गार्जियन ने बताया कि वैज्ञानिकों, डॉक्टरों और रिसर्चरों ने एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) मॉडल बनाया है जो कैंसर की सटीक पहचान कर सकता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह डायग्नोस में तेजी ला सकता है और रोगियों को फास्ट ट्रैक ट्रीटमेंट भी दे सकता है. एआई टूल, जो "मौजूदा तरीकों की तुलना में कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से काम कर करता है" को रॉयल मार्सडेन एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट, इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर रिसर्च, लंदन और इंपीरियल कॉलेज लंदन के एक्सपर्ट्स द्वारा डिजाइन किया गया है. उपकरण यह पहचान सकता है कि किसी व्यक्ति के सीटी स्कैन में देखी गई असामान्यताएं कैंसर है या नहीं.
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शोध के निष्कर्ष लांसेट के एबियोमेडिसिन जर्नल में प्रकाशित हुए थे.
"भविष्य में, हम आशा करते हैं कि यह जल्दी पता लगाने में सुधार करेगा और संभावित रूप से हाई रिस्क वाले रोगियों की पहचान करके कैंसर के उपचार को और अधिक सफल बना देगा." ऑन्कोलॉजी रजिस्ट्रार जो रॉयल मार्सडेन में काम करते हैं.
स्टडी के लिए 500 रोगियों के सीटी स्कैन का किया उपयोग
शोध के लिए, टीम ने रेडियोमिक्स का उपयोग करके एआई एल्गोरिदम विकसित करने के लिए लगभग 500 रोगियों के सीटी स्कैन का उपयोग किया. ये तकनीक फोटो से ही जरूरी जानकारी निकाल सकती है जो मानव आंखों द्वारा आसानी से नहीं देखी जाती हैं. अध्ययन में यह भी देखा गया कि मॉडल कैंसर की आशंका का पता लगाने में कितना प्रभावी था. नतीजे बताते हैं कि एआई मॉडल 0.87 के एयूसी के साथ हर नोड्यूल के कैंसर के जोखिम को खोज सकता है.
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"इन शुरुआती रिजल्ट्स के अनुसार, हमारा मॉडल कैंसर के लार्ज लंग्स के बॉडी की सटीक पहचान करता प्रतीत होता है. इसके बाद, हम क्लिनिक में लार्ज लंग बॉडी वाले रोगियों पर टेक्नोलॉजी का टेस्ट करने का प्लान बना रहे हैं ताकि यह देखा जा सके कि क्या यह उनके लंग कैंसर के जोखिम का सटीक अनुमान लगा सकता है" श्री हंटर ने कहा.
बीमारी का पता लगाने में लगएगा तेजी
लिब्रा स्टडी के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर, डॉ रिचर्ड ली ने कहा, "इस काम के जरिए हम एआई जैसी तकनीकों का उपयोग करके बीमारी का पता लगाने में तेजी लाने की उम्मीद करते हैं."
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कैंसर दुनिया भर में मौत का एक प्रमुख कारण है और इसकी वजह से सालाना लगभग 10 मिलियन मौतें होती हैं, या छह मौतों में से लगभग एक.