वायु प्रदूषण से हर साल 33,000 भारतीयों की मौत, डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन से भी नीचे भारत की एयर क्वालिटी : रिपोर्ट

लेखकों ने 10 शहरों में PM2.5 के संपर्क और 2008 से 2019 के बीच मृत्यु दर की गणना के आंकड़ों का उपयोग किया. अध्ययन में पाया गया कि वर्तमान भारतीय वायु गुणवत्ता मानकों से नीचे वायु प्रदूषण से भी देश में दैनिक मृत्यु दर में वृद्धि होती है.

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अध्ययन में दिखाया गया कि "मौतें अल्पकालिक PM.5 एक्सपोजर के कारण थीं.

भारत के 10 शहरों में हर साल लगभग 33,000 मौतें वायु प्रदूषण के कारण होती हैं, जो भारत की नेशनल क्लीन एयर लिमिट से नीचे है. यह रिपोर्ट लैंसेट प्लेनेटरी हेल्थ में प्रकाशित हुई है. भारत के स्वच्छ वायु मानदंड वर्तमान में विश्व स्वास्थ्य संगठन के हर क्यूबिक मीटर एयर में 15 माइक्रोग्राम के दिशानिर्देश से काफी ऊपर हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को अपने स्वच्छ वायु मानदंडों को कम से कम WHO के दिशानिर्देशों के अनुरूप कम करना चाहिए ताकि नागरिकों को प्रदूषित हवा के खतरों से बचाया जा सके.

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लेखकों ने 2008 से 2019 के बीच मृत्यु दर के आंकड़ों का किया इस्तेमाल:

लेखकों ने 10 शहरों में PM2.5 के संपर्क और 2008 से 2019 के बीच मृत्यु दर की गणना के आंकड़ों का उपयोग किया. अध्ययन में पाया गया कि वर्तमान भारतीय वायु गुणवत्ता मानकों से नीचे वायु प्रदूषण से भी देश में दैनिक मृत्यु दर में वृद्धि होती है.

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"देश के 10 शहरों अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, पुणे, शिमला और वाराणसी में हर साल लगभग 33,000 मौतें वायु प्रदूषण के कारण होती हैं जो डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों से ज्यादा है."

इसमें कहा गया है कि "मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता और चेन्नई जैसे हाई पॉल्यूशन वाले शहरों में भी बड़ी संख्या में मौतें देखी गईं, जिन्हें हाई एयर पॉल्यूशन वाले वाले नहीं माना जाता है," उन्होंने आगे कहा, "भारत के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों को और ज्यादा कठोर बनाया जाना चाहिए और वायु प्रदूषण को कंट्रोल करने के प्रयासों को दोगुना किया जाना चाहिए."

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अध्ययन में पाया गया कि 2008 और 2019 के बीच इन सभी 10 शहरों में सभी मौतों में से 7.2 प्रतिशत (लगभग 33,000 प्रति वर्ष) शॉर्ट-टर्म PM2.5 जोखिम से जुड़ी हो सकती हैं जो हवा के प्रत्येक क्यूबिक मीटर में 15 माइक्रोग्राम के डब्ल्यूएचओ के गाइडलाइन वैल्यू से ज्यादा थी.

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मौतों की सबसे ज्यादा संख्या दिल्ली में:

विज्ञप्ति में कहा गया है, "प्रत्येक क्यूबिक मीटर वायु में 10 माइक्रोग्राम की वृद्धि से अल्पकालिक PM2.5 एक्सपोजर में डेली मौतों में 1.42 प्रतिशत की वृद्धि हुई. जब हमने स्थानीय वायु प्रदूषण स्रोतों के प्रभाव को अलग करने वाले कारणात्मक मॉडलिंग दृष्टिकोण का उपयोग किया, तो यह अनुमान लगभग दोगुना होकर 3.57 प्रतिशत हो गया." अध्ययन अवधि में वायु प्रदूषण से संबंधित मौतों की सबसे ज्यादा संख्या दिल्ली में दर्ज की गई, चौंका देने वाली 11.5 प्रतिशत यानी हर साल 12,000 मौतें.

वाराणसी में मौतों की दूसरी सबसे ज्यादा संख्या दर्ज:

अध्ययन में दिखाया गया कि "मौतें अल्पकालिक PM.5 एक्सपोजर के कारण थीं, जो WHO के गाइडलाइन वैल्यू से ज्यादा थी." "प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर वायु में अल्पकालिक PM.s एक्सपोजर में वृद्धि से डेली मौतों में 0.31 प्रतिशत की वृद्धि हुई." इस अवधि के दौरान वाराणसी में मौतों की दूसरी सबसे ज्यादा संख्या दर्ज की गई - 10.2 प्रतिशत या लगभग 830 मौतें प्रति वर्ष, जो WHO के गाइडलाइन वैल्यू से ज्यादा अल्पकालिक PM2.5 एक्सपोजर के कारण थीं. अध्ययन में पाया गया कि हवा में प्रति घन मीटर प्रति 10 माइक्रोग्राम की वृद्धि से अल्पकालिक पीएम एक्सपोजर में दैनिक मौतों में 1.17 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

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बेंगलुरु में 2,100, चेन्नई में 2,900, कोलकाता में 4,700 और मुंबई में लगभग 5,100 लोगों की हुई मौत:

अध्ययन अवधि के दौरान बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण हर साल बेंगलुरु में लगभग 2,100, चेन्नई में 2,900, कोलकाता में 4,700 और मुंबई में लगभग 5,100 लोगों की मृत्यु हुई. ये सभी मौतें डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देश मूल्य से अधिक अल्पकालिक पीएम 2.5 एक्सपोजर के कारण हुईं. शिमला में वायु प्रदूषण का सबसे कम स्तर दर्ज किया गया. हालांकि, पहाड़ी शहर में वायु प्रदूषण अभी भी एक जोखिम बना हुआ है, जहां सभी मौतों में से 3.7 प्रतिशत - 59 प्रति वर्ष - डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देश मूल्य से अधिक अल्पकालिक पीएम 2.5 एक्सपोजर के कारण होती हैं.

अध्ययन में बताया गया, "शिमला के परिणाम वैश्विक साक्ष्य को पुष्ट करते हैं कि वायु प्रदूषण एक्सपोजर का कोई सुरक्षित लेवल नहीं है." एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि यह पहला बहु-शहरी अध्ययन है, जिसमें भारत में अल्पकालिक वायु प्रदूषण जोखिम और मौतों के बीच संबंधों का आकलन किया गया है, जिसमें वायु प्रदूषण सांद्रता की एक विस्तृत श्रृंखला में फैले शहरों को शामिल किया गया है और वे कई कृषि-जलवायु क्षेत्रों में स्थित हैं.

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यह अध्ययन सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव, अशोका यूनिवर्सिटी, सेंटर फॉर क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल, स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट, हार्वर्ड और बोस्टन यूनिवर्सिटी और अन्य स्थानों के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया था.

इसमें कहा गया है कि पीएम 2.5 की कम सांद्रता पर मृत्यु के जोखिम में भारी वृद्धि हुई और हाई कॉन्सनट्रेशन पर यह कम हो गया, साथ ही 24 घंटे के एक्सपोजर के लिए हवा के प्रति क्यूबिक मीटर 60 माइक्रोग्राम के वर्तमान नेशनल एंबिएंट एयर क्वालिटी स्टेंडर्ड से नीचे बड़ा प्रभाव देखा गया.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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