Ayodhya Ram Mandir: 22 जनवरी को राम मंदिर में होगी प्राण प्रतिष्ठा, जानिए विधि और महत्व के बारे में

Ram Mandir Prana Pratishtha: मान्यतानुसार प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ देवी-देवताओं की प्रतिमा में भगवान की शक्ति स्वरूप की स्थापना करना है. इसके लिए विशेष धार्मिक अनुष्ठान और मंत्रों का जाप किया जाता है.

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What Is Prana Pratishtha: प्राण प्रतिष्ठा का महत्व और विधि आप भी जान लीजिए.

Ayodhya Ram Temple: सनातन धर्म में भक्ति को ईश्वर को पाने का मार्ग बताया गया है. भक्त ईश्वर की भक्ति कर उनकी कृपा प्राप्त करते हैं. इसके लिए शास्त्रों में पूजा-पाठ और अनुष्ठान का वर्णन भी किया गया है. मुख्य रूप से ईश्वर की पूजा मंदिर और मठों में होती है लेकिन भक्त अपने घर में पूजा करते हैं. इसके लिए घर में देवी-देवताओं के चित्र या प्रतिमा स्थापित की जाती है. मान्यता है कि बगैर प्राण प्रतिष्ठा (Prana Pratishtha) के मूर्ति पूजा नहीं करनी चाहिए. इससे पूजा का शुभ फल प्राप्त नहीं होता है. अयोध्या में 22 जनवरी को विशाल नवनिर्मित राम मंदिर (Ram Mandir) में प्राण प्रतिष्ठा की बड़े स्तर पर तैयारियां चल रही हैं. आइए जानते हैं क्यों की जाती है मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा और क्या है इसका महत्व.

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प्राण प्रतिष्ठा क्या है | What Is Prana Pratishtha 

धर्म के विद्वानों के अनुसार, मंदिर या घर पर मूर्ति स्थापना के समय प्रतिमा रूप में भगवान की शक्तियों को जाग्रत करने की विधि प्राण प्रतिष्ठा होती है. मूर्ति स्थापना के समय प्राण प्रतिष्ठा करना जरूरी होता है. अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम शुरू हो चुका है. धार्मिक मत है कि प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात मूर्ति रूप में उपस्थ्ति देवी-देवता की पूजा-उपासना की जाती है.

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प्राण प्रतिष्ठा मंत्र

मानो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं

तनोत्वरिष्टं यज्ञ गुम समिमं दधातु विश्वेदेवास इह मदयन्ता मोम्प्रतिष्ठ ।।

अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च अस्यै

देवत्व मर्चायै माम् हेति च कश्चन ।।

ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः सुप्रतिष्ठितो भव

प्रसन्नो भव, वरदा भव ।।

प्राण प्रतिष्ठा की विधि

प्रतिमा को गंगाजल या नदियों के जल से स्नान कराया जाता है. इसके बाद मूर्ति को पोंछकर और देवी-देवता के प्रिय रंग के नवीन वस्त्र धारण कराए जाते हैं. प्रतिमा को स्थान पर स्थापित कर चंदन का लेप लगाया जाता है. मूर्ति का पूरा श्रृंगार किया जाता है और फिर मंत्रों का पाठ कर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. इसके बाद पंचोपचार कर विधि-विधान से भगवान की पूजा की जाती है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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