26 नवंबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ओमिक्रोन (Omicron) को एक चिंताजनक वेरिएंट घोषित किया, जो इस महीने की शुरुआत में दक्षिणी अफ्रीका में पहली बार पाया गया था. वर्गीकरण ने ओमिक्रोन को विश्व स्तर पर प्रमुख डेल्टा और इसके कमजोर प्रतिद्वंद्वियों अल्फा, बीटा और गामा के साथ कोविड-19 वेरिएंट की सबसे ज्यादा परेशान करने वाली श्रेणी में डाल दिया. ओमिक्रोन दुनिया भर में 15 देशों में फैल गया है और रविवार (28 नवंबर) को गिनती करते हुए, दुनिया भर के कई देशों की सीमाओं को बंद कर दिया है. अपने अपडेट में, डब्ल्यूएचओ ने कहा कि यह "अभी तक साफनहीं है" कि क्या ओमिक्रोन एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में ज्यादा आसानी से फैलता है, या क्या इस वेरिएंट के संक्रमण से दूसरे वेरिएंट की तुलना में ज्यादा गंभीर बीमारी होती है. डब्ल्यूएचओ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रारंभिक साक्ष्यों से पता चलता है कि उन लोगों के जोखिम में वृद्धि हो सकती है, जिनके पास पहले ओमिक्रोन से सीओवीआईडी पुन: संक्रमित हो रहा था, लेकिन जानकारी वर्तमान में सीमित है.
चिंता के स्वरूप को और ज्यादा समझने के लिए एनडीटीवी ने एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया से बात की. उसी के बारे में बात करते हुए और यह बताते हुए कि अगर यह दूसरे वेरिएंट की तुलना में ज्यादा खतरनाक है व भारत के लिए इसका क्या मतलब है, उन्होंने कहा, ''B.1.1.529 वेरिएंट कंसर्न (variant of concern) वाला है, जो अद्वितीय उत्परिवर्तन यानी युनीक म्यूटेशन से बना हुआ है. इसमें 50 से ज्यादा म्यूटेशन हैं और 30 स्पाइक प्रोटीन दृष्टि से हुए हैं, इसलिए ये कई कारणों से चिंता का कारण कहा जा रहा है. एक यह है कि स्पाइक प्रोटीन वह प्रोटीन है, जिसके खिलाफ एंटीबॉडी बनते हैं और जो हमें कोविड-19 के लिए पुन: संक्रमण और गंभीर संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करता है. इसलिए, अगर हमारे पास उस तरफ इतने सारे उत्परिवर्तन होंगे, तो यह चिंतित करने वाली बात होगी. यह सब टीकाकरण के बाद भी फिर से संक्रमण होने की संभावना को बढ़ाएगा.''
डॉ गुलेरिया ने चिंता के दूसरे कारण पर भी जोर दिया और कहा कि अगर हम दक्षिण अफ्रीका से सामने आए आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि दो सप्ताह के भीतर संख्या में चार गुना वृद्धि हुई है. उसने आगे कहा '
''यह उछाल चिंता का एक बड़ा कारण है, जैसे कि उछाल इस वेरिएंट द्वारा संचालित किया जा रहा है, तो इसका मतलब है कि यह वेरिएंट हमारी सोच से कहीं ज्यादा संक्रामक है.''
इस बारे में बात करते हुए कि दुनिया को इस वेरिएंट के लिए कैसे तैयारी करनी चाहिए, डॉ गुलेरिया ने कहा,
''सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, हमें यह जानना चाहिए कि क्या यह वेरिएंट ज्यादा अधिक खतरनाक है - क्या यह ज्यादा अस्पताल में भर्ती होने और मौतों का कारण बनेगा और दूसरी बात यह है कि टीके इस नए संस्करण के खिलाफ कैसे हैं. हमारे पास यह डेटा नहीं है और हमें इसे जल्दी जुटाने कही जरूरत है.''
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डॉ गुलेरिया ने जनता को सावधान करते हुए कहा कि सभी को बहुत सतर्क रहने की जरूरत है.
डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि ओमिक्रोन में म्यूटेशन अभी हाई है. क्या इसका मतलब यह है कि आरटी-पीसीआर परीक्षण काम नहीं करेगा या इसका मतलब यह है कि यह लक्षणों के एक अलग सेट को जन्म देगा, उसी के बारे में बताते हुए डॉ गुलेरिया ने कहा,
''वर्तमान में, डेटा बताता है कि म्यूटेशन के खिलाफ आरटी-पीसीआर परीक्षण काम कर रहा है. व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले पीसीआर परीक्षण संक्रमण का पता लगाना जारी रखते हैं, जिसमें ओमिक्रोन से संक्रमण भी शामिल है. दूसरे, हमने इस वेरिएंट के साथ दक्षिण अफ्रीका में जो भी मामले देखे हैं, वे वर्तमान में यह नहीं बताते हैं कि लक्षण अलग हैं, लेकिन हमें अभी भी उस डोमेन में ज्यादा डेटा की जरूरत है.''
इस बारे में बात करते हुए कि क्या मौजूदा टीके इस नए वेरिएंट के खिलाफ काम करेंगे, डॉ गुलेरिया ने कहा,
''मेरी राय में, जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे, हमें दूसरी पीढ़ी के टीके बनाने होंगे, जो नए स्ट्रेन और वेरिएंट के लिए कवर होंगे. हम निश्चित रूप से टीकों की प्रभावशीलता में गिरावट करेंगे अगर हमारे पास यह सिर्फ मूल वायरस के खिलाफ है. जैसे-जैसे वायरस बढ़ता है और उत्परिवर्तित होता है, हमें नई पीढ़ी के टीके विकसित करने होंगे जो उन नए उपभेदों और उत्परिवर्तन को कवर करेंगे. हमारा उद्देश्य टीकों की प्रभावशीलता को जितना हो सके बेहतर और उच्च रखना और इन नए वेरिएंट और म्यूटेंशन्स को कवर करना होना चाहिए. हमें समय-समय पर नए टीके विकसित करने पर ध्यान देना होगा, ठीक वैसे ही जैसे हम इन्फ्लूएंजा के लिए करते हैं.''
तो, क्या भारत को कमजोर आबादी के लिए बूस्टर शॉट्स पर विचार करना चाहिए? इस सवाल पर डॉ गुलेरिया ने कहा,
''हमें इस पर ज्यादा डेटा की जरूरत होगी, पहले हमें यह स्थापित करने की जरूरत है कि क्या इस नए वेरिएंट में बहुत ज्यादा प्रतिरक्षा से बचने की व्यवस्था है और अगर टीके वायरस के इस स्ट्रेन के खिलाफ बहुत प्रभावी नहीं हैं, तभी हम अपनी वैक्सीन रणनीतियों की योजना बना सकते हैं.''