भारत में 5 साल से कम उम्र के बच्चे रोज 2.2 घंटे स्क्रीन पर बिता रहे समय, आइडियल लिमिट से दोगुना

अध्ययन के अनुसार, स्क्रीन टाइम के बढ़ने से लेंगुएज डेवलपमेंट धीमा होना, कॉग्नेटिव फंक्शनिंग में कमी और सोशल स्किल ग्रोथ में बाधा के साथ-साथ मोटापे, नींद की आदतों में गड़बड़ी और एकाग्रता संबंधी समस्याओं के बढ़ते जोखिम से जुड़ी है.

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दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए औसत स्क्रीन समय 1.2 घंटे है.

भारत में बच्चों का स्क्रीन टाइम सुरक्षित सीमा से कहीं ज्यादा है. हाल ही में प्रकाशित अध्ययन और विशेषज्ञों की चेतावनियों के अनुसार, भारतीय बच्चों का स्क्रीन टाइम हेल्थ और ग्रोथ संबंधी गंभीर जोखिम पैदा कर रहा है. एम्स रायपुर के आशीष खोबरागड़े और एम. स्वाति शेनॉय द्वारा क्यूरियस नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए औसत स्क्रीन समय 1.2 घंटे है, जबकि ज्यादातर दिशानिर्देश इसे पूरी तरह से टालने की बात कहते हैं. दोनों ने 2,857 बच्चों पर किए गए 10 अध्ययनों का मेटा-विश्लेषण किया.

अध्ययन के अनुसार, स्क्रीन टाइम में बढ़ोत्तरी लेंगुएज डेवलपमेंट धीमा होना, कॉग्नेटिव फंक्शनिंग में कमी और सोशल स्किल ग्रोथ में बाधा के साथ-साथ मोटापे, नींद की आदतों में गड़बड़ी और एकाग्रता संबंधी समस्याओं के बढ़ते जोखिम से जुड़ी है. बहुत ज्यादा स्क्रीन समय के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए अध्ययन में कहा गया है कि घर में टेक-फ्री जोन बनाना, साफ और सुसंगत स्क्रीन समय सीमा निर्धारित करना और ऑफलाइन खेल और बातचीत में सक्रिय रूप से भाग लेना जरूरी है.

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अध्ययन क्या बताते हैं?

0–5 साल के बच्चों पर की गई एक मेटा‑विश्लेषण (systematic review) में पाया गया है कि ये बच्चे प्रतिदिन औसतन 2.22 घंटे स्क्रीन सामने बिताते हैं, जो सुरक्षित सीमा (1.2 घंटे) से दोगुना है. 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में यह समय औसतन 1.23 घंटे था, जबकि चिकित्सकी अनुशंसा के अनुसार इस उम्र में स्क्रीन समय बिल्कुल नहीं होना चाहिए.

विशेषज्ञों की चिंताएं

लखनऊ के King George's Medical University में किये गए अध्ययन से पता चला है कि डेली 4 घंटे से ज्यादा स्क्रीन समय वाले बच्चों में मोटापा, दृष्टि दोष, नींद की कमी, अवसाद, आक्रामकता, ADHD जैसे लक्षण, साइबरबुलिंग और आदी प्रवृत्तियां (जैसे गेम या इंटरनेट एडिक्शन) देखी जा रही हैं. देखा गया कि बच्चों के ब्रेन अभी भी विकासशील अवस्था में हैं और बहुत ज्यादा स्क्रीन उपयोग उनका ध्यान, भाषा विकास और भावनात्मक संज्ञान प्रभावित करता है.

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भारतीय एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (IAP) की गाइडलाइन्स:

  • 2 वर्ष से कम उम्र में – कोई स्क्रीन समय नहीं.
  • 2–5 वर्ष में – सबसे ज्यादा 1 घंटा प्रतिदिन और परिवार द्वारा देख-रेख किया जाना चाहिए.

बचाव के उपाय और सुझाव

घर और स्कूल में “डिजिटल हाइजीन” अपनाएं: स्क्रीन समय के लिए लिखित चीजें बनाएं, डिवाइस‑फ्री जोन तय करें और बच्चों को बाहरी खेल-कूद के लिए प्रेरित करें.

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स्क्रीन टाइम को कंट्रोल और क्वालिटी बनाएं: केवल शिक्षा से संबंधित सामग्री दिखाएं, हिंसक या आक्रामक कंटेंट से बचें.
नियमित नींद और शारीरिक गतिविधि सुनिश्चित करें: पर्याप्त नींद और खेलकूद से बच्चों का स्वास्थ्य बेहतर रहता है.

भारत में छोटे बच्चों का स्क्रीन टाइम सुरक्षित सीमा से दोगुना तक ज्यादा पाया गया है, जो उनके शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। IAP‑निर्देशों का पालन कर, माता‑पिता और शिक्षकों को बच्चों की डिजिटल वेलनेस पर सजग नजर रखनी चाहिए.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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