आखिर...कौन हैं बिमला देवी जिन्हें भोग लगाने के बाद ही प्रसाद ग्रहण करते हैं भगवान जगन्नाथ

भगवान से पहले बिमला देवी को भोग गलाया जाता है. मान्यता है कि बिमला देवी के भाग लगाए बगैर भगवान भोग ग्रहण नहीं करते हैं.

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Jagannath Rath Yatra 2024: पुरी का जगन्नाथ मंदिर पवित्र चार धामों में से एक है. हर स्थान पर राधा रानी के साथ विराजने वाले प्रभु यहां भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ स्थापित हैं. मान्यता है कि पुरी की जगन्नाथ भगवान (Lord Jagannath) की मुर्ति में भगवान श्री कृष्ण का हृदय धड़कता है. हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि को पुरी में भव्य रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) निकलती है, जिसमें देश-विदेश से हजारों लोग शामिल होते हैं. पुरी के भगवान जगन्नाथ का बिमला देवी से गहरा नाता है. भगवान से पहले बिमला देवी (Bimla devi) को भोग लगाए जाने की परंपरा है. मान्यता है कि बिमला देवी के भोग लगाए बगैर भगवान जगन्नाथ भोग ग्रहण नहीं करते हैं. तो चलिए जानते हैं आखिर कौन हैं बिमला देवी और क्यों प्रभु से पहले उन्हें लगाया जाता है भोग.

माता पार्वती का रूप

भगवान जगन्नाथ के धाम पुरी में बिमला देवी की भी पूजा की जाती है. देवी बिमला को आदि शक्ति मां पार्वती का स्वरूप माना जाता है, जो भगवान विष्णु की बहन हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बिमला देवी पुरी की अधिष्ठात्री देवी हैं. पुरी मंदिर परिसर में देवी बिमला की पीठ स्थापित है. मंदिर में भोग तैयार होने पर भगवान जगन्नाथ को लगाया जाने वाला भोग पहले बिमला देवी को चढ़ाया जाता है उसके बाद ही प्रभु को भोग लगाया जाता है. 

बिमला देवी को क्यों चढ़ाया जाता है भोग

पौराणिक कथा के अनुसार,  भगवान विष्णु के लिए देवी लक्ष्मी स्वयं भोग तैयार करती थीं. नारद मुनि को इस भोग को चखने की बड़ी इच्छा थी. आखिरकार माता लक्ष्मी को प्रसन्न कर वरदान में भोग चखने का वर मांग लिया. माता लक्ष्मी ने उन्हें भोग प्रसाद दिया लेकिन इसे अपने तक ही सीमित रखने के लिए कहा. नारद मुनि प्रसाद लेकर कैलाश चले गए और उनके मुंह से महाभोग की बात निकल गई. भगवान शिव ने भी प्रसाद ग्रहण करने की इच्छा जताई. प्रसाद ग्रहण कर भोलेनाथ प्रसन्न होकर नृत्य करने लगे जिससे कैलाश डगमगाने लगा.

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देवी पार्वती ने इसका कारण पूछा और भोग की बात पता चलने पर प्रसाद ग्रहण करने की इच्छा जताई लेकिन प्रसाद समाप्त हो गया था. इससे देवी रुष्ट हो गईं. इसके बाद भगवान शिव देवी के साथ जगन्नाथ धाम पहुंचे. देवी पार्वती ने मायके में भोजन करने की इच्छ प्रकट की. भगवान जगन्नाथ जी सब कुछ समझ गए और कहा देवी लक्ष्मी के हाथ से बने भोग का प्रसाद पाने से कर्म का सिद्धांत बिगड़ सकता है इसलिए मैंने इसे सीमित रखा था लेकिन अब सभी इसे ग्रहण कर पाएंगे. मेरे लिए तैयार भोग सबसे पहले मेरी बहन पार्वती देवी को अर्पित किया जाएगा. संतानों के प्रति बिमल प्रेम के कारण देवी पार्वती बिमला देवी के रूप में जगन्नाथ धाम में विराजेगी.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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