नई दिल्ली: केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने निशक्त बच्चों (चिल्ड्रेन विद स्पेशल नीड) के बोर्ड संबंधी नीति तैयार करने के लिये एक समिति का गठन किया है. स्कूलों से ऐसे विशेष बच्चों की जरूरतों को ध्यान रखते हुए सुझाव देने को कहा गया है. सीबीएसई में अतिरिक्त निदेशक डॉ. विश्वजीत साहा की ओर से जारी परिपत्र में कहा गया है कि समिति निशक्त बच्चों के बोर्ड के बारे में नीति तैयार करते हुए समावेशी शिक्षा प्रदान करने का खाका पेश करेगी. इसके साथ ही इन नीतियों में समावेशी शिक्षा बनाम शिक्षा के समन्वय के आधार पर ऐसे निशक्त बच्चों के लिये विभिन्न स्तर का निर्धारण करेगी.
इसमें कहा गया है कि बोर्ड विशेष जरूरत वाले बच्चों की परीक्षा के संबंध में नीति तैयार करेगी, साथ ही नीति में ऐसे निशक्त बच्चों का खास ध्यान रखा जायेगा जिनके सीखने की रफ्तार काफी धीमी है.
सीबीएसई के एक अधिकारी ने बताया कि स्कूलों से इस संबंध में सुझाव मांगे गए हैं. हाल ही में नि:शक्त बच्चों की जरूरतों को समझते हुए स्कूलों में उनके अनुकूल माहौल बनाने तथा उन्हें शिक्षा का समान एवं समावेशी अवसर प्रदान करने के लिये मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शिक्षा से जुड़े विभिन्न घटकों के साथ विचार विमर्श किया था ताकि ऐसे बच्चों की मदद के लिये कार्य योजना तैयार की जा सके.
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नि:शक्त बच्चों (चिल्ड्रेन विद स्पेशल नीड) पर विशेष ध्यान दिये जाने की जरूरत के मद्देनजर 1 दिसंबर को एक कार्यशाला का आयोजन किया था.
इस कार्यशाला में शिक्षा से जुड़े विभिन्न पक्षकारों ने हिस्सा लिया ताकि ऐसे बच्चों की मदद के लिये रणनीति और कार्य योजना तैयार की जा सके. उल्लेखनीय है कि स्कूलों में नि:शक्त बच्चों की जरूरतों की व्यवस्था करने के बारे में विभिन्न वर्गो की ओर से मांग उठती रही है. छह से 14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून में भी इस बात पर जोर दिया गया है कि बच्चों के साथ स्कूल में भेदभाव नहीं होगा और सभी को शिक्षा का समान अवसर प्राप्त होगा.
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड भी ऐसे बच्चों के बारे में समय समय पर स्कूलों को सलाह देता रहता है. इसके बावजूद स्कूलों में नि:शक्त बच्चों की शिक्षा एवं पढ़ाई के माहौल से जुड़े कई विषय अभी भी बने हुए हैं. मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने माध्यमिक स्तर पर नि:शक्तजन समावेशी शिक्षा योजना (ईडीएसएस) वर्ष 2009-10 से प्रारम्भ की थी. यह योजना नि:शक्त बच्चों के लिए एकीकृत योजना (आईईडीसी) संबंधी पहले की योजना के स्थान पर है.
इसके तहत 9वीं से 12वीं कक्षा में पढने वाले नि:शक्त बच्चों को समावेशी शिक्षा के लिए सहायता प्रदान की जाती है. यह योजना वर्ष 2013 से राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) के अंतर्गत सम्मिलित कर ली गई है. इसका मकसद सभी नि:शक्त छात्रों को आठ वर्षों की प्राथमिक स्कूली पढ़ाई पूरी करने के पश्चात आगे चार वर्षों की माध्यमिक स्कूली पढ़ाई समावेशी और सहायक माहौल में करने हेतु समर्थ बनाना है.
इस योजना में नि:शक्त व्यक्ति अधिनियम (1995) और राष्ट्रीय न्यास अधिनियम (1999) के अंतर्गत 9वीं से 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले ऐसे बच्चों को शामिल किया गया है जो इसकी परिभाषा के अनुसार दृष्टिहीनता, कम दृष्टि, कुष्ठ रोग उपचारित, श्रवण शक्ति की कमी, गति विषय नि:शक्तता, मंदबुद्धिता, मानसिक रूग्णता, आत्म-विमोह और प्रमस्तिष्क घात में से किसी एक से प्रभावित हों. इसमें बालिकाओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है जिससे उन्हें माध्यमिक स्कूलों में पढ़ने और अपनी योग्यता का विकास करने हेतु सूचना और मार्गदर्शन सुलभ हो. योजना के अंतर्गत हर राज्य में मॉडल समावेशी स्कूलों की स्थापना करने की कल्पना की गई है.
