'द लांसेट डायबिटीज एंड एंडोक्राइनोलॉजी' जर्नल में छपे 14 साल लंबे फ्रांसीसी अध्ययन से पता चला है कि आमतौर पर इमल्सीफायर टाइप 2 डायबिटीज के जोखिम को बढ़ा सकते हैं. स्टडी के अनुसार डायबिटीज के खतरे को बढ़ाने वाले इमल्सीफायर में कैरेजेनन (प्रति दिन 100 मिलीग्राम की वृद्धि पर 3 प्रतिशत जोखिम), ट्रिपोटेशियम फॉस्फेट (प्रति दिन 500 मिलीग्राम की वृद्धि पर 15 प्रतिशत जोखिम) शामिल हैं. साथ ही फैटी एसिड के मोनो और डाइएसिटाइल टार्टरिक एसिड एस्टर (प्रति दिन 100 मिलीग्राम पर 4 प्रतिशत जोखिम), सोडियम साइट्रेट (प्रति दिन 500 मिलीग्राम की वृद्धि पर 4 प्रतिशत बढ़ा हुआ जोखिम), ग्वार गम (500 मिलीग्राम की वृद्धि पर 11 प्रतिशत जोखिम), अरबी गम (प्रति दिन 1,000 मिलीग्राम पर 3 प्रतिशत जोखिम) और ज़ैंथन गम (प्रति दिन 500 मिलीग्राम पर 8 प्रतिशत जोखिम) शामिल हैं.
एक्सपर्ट के अनुसार ये फूड एडिटिव आंत के माइक्रोबायोटा को बदल देते हैं, जिससे सूजन होती है और डायबिटीज हो जाती है. सर गंगा राम अस्पताल के मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ सलाहकार एम वली ने आईएएनएस को बताया, ''अध्ययन बताते हैं कि इन इमल्सीफायरों के लंबे समय तक उपयोग से आंत के माइक्रोबायोटा में गड़बड़ी जैसे दुष्प्रभाव हो सकते हैं. जब ऐसा होता है तो इंसुलिन रेसिस्टेंस में वृद्धि होती है.''
सीके बिड़ला अस्पताल गुरुग्राम के कंसल्टेंट्स इंटरनल मेडिसिन तुषार तायल ने कहा, ''इमल्सीफायर्स को आम तौर पर सुरक्षित माना जाता है और कुछ इमल्सीफायर्स जैसे जैंथम गम को कुछ परीक्षण विषयों में कोलेस्ट्रॉल के साथ-साथ फास्टिंग और पोस्ट-मील ब्लड शुगर को कम करने के लिए भी पाया गया.''
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उन्होंने कहा, ''हालांकि,डायबिटीज और अन्य बीमारियों के साथ उनका संबंध आंत माइक्रोफ्लोरा में बदलाव के कारण होता है, यह ध्यान में रखते हुए कि बीमारी से बचने का सबसे सरल तरीका पैकेज्ड फूड आइटम्स के सेवन से बचना है.''
इमल्सीफायर फूड एडिटिव हैं जो दो पदार्थों को मिलाने में मदद करते हैं जो आम तौर पर जुड़ने पर अलग हो जाते हैं. इनका उपयोग फूड मेन्युफेक्चर्स द्वारा बनावट को बढ़ाने और अलग अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड आइटम्स को लंबे समय तक शेल्फ-लाइफ देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
फोर्टिस हॉस्पिटल नोएडा के कंसल्टेंट डायबेटोलॉजी एंड एंडोक्राइनोलॉजी राकेश कुमार प्रसाद ने आईएएनएस को बताया, ''इमल्सीफायर सीधे आंतों के माइक्रोबायोटा की संरचना और कार्य को नियंत्रित कर सकते हैं, जिससे माइक्रोबायोटा अतिक्रमण और आंतों की सूजन हो सकती है, जिससे मेटाबॉलिज्म से जुड़ी बीमारियां बढ़ सकती हैं और हाई ब्लडप्रेशर, मोटापा, डायबिटीज और दूसरे कार्डियोमेटाबोलिक विकारों जैसी कई बीमारियों का भी खतरा हो सकता है."
आईसीएमआर के आंकड़ों के अनुसार, भारत में डायबिटीज का कुल प्रसार 11.4 प्रतिशत होने का अनुमान है, जबकि प्रीडायबिटीज 15.3 प्रतिशत है. डॉक्टरों ने कहा कि जो लोग नियमित रूप से प्रोसेस्ड फूड खाते हैं, या ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमें इमल्सीफायर के रूप में एडिटिव होते हैं, उन्हें जोखिम ज्यादा होता है.
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