Ram Mandir Dhwajarohan 2025: राम मंदिर की धर्म ध्वजा का क्या महत्व है? घर पर लगाना चाहते हैं तो जान लें सभी जरूरी नियम

Ram Mandir Dhwajarohan: सनातन परंपरा में किसी भी देवालय या धर्म स्थान पर फहराई जाने वाली धर्म ध्वजा का बहुत ज्यादा महत्व होता है. आज अयोध्या में रामलला के मंदिर में जिस धर्म ध्वज को स्थापित किया जा रहा है, उसके क्या मायने हैं? घर में लगाते इसे लगाते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.

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Ram Mandir Dhwajarohan Ceremony 2025: मंदिर पर आखिर क्यों फहराई जाती है धर्म ध्वजा?
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Ram Mandir Dhwajarohan 2025:  सनातन धर्म में ध्वजा का विशेष महत्व है. ध्वज को लोक भाषा में पताका के नाम से भी जाना जाता है. यह ध्वज विभिन्न स्थलों पर उन्नति एवं ऐश्वर्य का सूचक बनकर स्थान भेद से अनेक नाम से जाना जाता है, जैसे राजमहल पर राष्ट्र ध्वज तो धार्मिक स्थलों मठ-मंदिरों आदि पर स्थित होकर धर्मध्वज के नाम से जाना जाता है. धर्मध्वज हमारी धार्मिक एवं आध्यात्मिक चेतना की अभिवृद्धि एवं उन्नति का प्रतीक है, इसलिए इसे मंदिरों के निर्माण प्रसंग में अपरिहार्य रूप से स्वीकार किया गया है. शास्त्रों के अनुसार बगैर धर्मध्वजा वाले मंदिर पर राक्षसी चिंतन का प्रभाव होता है और वहां पर किया गया जप तप यज्ञ होम आदि का पूर्ण फल हमें प्राप्त नहीं होता है, इसीलिए हमें नियमानुसार सभी मठ मंदिरों पर धर्म ध्वज अवश्य स्थापित करना चाहिए.

धर्म ध्वजा के लिए क्या कहता है शास्त्र

चिन्तयन्त्यसुरश्रेष्ठा ध्वजहीनं सुरालयम्। ध्वजेन रहितं व्रह्ममण्डपं तु वृथा भवेत्। 
पूजा यगादिकं सर्वं जपाद्य यत्कृतं बुधैरिति” ध्वजारोपणफलं तत्रैव “यं कृत्वा पुरुषः सम्यक् समस्तफलमाप्नुयादिति”।

शास्त्रों के अनुसार धर्म ध्वज सफेद, पीला, लाल, काला या अनेक वर्णों से युक्त अनेक प्रकार का तथा अनेक परिमाण का भी होता है. इसका चयन मंदिरों पर देव विग्रह की प्रकृति, प्रवृत्ति एवं स्वरूप के अनुरूप शास्त्र व्यवस्था के अनुसार किया जाता है. यह मंदिर का एक आवश्यक अंग है तथा इसके अधिष्ठात्री देवता भी होते हैं, इसलिए ध्वज से रहित मंदिर अपूर्ण माने जाते हैं. धर्म ध्वज 5 हाथ परिमाण से आरंभ कर 12 हाथ पर्यंत क्रमशः जया, विजया, भीमा, चपला, वैजयन्तिका, दीर्घा, विशाला तथा लीला के नाम से एक एक हाथ वृद्धि के परिमाण से परिभाषित होता है. 

कैसी होनी चाहिए धर्म ध्वजा? 

देव प्रतिष्ठांग भूत पताका ध्वज तथा महाध्वज दो नाम से प्रतिष्ठित होता है, जो सामान्य रूप से 2 हाथ चौड़ा एवं 5 हस्त प्रमाण लम्बा होता है, जिस पर अश्व, गज, वृषभ, स्वस्तिक, सिंह आदि का चित्र अंकित होता है. ध्वज भंग अनिष्ट एवं अशुभता का संकेतक भी होता है, इसलिए किसी आपात स्थिति में ध्वजभंग होने पर अतिरिक्त सजगता बरतने के साथ-साथ शांति विधान भी शास्त्रों में वर्णित है. यह व्यवस्था केवल मंदिरों के लिए ही नहीं अपितु गृहों के लिए भी वर्णित है. ऐसे में सभी सनातन धर्मावलंबियों को सनातन धर्म की अभ्युन्नति के प्रतीक ध्वज की स्थापना अपनी गृह के ऊपर भी करनी चाहिए, जिससे कि आध्यात्मिक एवं धार्मिक उन्नति के साथ जीवन का समग्र विकास संभव हो सके.

कब बदलना चाहिए धर्म ध्वजा?

धर्म ध्वजा की स्थापना के लिए नियमों का पालन भी आवश्यक होता है, इसलिए नियमपूर्वक ही रक्त पीत या श्वेत ध्वज को घर के ऊपर अवश्य फहराना चाहिए तथा मालिन या रंगहीन हो जाने पर अथवा कट-फट जाने पर उसे यथाशीघ्र पुनः दूसरी ध्वज का स्थापना करते हुए पुरानी ध्वज को परिवर्तित कर देना चाहिए. यह आपके जीवन में सुख-शांति समृद्धि के साथ-साथ ऐश्वर्य की अभिवृद्धि में सहायक होता है. सामान्यतः घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो अथवा कोई शुभ बेला हो तो उसे समय ध्वज स्थापित करने की परंपरा है. इसके अलावा आवश्यकता पड़ने पर कभी भी धर्म कार्य के लिए ध्वज का परिवर्तन पूजन पूर्वक शुभ दिनों में किया जा सकता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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