इसमें कहा गया है कि बोर्ड विशेष जरूरत वाले बच्चों की परीक्षा के संबंध में नीति तैयार करेगी, साथ ही नीति में ऐसे निशक्त बच्चों का खास ध्यान रखा जायेगा जिनके सीखने की रफ्तार काफी धीमी है.
सीबीएसई के एक अधिकारी ने बताया कि स्कूलों से इस संबंध में सुझाव मांगे गए हैं. हाल ही में नि:शक्त बच्चों की जरूरतों को समझते हुए स्कूलों में उनके अनुकूल माहौल बनाने तथा उन्हें शिक्षा का समान एवं समावेशी अवसर प्रदान करने के लिये मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शिक्षा से जुड़े विभिन्न घटकों के साथ विचार विमर्श किया था ताकि ऐसे बच्चों की मदद के लिये कार्य योजना तैयार की जा सके.
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नि:शक्त बच्चों (चिल्ड्रेन विद स्पेशल नीड) पर विशेष ध्यान दिये जाने की जरूरत के मद्देनजर 1 दिसंबर को एक कार्यशाला का आयोजन किया था.
इस कार्यशाला में शिक्षा से जुड़े विभिन्न पक्षकारों ने हिस्सा लिया ताकि ऐसे बच्चों की मदद के लिये रणनीति और कार्य योजना तैयार की जा सके. उल्लेखनीय है कि स्कूलों में नि:शक्त बच्चों की जरूरतों की व्यवस्था करने के बारे में विभिन्न वर्गो की ओर से मांग उठती रही है. छह से 14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून में भी इस बात पर जोर दिया गया है कि बच्चों के साथ स्कूल में भेदभाव नहीं होगा और सभी को शिक्षा का समान अवसर प्राप्त होगा.
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड भी ऐसे बच्चों के बारे में समय समय पर स्कूलों को सलाह देता रहता है. इसके बावजूद स्कूलों में नि:शक्त बच्चों की शिक्षा एवं पढ़ाई के माहौल से जुड़े कई विषय अभी भी बने हुए हैं. मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने माध्यमिक स्तर पर नि:शक्तजन समावेशी शिक्षा योजना (ईडीएसएस) वर्ष 2009-10 से प्रारम्भ की थी. यह योजना नि:शक्त बच्चों के लिए एकीकृत योजना (आईईडीसी) संबंधी पहले की योजना के स्थान पर है.
इसके तहत 9वीं से 12वीं कक्षा में पढने वाले नि:शक्त बच्चों को समावेशी शिक्षा के लिए सहायता प्रदान की जाती है. यह योजना वर्ष 2013 से राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) के अंतर्गत सम्मिलित कर ली गई है. इसका मकसद सभी नि:शक्त छात्रों को आठ वर्षों की प्राथमिक स्कूली पढ़ाई पूरी करने के पश्चात आगे चार वर्षों की माध्यमिक स्कूली पढ़ाई समावेशी और सहायक माहौल में करने हेतु समर्थ बनाना है.
इस योजना में नि:शक्त व्यक्ति अधिनियम (1995) और राष्ट्रीय न्यास अधिनियम (1999) के अंतर्गत 9वीं से 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले ऐसे बच्चों को शामिल किया गया है जो इसकी परिभाषा के अनुसार दृष्टिहीनता, कम दृष्टि, कुष्ठ रोग उपचारित, श्रवण शक्ति की कमी, गति विषय नि:शक्तता, मंदबुद्धिता, मानसिक रूग्णता, आत्म-विमोह और प्रमस्तिष्क घात में से किसी एक से प्रभावित हों. इसमें बालिकाओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है जिससे उन्हें माध्यमिक स्कूलों में पढ़ने और अपनी योग्यता का विकास करने हेतु सूचना और मार्गदर्शन सुलभ हो. योजना के अंतर्गत हर राज्य में मॉडल समावेशी स्कूलों की स्थापना करने की कल्पना की गई है.
करियर की और खबरों के लिए क्लिक करें
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं