बच्चों के साथ आप भी करते हैं ऐसा बर्ताव, तो जज्बाती रूप से कमजोर हैं आप, जानिए कैसे लाएं बदलाव

अक्सर कुछ पैरेंट सही समय पर सही तरह से रिएक्ट नहीं कर पाते या समझ नहीं पाते कि उन्हें किस तरह रिएक्ट करना चाहिए. जिसका बच्चे पर बुरा असर पड़ता है. इस तरह के रिएक्शन्स को Emotional Immaturity कहा जाता है.

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Parenting Tips: एक पैरेंट के तौर पर हो सकता है आपने अपने बच्चे को हर तरह की सुविधा मुहैया करवाई हो. खाने से लेकर पढ़ाई और एंटरटेनमेंट के बेहतर ऑप्शन आपने उन्हें प्रोवाइड कराए हों. पर, क्या एक बच्चे के लिए इतना काफी है. क्या आपने ऐसा नोटिस किया है कि सारी सुविधाओं के बावजूद आपका बच्चा उदास और गुमसुम रहता है. आपसे दूर दूर रहता है. अगर ऐसा है तो आपको अपना बर्ताव चेक करने की जरूरत है. अक्सर कुछ पैरेंट्स सही समय पर सही तरह से रिएक्ट नहीं कर पाते या समझ नहीं पाते कि उन्हें किस तरह रिएक्ट करना चाहिए. जिसका बच्चे पर बुरा असर पड़ता है. इस तरह के रिएक्शन्स को Emotional Immaturity कहा जाता है. आप इसका शिकार हैं या नहीं इन पांच  संकेतों से समझ सकते हैं.

इमोशनल इममैच्योरिटी के संकेत (Signs Of Emotionally immature parent)

खुद के बारे में सोचना

एक  पैरेंट होने के बावजूद आप सिर्फ अपनी जज्बाती जरूरतों से जूझते रह जाते हैं. आपको क्या चाहिए, आपको क्या पसंद है, आपको किसका तरीका पसंद आया, किसका नहीं- इन सब बातों में उलझ कर आप अपने बच्चों के इमोशन्स को भी दरकिनार कर देते हैं.

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अपनी बातों पर अड़े रहना

इमोशनली इममैच्योर पेरेंट्स अपनी बात पर अड़े रहते हैं. ऐसा करते समय वो बदलते समय और उम्र के साथ बच्चों की जरूरतों पर भी ध्यान नहीं देते. ये अड़ियल रवैया बच्चों की मानसिकता पर नागंवार गुजर सकता है.

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ओवर रिएक्ट करना

कुछ पैरेंट्स ये समझ नहीं पाते कि उन्हें कब किस कंडीशन में कैसे रिएक्ट करना है. कभी किसी कंडीशन में वो ओवर रिएक्ट कर जाते हैं और कभी कोई रिएक्शन ही नहीं देते.

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परेशानियों को अवॉइड करना

इमोशनली इममैच्योर पेरेंट की ये सबसे बड़ी निशानी है. जो किसी बात पर बच्चों से सहमत नहीं होते या उनकी कोई डिमांड पूरी नहीं करना चाहते तो उन्हें समझाते नहीं है या उस पर खुलकर बात नहीं करते. बल्कि उस मुद्दे पर चर्चा ही बंद कर देते हैं.

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हर वक्त अधिकार जमाना

कुछ पेरेंट बच्चों को उनकी जरूरतों और उम्र के हिसाब से स्पेस नहीं देते. बल्कि सख्त रूल्स की दुहाई देते रहते हैं.

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इससे कैसे उभरें?

इस तरह की जज्बाती गलतियों से बचने के लिए सबसे पहले अपने बच्चों के साथ समय बिताएं. उनकी बातें सुनने की आदत डालें और समझने की कोशिश  करें. अपने रिएक्शन्स को भी थोड़ा लो रखें. पहले समझ लें फिर रिएक्ट करें. जब लगे कि आपके बात से बच्चा चिड़चिड़ा रहा है तब उस टॉपिक को बदल दें. अपने बच्चों को भी फैसले लेने के लिए स्पेस दें और एप्रिशिएट भी करें.

अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.

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