाह में क्या-क्या सीखें हैं और क्यों यह पेरेंटिंग के लिए बहुत मायने रखती है.
कॉन्सेंट बताना क्यों है जरूरी? | Why Is it Important to Give Consent?
स्वतंत्रता और आत्म-सम्मान: जब हम अपने बच्चों को यह बताते हैं कि वे ना कह सकते हैं, चाहे वो खाना हो या कोई छुअन तो हम उन्हें अधिकार देते हैं कि वे अपनी एक्टिविटीज और बॉडी पर कंट्रोल करें. इससे उनके आत्म-सम्मान की नींव मजबूत होती है.
बाउंड्री समझना: हर इंसान, चाहे बच्चा हो या बड़ा, अपनी सीमाएं तय करता है. अगर बच्चा जानता है कि उसे कब हां करना है और कब ना कहना है, तो वह सुरक्षित महसूस करता है. नेहा की ये सीख बच्चों को ऐसा समझने में मदद करती है कि वो खुद को दूसरों के लिए खिलौना न बनने दें.
भावनात्मक सुरक्षा: बच्चों के लिए यह जानना आसान हो जाता है कि अगर वे किसी चीज़ से असहज हैं बेझिझक ना कह सकते हैं. इससे वे अपने डर, असहजता या असहमति को दबाए बिना व्यक्त कर सकते हैं, जो भावनात्मक और मानसिक सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी है.
नेहा धूपिया सिर्फ फिल्म-स्टार या मशहूर हस्ती नहीं हैं, वे उन माता-पिताओं में से एक हैं, जो अपनी पेरेंटिंग पर विचार करती हैं और जो अपने अनुभवों को खुलकर शेयर करती हैं.
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उनकी पेरेंटिंग की कुछ खास बातें:
वे चाहती हैं कि उनके बच्चे अपनी भावनाओं को महसूस करें, खुशी, गुस्सा, डर, सब और उसे खुलकर बोलें, बिना शर्म के. वे मानती हैं कि बॉडी पॉजिटिविटी और आत्म-स्वीकृति बच्चों को बचपन से ही सिखाई जानी चाहिए. मतलब बच्चों को यह बताया जाए कि उनका शरीर और व्यक्तित्व जैसा है सही है और उन्हें किसी मोल्ड में फिट होने की जरूरत नहीं और सबसे जरूरी कि वे सोचती हैं कि पेरेंटिंग में कॉन्सेंट का सम्मान होना चाहिए, बच्चों की सहमति का. चाहे वो सोशल मीडिया में उनको दिखाना हो, उनकी तस्वीरें शेयर करना हो, या रोजमर्रा के छोटे फैसले, बच्चों की अनुमति का ध्यान रखें.
पेरेंट्स के लिए सुझाव:
1. अपने बच्चे को ना कहने का हक दें: चाहें वो बचपन में हो या थोड़ी बड़ी उम्र में, उन्हें समझाएं कि उनकी सहमति जरूरी है.
2. बॉडी, आत्म-सम्मान और भावनाओं को सुरक्षित बनाएं: बच्चों की भावनाओं को सुनें, समझें; उन्हें यह भरोसा दें कि आप उनके साथ हैं, उनकी सुनेंगे.
3. कॉन्सेंट का मतलब बताएं, रोजमर्रा की भाषा में जैसे: अगर किसी को यह कहना है कि वो गाल खींचेगा/छूएगा तुम कह सकती हो कि ना.
4. मिस्टर/मिसेस पर्फेक्ट बनने की कोशिश न करें: पेरेंटिंग हमेशा आसान नहीं होती, लेकिन खुली बातचीत, समझदारी और सम्मान यही सबसे बड़ी पॉजिटिव पेरेंटिंग है.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)














