सुल्तान फतेह अली खान सहाब यानी कि टीपू सुल्तान (Tipu Sultan) की आज पुण्यतिथि है. 4 मई, 1799 को उनका निधन हो गया था. उन्हें भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाना जाता है. टीपू सुल्तान हमेशा ही अपनी बहादुरी और निडरता के लिए जाने गए हैं. उन्होंने दक्षिण भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का पुरजोर विरोध किया था.
टीपू सुल्तान मैसूर के राजा थे और इस वजह से उन्हें ''मैसूर का टाइगर'' (Tiger of Mysore) भी कहा जाता है. वह एक ऐसे शासक थे जो अपनी सेना और जनता के लिए नई चीजों का प्रयोग करते थे. उनके पिता का नाम हैदर अली और माता का नाम फातिमा फखरू निशा था. अपने शासनकाल के दौरान टीपू सुल्तान ने प्रशासनिक बदलाव करते हुए नई राजस्व नीति को अपनाने के साथ और भी कई प्रयोग किए थे. उनकी 221वीं पुण्यतिथि पर बताते हैं आपको उनसे जुड़ी कुछ खास बातें.
बांस के रॉकेट का किया था अविष्कार
बता दें, अपने शासनकाल में टीपू सुल्तान ने सबसे पहले बांस से बने रॉकेट का आविष्कार किया था. ये रॉकेट हवा में करीब 200 मीटर की दूरी तय कर सकते थे और इनको उड़ाने के लिए 250 ग्राम बारूद का प्रयोग किया जाता था. बांस के बाद उन्होंने लोहे का इस्तेमाल कर रॉकेट बनाने शुरू किए, जिससे ये रॉकेट पहले के मुकाबले अधिक दूरी तय करने लगे. हालांकि, लोहे से बने रॉकेट में ज्यादा बारूद का इस्तेमाल किया जाता था. इससे ये विरोधियों को ज्यादा नुकसान पहुंचा पाते थे.
लड़ाई में किया था रॉकेट का इस्तेमाल
टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल में कई तरह के प्रयोग किए थे. इसी बदलाव के कारण उन्हें एक अलग राजा की उपाधि भी प्राप्त है. जानकारी के अनुसार टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली के पास 50 से अधिक रॉकेटमैन थे और वह अपनी सेना में इन रॉकेटमैन का बखूबी इस्तेमाल करते थे. दरअसल, इन्हें रॉकेटमैन इसलिए कहा जाता था क्योंकि ये रॉकेट चलाने में माहिर थे. वो युद्ध के दौरान विरोधियों पर ऐसे निशाने लगाते थे जिससे उन्हें काफी नुकसान होता था. टीपू सुल्तान के शासन में ही पहली बार लोहे के केस वाली मिसाइल रॉकेट बनाई गई थी.
चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में हुई थी टीपू सुल्तान की मौत
जानकारी के अनुसार चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शाही बलों को हैदराबाद और मराठों के निजाम ने अपना समर्थन दिया था. इसके बाद ही उन्होंने टीपू को हराया था और 4 मई 1799 को श्रीरंगापटना में उनकी हत्या कर दी गई थी.
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