इंसानों में डिमेंशिया और अल्जाइमर के इलाज में मददगार हो सकती हैं बिल्लियां, स्टडी में खुलासा

यह शोध यूरोपियन जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस में प्रकाशित हुआ है. शोधकर्ताओं के अनुसार, उम्रदराज बिल्लियों में डिमेंशिया के कारण व्यवहार में बदलाव देखे जाते हैं, जैसे बार-बार म्याऊं करना, भ्रम की स्थिति और नींद में खलल. ये लक्षण इंसानों में अल्जाइमर रोग से मिलते-जुलते हैं.

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यह शोध यूरोपियन जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस में प्रकाशित हुआ है.

एक नई स्टडी में पता चला है कि बिल्लियों में डिमेंशिया की स्थिति इंसानों में अल्जाइमर रोग से मिलती-जुलती है. इससे बिल्लियां इस रोग के अध्ययन और इलाज के लिए एक अच्छा मॉडल बन सकती हैं. यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के वैज्ञानिकों ने पाया कि डिमेंशिया से पीड़ित बिल्लियों के दिमाग में टॉक्सिक प्रोटीन 'एमिलॉइड-बीटा' का जमाव होता है, जो अल्जाइमर रोग की मुख्य विशेषता है. यह शोध यूरोपियन जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस में प्रकाशित हुआ है. शोधकर्ताओं के अनुसार, उम्रदराज बिल्लियों में डिमेंशिया के कारण व्यवहार में बदलाव देखे जाते हैं, जैसे बार-बार म्याऊं करना, भ्रम की स्थिति और नींद में खलल. ये लक्षण इंसानों में अल्जाइमर रोग से मिलते-जुलते हैं.

अध्ययन के प्रमुख लेखक, विश्वविद्यालय के डिस्कवरी ब्रेन साइंसेज केंद्र के संवाददाता रॉबर्ट आई. मैकगीचन ने बताया, "यह शोध यह समझने में मदद करता है कि एमिलॉइड-बीटा प्रोटीन बिल्लियों में दिमागी कार्यक्षमता और मेमोरी लॉस को कैसे प्रभावित करता है."

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उन्होंने आगे बताया कि पहले अल्जाइमर रोग का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिक जेनेटिक रूप से बदले गए रोडेंट मॉडल का इस्तेमाल करते थे. लेकिन, इनमें डिमेंशिया अपने आप नहीं होता. बिल्लियों में डिमेंशिया स्वाभाविक रूप से होता है, इसलिए उनका अध्ययन करने से अल्जाइमर के बारे में नई जानकारी मिल सकती है. यह बिल्लियों और इंसानों, दोनों के लिए नए इलाज का रास्ता खोजने में मदद कर सकता है. रोडेंट ग्रुप में चूहे, गिलहरी, ऊदबिलाव जैसे स्तनधारी आते हैं.

मृत बिल्लियों के दिमाग का किया गया अध्ययन

वैज्ञानिकों ने 25 मृत बिल्लियों के दिमाग का अध्ययन किया, जिनमें कुछ डिमेंशिया से पीड़ित थीं. शक्तिशाली माइक्रोस्कोपी के जरिए पाया गया कि उम्रदराज और डिमेंशिया से ग्रस्त बिल्लियों के दिमाग के सिनैप्स (ब्रेन सेल्स के बीच संदेश भेजने वाले लिंक) में एमिलॉइड-बीटा का जमाव था. सिनैप्स दिमाग के स्वस्थ कार्य के लिए जरूरी हैं, और इनका नुकसान अल्जाइमर रोग में मेमोरी और सोचने की क्षमता को कम करता है.

शोधकर्ताओं ने यह भी देखा कि दिमाग में कुछ सहायक कोशिकाएं होती हैं, जैसे कि एस्ट्रोसाइट्स और माइक्रोग्लिया. ये कोशिकाएं खराब हो चुके सिनैप्स को 'खा' जाती हैं या निगल लेती हैं. इस प्रक्रिया को सिनैप्टिक प्रूनिंग कहते हैं. यह प्रक्रिया दिमाग के विकास के लिए तो अच्छी होती है, लेकिन डिमेंशिया में यह सिनैप्स के नुकसान का कारण बन सकती है.

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वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अध्ययन न केवल बिल्लियों में डिमेंशिया को समझने और प्रबंधित करने में मदद करेगा, बल्कि इंसानों में अल्जाइमर रोग के लिए नए इलाज को विकसित करने में भी योगदान दे सकता है.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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