टूथब्रश की बजाए नीम या बबूल की दातुन करने के शानदार फायदे, जानिए आयुर्वेद क्यों करता है सिफारिश

Neem Datun vs Toothbrush: नीम और बबूल की टहनियां कड़वी होती हैं, जिनमें प्राकृतिक रूप से जीवाणुनाशक, एंटीसेप्टिक और कसैले गुण पाए जाते हैं. जब इन्हें चबाया जाता है, तो यह मुंह में एक प्रकार का झाग बनाते हैं जो बैक्टीरिया को नष्ट करता है.

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नीम और बबूल की दांतुन दांतों, मसूड़ों और ओरल हेल्थ के लिए आयुर्वेदिक उपाय.

Neem Datun vs Toothbrush: आज जब बाजार में तरह-तरह के टूथपेस्ट और ब्रश मौजूद हैं, तब भी आयुर्वेद की परंपरागत विधि दातुन अपनी सरलता, प्राकृतिक गुण और प्रभावशीलता के कारण चर्चा में है. सदियों पहले जब न तो टूथब्रश थे और न ही केमिकल वाले पेस्ट, तब लोग नीम, बबूल और करंज जैसे पेड़ों की टहनियों से अपने दांतों और मसूड़ों की देखभाल करते थे. यह केवल एक क्लीजिंग प्रोसेस नहीं था, बल्कि दांतों, मसूड़ों और ओरल हेल्थ के लिए एक आयुर्वेदिक रूटीन था. नीम और बबूल की टहनियां कड़वी होती हैं, जिनमें प्राकृतिक रूप से जीवाणुनाशक, एंटीसेप्टिक और कसैले गुण पाए जाते हैं. जब इन्हें चबाया जाता है, तो यह मुंह में एक प्रकार का झाग बनाते हैं जो बैक्टीरिया को नष्ट करता है और दांतों के चारों ओर जमा गंदगी को साफ करता है.

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दातुन का इस्तेमाल करने के फायदे

सरल भाषा में कहें तो जब आप दातुन को चबाते हैं, तो इसके रेशे आपके दांतों के बीच जाकर प्राकृतिक फ्लॉस की तरह काम करते हैं. इससे प्लाक और फूड पार्टिकल्स हटते हैं. दातुन की नोक से मसूड़ों की मालिश होती है, जिससे ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है और मसूड़े मजबूत बनते हैं. नीम और बबूल में मौजूद कड़वे और कसैले रस मसूड़ों से खून आना, सूजन और बदबू जैसी समस्याओं को जड़ से खत्म करते हैं.

मुंह के बैक्टीरिया को करते हैं नष्ट 

वहीं आधुनिक टूथपेस्ट में मौजूद फ्लोराइड और अन्य केमिकल लंबे समय तक इस्तेमाल करने पर नुकसानदायक हो सकते हैं, जबकि दातुन एक 100 प्रतिशत प्राकृतिक विकल्प है. यह न केवल दांतों को साफ करता है, बल्कि पूरे मुंह की सेहत को बैलेंस करता है. इसमें मौजूद औषधीय गुण मुंह के बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं और लंबे समय तक सांसों को फ्रेश बनाए रखते हैं.

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प्राचीन काल में राजा-महाराजा से लेकर ऋषि-मुनि तक सभी दातुन का प्रयोग करते थे. यौगिक रूटीन में इसे शरीर को शुद्ध और एनर्जेटिक बनाए रखने के लिए अनिवार्य माना गया है. यही कारण है कि कई गांवों और पारंपरिक घरों में आज भी सुबह-सुबह लोग नीम या बबूल की टहनी लेकर चबाते दिखाई देते हैं.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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