IPL Media Rights: यह है आईपीएल का बिजनेस मॉडल, ऐसे बंटता है स्टेक होल्डर के साथ पैसा, जान लें

IPL Media Rights: बाजार के पंडित आईपीएल को एक बार फिर से अलग नजरिए से देख रहे हैं. दुनिया की दूसरी सबसे महंगी स्पोर्ट्स प्रॉपर्टी बन चुके इस टूर्नामेंट का अलग-अलग नजरिए से आंकलन कर रहे हैं.

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IPL Media Rights: आईपीएल की प्रतीकात्मक तस्वीर
Quick Take
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सारा पैसा जाता है सेंट्रल पूल में!
यहां से फिर तीन कैटेगिरी में बंटता है पैसा
"अपने तरीके" से भी टीमों के पैसा कमाने की आजादी
नई दिल्ली:

IPL Media Rights: इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) के अगले पांच साल (2023-27) के मीडिया राइट्स के लिए बुधवार को खत्म हुयी बोली से बोर्ड को मिली 48,390 करोड़ रुपये की रकम के बारे में सुनकर सभी हैरान हैं. बाजार के पंडित आईपीएल को एक बार फिर से अलग नजरिए से देख रहे हैं. दुनिया की दूसरी सबसे महंगी स्पोर्ट्स प्रॉपर्टी बन चुके इस टूर्नामेंट का अलग-अलग नजरिए से आंकलन कर रहे हैं. वहीं, आम क्रिकेटप्रेमियों के मन में कई  तरह से सवाल चल रहे हैं. मसल बीसीसीआई इतने पैसे का क्या करेगा? फ्रेंचाइजी टीमों को इस रकम से कितना पैसा मिलता है? खिलाड़ियों को कितना पैसा मिलता है, वगैरह-वगरैह. चलिए हम सारे सवालों के जवाब लेकर आपके सामने आए हैं. हम आपके लिए आपीएल का पूरा बिजनेस मॉडल सरल शब्दों में लेकर आए हैं. आईपीएल को सारी होने वाली कमाई "सेंट्रल और "लोकल" पूल में जाती है और यहीं से स्टेक होल्डरों को पैसा वितरित होता है.  कमाई के बोर्ड के बास मुख्य रूप से तीन बड़े स्रोत हैं. आप जानिए कि कैसे आईपीएल या बीसीसीआई का पैसा आगे कैसे बंटता है.

1. मीडिया अधिकार (टीवी+डिजिटल):  
 यह कमाई का सबसे बड़ा स्रोत है. इस कमाई से आईपीएल (बीसीसीआई) का हिस्सा (लगभग 50 प्रतिशत) लेने के बाद बाकी रकम को सभी फ्रेंचाइजी में बराबर-बराबर बांटा जाता है. इसके तहत शुरुआती दो साल 20 प्रतिशत रकम आईपीएल गवर्निंग काउंसिल के पास जाती है, तो 80 प्रतिशत पैसा फ्रेंचाइजी में बंटता है. तीसरे और चौथे साल फ्रेंचाइजी का हिस्सा 70 प्रतिशत, और पांचवें से 10वें साल के बीच यह हिस्सा 60 प्रतिशत हो जाता है. 11वें साल से यह हिस्सा 70 प्रतिशत हो जाता है. शेष 20 प्रतिशत लाभ का बंटवारा लीग की फाइनल पोजीशन पर निर्भर करता है. 

2. प्रायोजन अधिकार:

आईपीएल से होने वाली कमायी का यह दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है. सेंट्रल पूल के तहत मीडिया राइट्स के अलावा मुख्य प्रायोजक भी आते हैं. इसमें मुख्य प्रायोजक जैसे टाटा और इसके अलावा छह या सात एसोसिएट्स प्रायोजकों से आने वाली रकम शामिल रहती है. प्रायोजकों से आने वाली राशि का कुल 60 प्रतिश पैसा पहले से 10वें साल तक फ्रेंचाइजी मालिकों के साथ बंटता है, तो 40 प्रतिशत गवर्निंग काउंसिल को मिलता है. 11वें साल पर फ्रेंचाइजी और काउंसिल का हिस्सा इस कैटेगिरी से 50-50 हो जाता है.

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3. गेट मनी (दर्शक):

यह कमाई का एक बड़ा स्रोत है. और इसके करीब 20 प्रतिशत टिकट आईपीएल के लिए आरक्षित रखे जाते हैं. बाकी से होने वाली कमाई फ्रेंचाइजी के पास जाती है. ये ऊपर बताए गए वे मुख्य स्रोत हैं, जो सेंट्रल पूल से मिलने वाली रकम से फ्रेंचाइजी टीमों के साथ साझा की जाती है. इसके अलावा सभी टीमों को अपने स्तर पर प्रायोजकों को लाने की आजादी है.

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