हाथ से मैला उठाने की मजबूरी! मजदूरों की तस्वीर वायरल होने के बाद दिल्ली में क्यों मचा घमासान? जानिए पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और कानून होने के बावजूद देश के अलग-अलग हिस्सों में अभी भी हाथों से मैला उठाया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने कई बार इस बात पर जोर दिया है कि नालों की सफाई के समय मजदूरों की सुरक्षा का ध्यान रखा जाए और हाथों से मैला नहीं उठाया जाए. लेकिन इस तस्वीर ने आम आदमी पार्टी को एक बार फिर से मौका दे दिया सरकार पर हमला करने का.

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राजधानी दिल्ली में लोक निर्माण विभाग के एक ट्वीट से विवाद खड़ा हो गया है. विभाग ने नालों की सफाई को लेकर एक तस्वीर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक पर साझा किया, जिसमें दिख रहा है कि मजदूरों से नालों की सफाई कराई जा रही है. मानसून से पहले पूरे दिल्ली में नालों की सफाई, सड़क पर जहां पर भी अवरोध है, उसको हटाया जा रहा है ताकि किसी भी तरह का जल भराव की स्थिति आने वाले दिनों में ना हो. उसी को ध्यान में रखकर पीडब्ल्यूडी पूरे दिल्ली में नाले की सफाई कर रही है. लेकिन इस तस्वीर ने विपक्ष को सरकार पर सवाल करने का एक और मौका दे दिया.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और कानून होने के बावजूद देश के अलग-अलग हिस्सों में अभी भी हाथों से मैला उठाया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने कई बार इस बात पर जोर दिया है कि नालों की सफाई के समय मजदूरों की सुरक्षा का ध्यान रखा जाए और हाथों से मैला नहीं उठाया जाए. लेकिन इस तस्वीर ने आम आदमी पार्टी को एक बार फिर से मौका दे दिया सरकार पर हमला करने का.

दिल्ली आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने ने ट्वीट करते हुए लिखा, "भाजपा सरकार हमेशा से दलित और गरीब का शोषण करने वाली रही है, मैन्युअल स्कैवेंजिंग (हाथ से काम) करवाया जा रहा है. इनके ऊपर कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए". हालांकि पीडब्ल्यूडी ने पोस्ट वायरल होने के बाद उसे पोस्ट को डिलीट कर दिया.

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एनडीटीवी ने जब मुख्यमंत्री से यह सवाल किया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश होने के बावजूद दिल्ली में खुलेआम हाथों से मिला उठाया जा रहा है तो वो कहती है, "दिल्ली में मानसून को लेकर सरकार अपनी तैयारी कर रही है. कुछ जगहों पर मशीन से मैला नहीं हटाया जा सकता. इसलिए वहां पर मजदूरों को लगाया गया है. लेकिन दिल्ली सरकार कोर्ट की आदेशों को ध्यान में रखकर ही काम कर रही है".

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बता दें कि हाल ही में दिल्ली में ही दिल्ली जल बोर्ड से जुड़े हुए एक नाले को साफ करते हुए एक मजदूर की मौत हो गई थी. भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक नालों की सफाई के दौरान साल 2019 से 2023 के बीच 377 लोगों की मौत हो गई. वहीं, अकेले दिल्ली में 2013 से 2024 के बीच नेशनल कमीशन फॉर सफाई कर्मचारी के मुताबिक 72 लोगों की मौत सफाई हुई.

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क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में एक ऐतिहासिक फैसले में हाथ से कचरे और गंदगी की सफाई रोकने के लिए तमाम निर्देश जारी किए थे. साथ ही कहा था कि सीवर की खतरनाक सफाई के लिए किसी मजदूर को न लगाया जाए.

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बिना सेफ्टी के सीवर लाइन में मजदूर को न उतारा जाए. कानून का उल्लंघन करने वालों को सख्त सजा का भी प्रावधान किया गया था.

राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वह 2013 के उस कानून को लागू करे, जिसमें हाथ के कचरा उठाने की प्रथा को खत्म करने के लिए कानूनी प्रावधान किया गया और पीड़ितों के पुनर्वास के लिए प्रावधान किया गया था.

सुप्रीम कोर्ट में केस पेंडिंग रहने के दौरान ही केंद्र सरकार ने एक्ट (प्रोहिबिशन ऑफ इंप्लायमेंट एस मैन्युअल स्कैविंजर एंड देयर रिहेबिलेशन एक्ट 2013) बनाया था. याचिका में कहा गया था कि उनके जीवन के अधिकार और समानता के अधिकार की रक्षा की जाए.

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