15 अगस्त पर जानिए भारत की हेल्थ जर्नी, क्या हम सच में सेहतमंत देश हैं? आजादी के बाद से अब तक क्या बदला?

India Health Journey: इस लेख में हम भारत की हेल्थ जर्नी के बारे में जानेंगे, जिसमें उपलब्धियां, चुनौतियां और वो सवाल जो हमें खुद से पूछने चाहिए. क्योंकि, एक सच्चे स्वतंत्र राष्ट्र की पहचान सिर्फ राजनीतिक आजादी नहीं, बल्कि सेहत की समानता भी है.

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India Health Journey: स्वतंत्र राष्ट्र की पहचान सिर्फ राजनीतिक आजादी नहीं, बल्कि सेहत की समानता भी है.

India Healthcare Evolution: आज हम 15 अगस्त मनाते हैं, तिरंगा लहराते हैं और गर्व से कहते हैं कि हम एक आजाद देश हैं. लेकिन, क्या हम एक सच में स्वस्थ राष्ट्र भी हैं? 1947 से 2025 तक का सफर सिर्फ राजनीति और विकास का नहीं, बल्कि सेहत के मोर्चे पर भी कई उतार-चढ़ाव का गवाह है. 15 अगस्त सिर्फ आजादी का जश्न नहीं, बल्कि आत्ममंथन का मौका भी है. क्या भारत सच में एक स्वस्थ राष्ट्र बन पाया है? आजादी के 78 सालों में हमने पोलियो को हराया, आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं शुरू कीं और कोविड जैसी महामारी से जूझे. लेकिन, क्या ये उपलब्धियां हर नागरिक तक पहुंची हैं? ग्रामीण भारत में आज भी प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं संघर्ष कर रही हैं और शहरी भारत में लाइफस्टाइल डिजीज बढ़ रही हैं. इस लेख में हम भारत की हेल्थ जर्नी का विश्लेषण करेंगे, उपलब्धियां, चुनौतियां और वो सवाल जो हमें खुद से पूछने चाहिए. क्योंकि एक सच्चे स्वतंत्र राष्ट्र की पहचान सिर्फ राजनीतिक आजादी नहीं, बल्कि सेहत की समानता भी है.

भारत ने अब तक स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्या खोया, क्या पाया?

1947 - आजादी और स्वास्थ्य की पहली चुनौतियां

आजादी के समय भारत का हेल्थ सिस्टम बहुत कमजोर था. औसत जीवन प्रत्याशा: सिर्फ़ 32 साल के आसपास. संक्रामक बीमारियां जैसे मलेरिया, प्लेग, चेचक और टीबी हर साल लाखों जानें लेती थीं. ग्रामीण इलाकों में डॉक्टर और अस्पताल लगभग न के बराबर थे. उस दौर में हेल्थकेयर अमीर और गरीब के बीच गहरी खाई थी.

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1950-1970 - स्वास्थ्य में शुरुआती सुधार

1951 में पहला राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम - नेशनल मलेरिया कंट्रोल प्रोग्राम शुरू हुआ.
1960 के दशक में टीबी, कुष्ठ और मलेरिया जैसी बीमारियों से लड़ने के लिए सरकारी अभियान शुरू हुए.
1962 में परिवार नियोजन कार्यक्रम लॉन्च हुआ, जो दुनिया का पहला राष्ट्रीय स्तर का फैमिली प्लानिंग मिशन था.

इन सालों में अस्पताल, मेडिकल कॉलेज और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बढ़ने लगे, लेकिन जनसंख्या वृद्धि स्वास्थ्य सेवाओं पर भारी पड़ रही थी.

1970-1990 – वैक्सीन क्रांति और बड़े अभियान

1978 में चेचक (Smallpox) को भारत से मुक्त घोषित किया गया, WHO के सहयोग से ये बड़ी जीत थी.
1985 में यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम शुरू हुआ, जिससे बच्चों को पोलियो, डिप्थीरिया, टिटनेस, खसरा जैसी बीमारियों से बचाने का टीकाकरण हुआ.
1988 में पोलियो उन्मूलन अभियान की शुरुआत हुई.

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लेकिन इस दौरान एड्स (HIV/AIDS) का खतरा भी भारत में बढ़ा, जिसके लिए 1992 में नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (NACO) बना.

2000-2010 - नई बीमारियां, नई योजनाएं

2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाना था.
2005 में ही जननी सुरक्षा योजना आई, जिससे संस्थागत प्रसव और मातृ मृत्यु दर में कमी आई.
2000 के दशक में डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारियों जैसी लाइफस्टाइल डिजीज तेजी से बढ़ीं, ये भारत की नई हेल्थ चुनौती बन गईं.

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2010-2020 - पोलियो मुक्त भारत और डिजिटल हेल्थ की शुरुआत

2014 में भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया गया, ये एक ऐतिहासिक सफलता थी.
हेल्थ टेक्नोलॉजी में टेलीमेडिसिन और डिजिटल हेल्थ कार्ड जैसे प्रयोग शुरू हुए.

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लेकिन इस दशक का सबसे बड़ा झटका था कोविड-19 महामारी (2020), जिसने हेल्थ सिस्टम की कमजोरियों को उजागर किया. अस्पतालों की कमी, ऑक्सीजन संकट और मानसिक स्वास्थ्य पर असर, सबने हमें सोचने पर मजबूर किया.

2020-2025 - आयुष्मान भारत और डिजिटल मिशन

आयुष्मान भारत योजना के तहत करोड़ों गरीब परिवारों को 5 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज उपलब्ध कराया गया.
नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन शुरू हुआ, जिससे हेल्थ रिकॉर्ड डिजिटल हुए.
रेबीज और मलेरिया उन्मूलन के लिए नए लक्ष्य तय हुए – 2030 तक भारत को मलेरिया मुक्त करने की योजना है.
लेकिन डायबिटीज, मोटापा, प्रदूषण और मानसिक स्वास्थ्य संकट आज भी बड़ी चुनौतियां हैं.

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क्या हम सच में स्वस्थ राष्ट्र हैं?

अगर आंकड़ों क बात की जाए तो:

जीवन प्रत्याशा: 1947 में 32 साल से बढ़कर आज 70+ साल हो गई है.
शिशु मृत्यु दर: पहले 150 प्रति 1000 से घटकर अब 25 से भी कम.
टीकाकरण: 90 प्रतिशत से ज्यादा बच्चों को जरूरी वैक्सीन मिलती है.

फिर भी:

  • लाइफस्टाइल बीमारियां, प्रदूषण से जुड़ी समस्याएं और हेल्थकेयर असमानता अब भी मौजूद है.
  • शहरों में आधुनिक अस्पताल हैं, लेकिन कई ग्रामीण इलाकों में अब भी डॉक्टर और दवाओं की कमी है.

1947 से 2025 तक की हेल्थ जर्नी बताती है कि भारत ने कई बीमारियों को हराया, जीवन प्रत्याशा बढ़ाई और सस्ती व मुफ्त स्वास्थ्य योजनाएं लागू कीं. लेकिन, स्वस्थ राष्ट्र बनने की मंजिल अभी बाकी है. जब तक हर नागरिक को समय पर, सस्ता और क्वालिटी इलाज नहीं मिलेगा, तब तक तिरंगे के साथ हेल्थ का सफेद झंडा भी पूरी तरह नहीं लहराएगा.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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