नयी दिल्ली:
उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश के एक कानून के उन प्रावधानों को बरकरार रखा है जो सरकार को निजी डेंटल कॉलेजों में मैनेजमेंट सीटों का 50 फीसदी अपने पास रखने को सक्षम बनाता है।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि राज्य द्वारा साझा प्रवेश परीक्षा (सीईटी) कराने या फीस तय करने में शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता का कोई उल्लंघन नहीं होता है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘राज्य या राज्य द्वारा नामित किसी एजेंसी से सीईटी कराने या फीस तय करने में शैक्षणिक संस्थान की स्वायत्तता के अधिकार का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।’’ न्यायमूर्ति अनिल आर दवे की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा, ‘‘ऐसा करने का राज्य का अधिकार केंद्रीय कानून का विषय है।’’ यह केंद्र और राज्य के बीच का विषय है और संविधान के अनुच्छेद 254 के मुताबिक निपटाया जाना चाहिए।
शीर्ष न्यायालय ने पूर्व सीजेआई आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय एक निगरानी कमेटी गठित करने का भी आदेश दिया ताकि प्रवेश परीक्षा के सिलसिले में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के कामकाज की निगरानी की जा सके।
न्यायमूर्ति एके सीकरी, न्यायमूर्ति एके अग्रवाल, न्यायमूर्ति एके गोयल और न्यायमूर्ति आर भानुमति की सदस्यता वाली पीठ ने कहा कि उपयुक्त तंत्र बनने तक शुरूआत में कमेटी एक साल काम करेगी।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली गैर सहायता प्राप्त निजी मेडिकल एवं डेंटल कॉलेजों की एक याचिका पर शीर्ष न्यायालय का आदेश आया है।
शीर्ष न्यायालय ने आगे कहा कि सरकार के नियंत्रण के तहत सीईटी कराना निजी संस्थानों की स्वायत्तता का उल्लंघन नहीं करता और दाखिला अब भी इन संस्थानों के हाथ में है।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि राज्य द्वारा साझा प्रवेश परीक्षा (सीईटी) कराने या फीस तय करने में शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता का कोई उल्लंघन नहीं होता है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘राज्य या राज्य द्वारा नामित किसी एजेंसी से सीईटी कराने या फीस तय करने में शैक्षणिक संस्थान की स्वायत्तता के अधिकार का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।’’ न्यायमूर्ति अनिल आर दवे की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा, ‘‘ऐसा करने का राज्य का अधिकार केंद्रीय कानून का विषय है।’’ यह केंद्र और राज्य के बीच का विषय है और संविधान के अनुच्छेद 254 के मुताबिक निपटाया जाना चाहिए।
शीर्ष न्यायालय ने पूर्व सीजेआई आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय एक निगरानी कमेटी गठित करने का भी आदेश दिया ताकि प्रवेश परीक्षा के सिलसिले में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के कामकाज की निगरानी की जा सके।
न्यायमूर्ति एके सीकरी, न्यायमूर्ति एके अग्रवाल, न्यायमूर्ति एके गोयल और न्यायमूर्ति आर भानुमति की सदस्यता वाली पीठ ने कहा कि उपयुक्त तंत्र बनने तक शुरूआत में कमेटी एक साल काम करेगी।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली गैर सहायता प्राप्त निजी मेडिकल एवं डेंटल कॉलेजों की एक याचिका पर शीर्ष न्यायालय का आदेश आया है।
शीर्ष न्यायालय ने आगे कहा कि सरकार के नियंत्रण के तहत सीईटी कराना निजी संस्थानों की स्वायत्तता का उल्लंघन नहीं करता और दाखिला अब भी इन संस्थानों के हाथ में है।
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